दिल्ली विधासनभा के बेसमेंट से आती है डरावनी आवाज! जानें गुप्त फांसीघर का क्या है राज

    Hanging Room In Delhi Vidhansbaha: आप दिल्ली विधानसभा को केवल एक आधुनिक राजनीतिक इमारत मानते हैं? अगर हां, तो ज़रा फिर सोचिए... क्योंकि इसके तहखाने में दबा है इतिहास का वो काला पन्ना, जिसे जानकर आपकी रूह कांप जाएगी.

    scary sound from basement Delhi Vidhansabha Know secret hanging room
    Image Source: ANI/ File

    Hanging Room In Delhi Vidhansbaha: आप दिल्ली विधानसभा को केवल एक आधुनिक राजनीतिक इमारत मानते हैं? अगर हां, तो ज़रा फिर सोचिए... क्योंकि इसके तहखाने में दबा है इतिहास का वो काला पन्ना, जिसे जानकर आपकी रूह कांप जाएगी.

    एक गुप्त फांसीघर, जो आज़ादी की लड़ाई के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के सबसे खौफनाक राज़ों में से एक था. एक सुरंग, जो सीधे लाल किले से इस भवन तक आती थी, जिससे क्रांतिकारी लाए जाते थे, बिना किसी शोर-शराबे के, और हमेशा के लिए गायब कर दिए जाते थे. आज भी जब कोई इस तहखाने में उतरता है, तो एक अजीब सी सिहरन सी होती है. कहते हैं, यहां अब भी वो सिसकियां गूंजती हैं.

    अंग्रेजों का “Council House”

    1912 में जब ब्रिटिश सरकार ने भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट की, तब यह भवन “काउंसिल हाउस” कहलाता था. यहीं कभी Imperial Legislative Council की बैठकें हुआ करती थीं. यहीं वो ऐतिहासिक पल भी हुआ था, जब भगत सिंह ने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ बम फेंका था. लेकिन इस भवन का सबसे डरावना और रहस्यमय हिस्सा है, इसका बेसमेंट, जिसे 2003 की खुदाई के बाद पहली बार दुनिया ने देखा.

    जहां मौन में दी जाती थी मौत

    2003 की खुदाई में विधानसभा के नीचे एक छोटा, अंधेरा कमरा मिला, जिसकी दीवारों में लगी जंजीरें, फांसी का लकड़ी का ढांचा और घुटन भरा वातावरण देखकर कहा गया, ये “हैंगिंग सेल” था. यह कोई आधिकारिक फांसीघर नहीं था, बल्कि ब्रिटिशों का गुप्त नरसंहार स्थल, जहां देश के उन क्रांतिकारियों को मारा जाता था, जिनका नाम न कभी अदालत में आया, न इतिहास की किताबों में.

    यहां शायद 1915 से 1930 के बीच 10 से 20 देशभक्तों को मौत दी गई. कई को टॉर्चर किया गया. और शायद इसीलिए यहां अब भी कुछ “अधूरी आत्माएं” मौजूद हैं, ऐसा कई लोगों का मानना है.

    लाल किले तक जाने वाली सुरंग 

    यही नहीं, इस फांसीघर के साथ एक सुरंग भी खोजी गई, जो सीधे लाल किले तक जाती थी. माना जाता है कि इस सुरंग से कैदियों को चुपचाप लाया जाता था ताकि उनकी मौजूदगी को दुनिया से छुपाया जा सके. इस सुरंग की लंबाई करीब 1.5 से 2 किलोमीटर मानी जाती है. अब यह जर्जर हो चुकी है, मिट्टी और मलबे से भरी पड़ी है, लेकिन इसके अवशेष अब भी मौजूद हैं.

    क्या ये जगह वाकई "भूतिया" है?

    इस सवाल का जवाब न तो इतिहास देता है और न ही विज्ञान... लेकिन वहां गए कुछ लोग कुछ और ही कहानी सुनाते हैं:

    किस्सा 1: डॉक्टर की चेतावनी

    2004 के आसपास जब एक मेडिकल टीम वहां जांच के लिए गई, तो एक डॉक्टर को जैसे ही हैंगिंग सेल में घुसा, सिरदर्द, घुटन और बेचैनी महसूस होने लगी. बाहर निकलते ही सब ठीक.

    किस्सा 2: सफाईकर्मी की चीख

    रात की शिफ्ट में एक सफाईकर्मी तहखाने में गया, कुछ ही देर बाद चेन खड़कने और साये की आवाज़ें सुनकर डर के मारे भाग गया और अगले दिन नौकरी छोड़ दी.

    किस्सा 3: पत्रकार की रिपोर्ट

    एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा कि जब वह वहां गया, तो उसे रोने और मदद मांगने की अस्पष्ट आवाज़ें सुनाई दीं, लेकिन वहां कोई भी नहीं था.

    किस्सा 4: विधानसभा अध्यक्ष का बयान

    2016 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने खुद कहा, “इस तहखाने का माहौल अजीब रूप से ठंडा और भारी है. ये जगह शायद हॉन्टेड है.”

    क्या इसे म्यूजियम बनाया जाएगा?

    वर्षों से ये मांग उठती रही है कि इस रहस्यमय जगह को स्मारक या म्यूजियम का रूप दिया जाए ताकि आम लोग उन शहीदों की कहानी जान सकें, जिनका नाम तक इतिहास में नहीं है. 2016 में प्रस्ताव भी रखा गया था, लेकिन अब तक यह आम जनता के लिए नहीं खोला गया है. कभी-कभी पत्रकारों या विशेष टीमों को ही अंदर जाने की अनुमति मिलती है.

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