लंदन: भारतीय क्रिकेट के दिग्गज और पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने हाल ही में एक ऐसी बात कही है, जो न केवल खिलाड़ियों के लिए एक सीख है, बल्कि चयनकर्ताओं और टीम प्रबंधन के लिए भी एक गहरी सोच का विषय बन सकती है. मुद्दा है वर्कलोड मैनेजमेंट, यानी खिलाड़ियों को थकान से बचाने के लिए उनके खेलने का बोझ कम करना.
गावस्कर ने इस पर सवाल उठाया कि क्या यह शब्द अब भारतीय क्रिकेट के मूल सिद्धांतों से मेल खाता है. उन्होंने इसका संदर्भ हाल ही में संपन्न भारत बनाम इंग्लैंड टेस्ट सीरीज से जोड़ा, जिसमें तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद सिराज ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए पांचों टेस्ट मैच खेले और 185.3 ओवर फेंकते हुए 23 विकेट हासिल किए.
दूसरी ओर, भारत के मुख्य तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह केवल तीन टेस्ट में ही हिस्सा ले सके. उन्हें टीम के वर्कलोड मैनेजमेंट के तहत ओवल में खेले गए निर्णायक टेस्ट मैच से बाहर रखा गया.
क्या सीमा पर जवान ठंड से शिकायत करते हैं?- गावस्कर
इंडिया टुडे को दिए गए इंटरव्यू में गावस्कर ने कहा, "जब आप अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हों, तो दर्द और थकान जैसे पहलुओं को दरकिनार कर देना चाहिए."
उन्होंने अपने तर्क को और मजबूत करते हुए कहा कि, "क्या हमें सुनने को मिलता है कि सीमा पर खड़े जवान सर्दी या गर्मी की शिकायत करते हैं? नहीं. वे अपनी ड्यूटी निभाते हैं क्योंकि वे राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं."
गावस्कर ने ऋषभ पंत का उदाहरण भी दिया, जो चोटिल होने के बावजूद मैदान में उतरे थे. उन्होंने कहा, "ऋषभ पंत ने पांव में फ्रैक्चर होने के बावजूद बल्लेबाज़ी की. जब आप भारत के लिए खेल रहे होते हैं, तो आप सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं होते, आप 140 करोड़ देशवासियों की उम्मीद बन जाते हैं."
सिराज की प्रतिबद्धता ने छोड़ी गहरी छाप
गावस्कर ने खासतौर पर मोहम्मद सिराज की तारीफ की और उन्हें इस पूरे वर्कलोड डिबेट के बीच एक प्रेरणादायक उदाहरण बताया. उन्होंने कहा, "सिराज ने पांचों टेस्ट में लगातार 7-8 ओवर की स्पेल डालीं, बिना किसी शिकायत के. यह वही समर्पण है जिसकी देश को ज़रूरत है."
उनका मानना है कि सिराज का यह जज्बा यह दर्शाता है कि जब खिलाड़ी अपने खेल के प्रति पूरी तरह समर्पित होता है, तो वह शारीरिक थकान की सीमाओं को भी पार कर सकता है.
वर्कलोड: शारीरिक पहलू या मानसिक बहाना?
गावस्कर ने वर्कलोड मैनेजमेंट को लेकर एक और अहम बात कही, "वर्कलोड केवल शारीरिक पहलू नहीं है, यह मानसिक स्थिति है. जब आप मानसिक रूप से मजबूत होते हैं, तो शरीर उसका साथ देता है."
उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर चयनकर्ता व टीम मैनेजमेंट बार-बार वर्कलोड के नाम पर खिलाड़ियों को विश्राम देते रहेंगे, तो देश के लिए मैदान पर सर्वश्रेष्ठ संयोजन शायद ही कभी उतर सकेगा.
उन्होंने कहा, "यदि हम उन आवाज़ों के आगे झुकते रहे जो लगातार वर्कलोड की बात करती हैं, तो हम कभी अपनी सबसे मजबूत टीम मैदान में नहीं उतार पाएंगे."
क्या अब समय आ गया है सोच बदलने का?
गावस्कर की इन बातों से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारतीय क्रिकेट में एक बार फिर उस पुरानी जुझारूपन और प्रतिबद्धता की वापसी होनी चाहिए, जिसे टीम इंडिया की पहचान कहा जाता था.
वर्तमान दौर में फिटनेस और आंकड़ों के ज़रिए खिलाड़ी प्रबंधन ज़रूरी तो है, लेकिन कहीं ना कहीं उस सोच को भी बदलने की ज़रूरत है जिसमें हर समय ‘रेस्ट’ को प्राथमिकता दी जाती है.
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