भारत के इस दोस्त ने बना ली कैंसर की वैक्सीन, अब कीमोथेरेपी की नहीं पड़ेगी जरूरत, कैसे करती है काम?

    कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे लाखों मरीजों के लिए अब एक नई उम्मीद की किरण नजर आई है.

    Russian scientists have developed a cancer vaccine
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ FreePik

    कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे लाखों मरीजों के लिए अब एक नई उम्मीद की किरण नजर आई है. ये चमत्कारिक उपलब्धि भारत के करीबी दोस्त देश रूस से आई है, जहां वैज्ञानिकों ने कैंसर के खिलाफ एक ऐसी वैक्सीन तैयार की है जो न केवल बेहद प्रभावी है, बल्कि मरीजों को कीमोथेरेपी और रेडिएशन जैसी तकलीफदेह प्रक्रियाओं से भी बचा सकती है.

    इस नई वैक्सीन का नाम है "एंटरोमिक्स" (Enteromix). रूसी वैज्ञानिकों के अनुसार, यह वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल्स में 100% प्रभावी और पूरी तरह से सुरक्षित साबित हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह खोज कैंसर उपचार के इतिहास में मील का पत्थर बन सकती है.

    कौन बना रहा है यह वैक्सीन?

    एंटरोमिक्स को नेशनल मेडिकल रिसर्च रेडियोलॉजिकल सेंटर, रूस के एंगेलहार्ड्ट इंस्टीट्यूट ऑफ मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के साथ मिलकर विकसित कर रहा है. इन दोनों संस्थानों की गिनती रूस के प्रमुख मेडिकल रिसर्च केंद्रों में होती है.

    इस वैक्सीन की टेक्नोलॉजी mRNA (Messenger RNA) आधारित है, जिसे पहले कोविड-19 की वैक्सीन में इस्तेमाल किया गया था. हालांकि, यहां इसका इस्तेमाल एक पूरी तरह नई दिशा में किया गया है- कैंसर कोशिकाओं को विशेष रूप से पहचानकर खत्म करने के लिए.

    कैसे काम करती है Enteromix वैक्सीन?

    एंटरोमिक्स को एक इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन के रूप में मरीज को दिया जाता है. इसका काम शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ प्रशिक्षित करना होता है. जब यह वैक्सीन शरीर में पहुंचती है, तो यह विशेष रूप से ट्यूमर से जुड़ी प्रोटीन को पहचानना सिखाती है, जिससे शरीर की इम्यून कोशिकाएं केवल कैंसर कोशिकाओं पर हमला करती हैं, स्वस्थ कोशिकाएं सुरक्षित रहती हैं.

    यही इस वैक्सीन की सबसे बड़ी खूबी है. पारंपरिक इलाज जैसे कीमोथेरेपी या रेडिएशन में जहां स्वस्थ कोशिकाएं भी प्रभावित होती हैं, वहीं एंटरोमिक्स केवल बीमार कोशिकाओं को निशाना बनाती है. यही कारण है कि यह वैक्सीन दर्द रहित, साइड इफेक्ट्स से मुक्त और अधिक सुरक्षित विकल्प के रूप में उभर रही है.

    क्लिनिकल ट्रायल में क्या निकले नतीजे?

    रूसी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इस वैक्सीन ने क्लिनिकल ट्रायल के हर चरण में बेहतरीन परिणाम दिए हैं:

    • 100% प्रभावशीलता: ट्रायल में शामिल सभी मरीजों में कैंसर कोशिकाओं के आकार में कमी पाई गई.
    • कई मामलों में ट्यूमर का पूर्णतः नाश: कुछ मरीजों में तो कैंसर कोशिकाएं पूरी तरह खत्म हो गईं.
    • कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं: वैक्सीन लेने के बाद किसी भी मरीज में गंभीर या घातक रिएक्शन देखने को नहीं मिला.
    • सहज और सरल प्रक्रिया: वैक्सीन को देना भी आसान है, किसी सर्जरी या लंबी अस्पताल प्रक्रिया की जरूरत नहीं होती.

    कौन-कौन से कैंसर में मिल सकती है राहत?

    वैज्ञानिकों का मानना है कि यह वैक्सीन कई प्रकार के कैंसर में कारगर हो सकती है, जैसे:

    • फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer)
    • स्तन कैंसर (Breast Cancer)
    • कोलोरैक्टल कैंसर (Colon/Rectum)
    • अग्नाशय (पैंक्रियाज) का कैंसर
    • ब्राका 1/2 म्यूटेशन वाले हाई-रिस्क मरीज

    इसके अलावा, ऐसे मरीज जो कीमोथेरेपी नहीं ले सकते चाहे उम्र की वजह से या अन्य स्वास्थ्य कारणों से उनके लिए भी यह वैक्सीन एक बड़ी राहत बन सकती है.

    भारत के लिए क्या है खास बात?

    भारत में हर साल लाखों नए कैंसर के केस सामने आते हैं, और बड़ी संख्या में मरीज इलाज की लंबी और थकाऊ प्रक्रिया से गुजरते हैं. ऐसे में एंटरोमिक्स वैक्सीन भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है.

    भारत और रूस के बीच लंबे समय से व्यापार, रक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में अच्छे रिश्ते रहे हैं. यही कारण है कि उम्मीद जताई जा रही है कि रूस से यह वैक्सीन तेजी से भारत में उपलब्ध कराई जा सकती है. भारत में पहले से मौजूद वैक्सीन उत्पादन और वितरण की मजबूत व्यवस्था इस तकनीक को और सुलभ बना सकती है.

    यदि भारत में इसके ट्रायल्स सफल रहते हैं और नियामक मंजूरी मिल जाती है, तो यह वैक्सीन यहां के करोड़ों लोगों के लिए जीवनदायी साबित हो सकती है.

    क्या यह कीमोथेरेपी का विकल्प बन सकती है?

    वैज्ञानिकों की मानें, तो एंटरोमिक्स वैक्सीन कैंसर के इलाज में ‘कीमो-फ्री’ युग की शुरुआत कर सकती है. चूंकि यह सिर्फ कैंसर कोशिकाओं को ही निशाना बनाती है और शरीर के बाकी हिस्सों को नुकसान नहीं पहुंचाती, इसलिए इसे कीमोथेरेपी के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है.

    हालांकि, इसका मतलब यह नहीं कि कीमोथेरेपी पूरी तरह बंद कर दी जाएगी, लेकिन बहुत से मामलों में इस वैक्सीन का उपयोग अकेले ही पर्याप्त हो सकता है या फिर इसे अन्य उपचारों के साथ संयोजन में इस्तेमाल किया जा सकता है.

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