ढाका: बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद देश के ऐतिहासिक और राजनीतिक प्रतीकों को लेकर एक नई पुनर्परिभाषा की प्रक्रिया चल रही है. अंतरिम सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान का 'राष्ट्रपिता' का आधिकारिक दर्जा समाप्त कर दिया है, और इसी के साथ स्वतंत्रता सेनानी तथा 1971 के मुक्ति संग्राम की परिभाषा में भी व्यापक बदलाव किए गए हैं.
इस कदम को देश के राजनीतिक विमर्श के ध्रुवीकरण के संदर्भ में देखा जा रहा है, जहां शेख मुजीब और ज़ियाउर रहमान के योगदान को लेकर वर्षों से बहस जारी रही है.
संविधान और करेंसी में बदलाव
सरकारी अधिसूचना के अनुसार, 'राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान' शब्द को अब आधिकारिक सरकारी दस्तावेजों और अधिनियमों से हटा दिया गया है. यह कदम उस क्रम का हिस्सा है, जिसके तहत हाल ही में 1 जून को नए करेंसी नोटों से भी शेख मुजीब की तस्वीर हटा दी गई थी.
नए नोटों पर अब बांग्लादेश की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हुए हिंदू और बौद्ध मंदिरों की छवियाँ शामिल की जाएंगी. हालांकि, पूर्ववर्ती करेंसी अभी भी चलन में बनी रहेगी.
नई परिभाषा: कौन माने जाएंगे 'स्वतंत्रता सेनानी'
अंतरिम सरकार ने 1971 के मुक्ति संग्राम में भाग लेने वालों की पहचान को व्यापक किया है. नई परिभाषा के तहत अब वे सभी नागरिक स्वतंत्रता सेनानी माने जाएंगे जिन्होंने:
इसके अलावा, मुक्ति संग्राम के दौरान पीड़ित ‘वीरांगनाओं’, साथ ही घायल लड़ाकों का उपचार करने वाले डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ को भी अब स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया गया है.
शेख मुजीबुर्रहमान का नाम हटाया गया
पहले जहां स्वतंत्रता संग्राम को शेख मुजीबुर्रहमान की पहल से जुड़ा बताया जाता था, अब उसे एक जन-सामूहिक सशस्त्र आंदोलन के रूप में परिभाषित किया गया है, जो समानता, मानव गरिमा और सामाजिक न्याय पर आधारित लोकतांत्रिक देश की स्थापना के लिए लड़ा गया था.
इस बदलाव से व्यक्तिपूजा के स्थान पर ऐतिहासिक वस्तुनिष्ठता पर बल देने की कोशिश मानी जा रही है, हालांकि आलोचकों का कहना है कि यह एक राजनीतिक पुनर्लेखन (rewriting) की प्रक्रिया है.
शिक्षा और छुट्टियों में भी संशोधन
इसी क्रम में जनवरी 2025 में स्कूली पाठ्यक्रम में बड़ा संशोधन किया गया था. अब पाठ्यपुस्तकों में 1971 की आज़ादी की घोषणा का श्रेय जियाउर रहमान को दिया गया है, जो बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के संस्थापक और खालिदा ज़िया के पति थे.
इसके साथ ही, मुजीब से जुड़े आठ राष्ट्रीय अवकाशों को भी रद्द कर दिया गया है, जो पहले राष्ट्रीय गौरव से जुड़े दिनों के रूप में मनाए जाते थे.
प्रतीकों पर हमले और राजनीतिक अशांति
2024 में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद शेख मुजीब से जुड़ी कई सार्वजनिक स्थलों पर लगी मूर्तियों, नेमप्लेट्स और तस्वीरों को हटाया या क्षतिग्रस्त किया गया.
इन घटनाओं को शेख हसीना की सरकार के प्रति आक्रोश और विरोध के प्रतीकात्मक प्रदर्शन के रूप में देखा गया.
हसीना का देश छोड़ना और विरोध की पृष्ठभूमि
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना 5 अगस्त 2024 को देश छोड़कर भारत आ गई थीं, जब छात्र आंदोलन और विरोध प्रदर्शनों ने व्यापक रूप ले लिया था. आंदोलन की शुरुआत सरकारी नौकरियों में 30% कोटा (स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए) के विरोध में हुई थी, जिसे बाद में हसीना सरकार ने रद्द कर दिया, लेकिन तब तक आंदोलन राजनीतिक रंग ले चुका था.
हसीना के इस्तीफे के बाद देश में अंतरिम प्रशासन का गठन किया गया, जो अब संस्थागत और वैचारिक स्तर पर नई परिभाषाएं गढ़ रहा है.
इतिहास का पुनर्लेखन या वैचारिक संतुलन?
बांग्लादेश में इतिहास की पुनर्व्याख्या कोई नई बात नहीं है. लेकिन हालिया घटनाएं दर्शाती हैं कि सत्ता परिवर्तन सिर्फ राजनीतिक नेतृत्व नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पहचान, स्मृति और प्रतीकों को भी बदल सकता है.
अब देखने वाली बात यह होगी कि यह बदलाव स्थायी संस्थागत स्वीकृति पाते हैं या भविष्य में एक और दौर के विचारधारात्मक संघर्ष का कारण बनते हैं.
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