21वीं सदी की जंग अब सिर्फ सरहदों पर नहीं लड़ी जाती — अब मुकाबला होता है हवा में. जहां दिखता कुछ नहीं, लेकिन मौत 2000 किमी/घंटा की रफ्तार से आ सकती है. और इस अदृश्य मौत का नाम है — फिफ्थ जनरेशन फाइटर जेट.
भारत, जो दशकों से सुखोई और मिग जैसे रूसी लड़ाकू विमानों पर भरोसा करता आया है, अब उस मोड़ पर खड़ा है, जहां तकनीक की बादशाहत ही भविष्य की सुरक्षा तय करेगी. चीन अपनी सरहद पर स्टील्थ फाइटर तैनात कर चुका है, और पाकिस्तान को भी हवा में मारक ताकत देने की तैयारी में है. ऐसे में सवाल उठता है — क्या भारत तैयार है?
और इस सवाल के जवाब में ही सामने आई हैं दो पावरफुल पेशकशें — एक अमेरिका का F-35 लाइटनिंग-II, और दूसरी रूस का Su-57E स्टील्थ फाइटर. दोनों घातक, दोनों आधुनिक... लेकिन फैसला भारत को करना है कि वो ‘मित्रता’ की डील चाहता है या 'स्वाभिमान' का सौदा.
रूस का तुरुप का इक्का: Su-57E, ‘हवा का भूत’
रूस ने भारत को जो ऑफर दिया है, वो सामान्य सैन्य सौदे से कहीं ऊपर है. सिर्फ जेट नहीं, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से लेकर सोर्स कोड एक्सेस तक की बात की गई है. यानि अब भारत सिर्फ खरीदार नहीं रहेगा, बल्कि निर्माता और स्वामी भी बन सकता है.
Su-57E — रूस का पांचवीं पीढ़ी का ट्विन इंजन स्टील्थ फाइटर — न सिर्फ रडार से गायब हो सकता है, बल्कि 2450 किमी/घंटा की रफ्तार से दुश्मन के ठिकानों को तबाह कर सकता है. इसकी कॉम्बैट रेंज 1,900 किमी है, और यह एयर-टु-एयर, एयर-टु-ग्राउंड और मैरीटाइम ऑपरेशन — तीनों में महारथ रखता है.
इसके डिजाइन की खासियत है इसकी एगिलिटी (चपलता), जो इसे हवाई लड़ाई में एक 'अदृश्य शिकारी' बना देती है. लेकिन असली गेमचेंजर है — रूस का भारत को तकनीक सौंपने का प्रस्ताव. यानी भविष्य में भारत का अपना Su-57 बन सकता है, वो भी Made in India.
अमेरिका का प्रस्ताव: F-35A, ‘तकनीक का टाइटन’
दूसरी तरफ अमेरिका है — जो भारत को F-35 लाइटनिंग-II देने की बात कर चुका है. यह भी एक अत्याधुनिक स्टील्थ जेट है, जिसकी स्पीड 1975 किमी/घंटा और रेंज लगभग 1500 किमी है. इसकी सबसे बड़ी ताकत है — इसका मल्टी-डोमेन ऑपरेशन. यानी यह हवा, जमीन और साइबर जगत — तीनों में एक साथ ऑपरेट कर सकता है.
लेकिन अमेरिका के ऑफर में वो टेक्नोलॉजी ट्रांसफर वाला आत्मनिर्भर भारत का सपना नहीं है. अमेरिका का F-35 भले शानदार हो, लेकिन उसकी हर उड़ान पर 'मालिकाना हक' अमेरिका का ही रहेगा.
चीन और पाकिस्तान की चाल: 'हवा में संतुलन' बिगाड़ने की साजिश
चीन ने पहले ही अपने पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट — J-20 को भारतीय सीमा के पास तैनात कर दिया है. अब वह पाकिस्तान को भी ये तकनीक देने की तैयारी में है. ऐसे में भारत के लिए 'घोषणाओं' का समय नहीं, बल्कि निर्णय और क्रियान्वयन का समय है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की बौखलाहट और उसके डिफेंस बजट में 20% की बढ़ोतरी इस बात का इशारा है कि वह आने वाले टकराव की तैयारी में है. वहीं भारत को अब अपनी रक्षा नीति को सिर्फ जवाबी नहीं, बल्कि प्रिवेंटिव स्ट्राइक मोड में ढालना होगा — और उसका रास्ता स्टील्थ जेट से ही होकर जाता है.
स्वदेशी बनाम आयातित तकनीक
भारत खुद भी तेजस के अपग्रेडेड वर्जन और AMCA प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है — जिसमें हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और DRDO लगे हुए हैं. लेकिन उसमें अभी समय है, रिसर्च है, और परीक्षण बाकी हैं.
जब तक वो सपना हकीकत बने, तब तक भारत को 'सेतु' चाहिए — और Su-57E उस सेतु का नाम हो सकता है. वो तकनीक जो भारत को आत्मनिर्भर बनने के लिए न सिर्फ ट्रेन करेगी, बल्कि सिखाएगी भी कि हवा में हावी कैसे हुआ जाता है.
क्या भारत चुनेगा संप्रभुता या सिर्फ सुरक्षा?
F-35 अपने आप में बेमिसाल है, लेकिन वह 'सुरक्षा की निर्भरता' का प्रतीक है. जबकि Su-57E और उसके साथ मिलने वाला टेक्नोलॉजी ट्रांसफर 'स्वाभिमान के साथ संप्रभुता' का वादा करता है.
अब यह फैसला भारत के नीति-निर्माताओं के हाथ में है — क्या हम एक और रक्षा सौदा करेंगे, या भविष्य की हवाई जंगों के लिए स्वदेशी उड़ान की नींव रखेंगे? एक तरफ अमेरिका की तकनीक है, जो हमें देख-देखकर उड़ने देगी. दूसरी ओर रूस का साथ है, जो हमें अपने पंख बनाने का विज्ञान सिखाएगा.