आज की दुनिया एक नए संघर्ष के दौर से गुजर रही है, जहां युद्ध केवल मैदान तक सीमित नहीं रहे, बल्कि वे छुपे हुए खेलों और सामरिक चालों का हिस्सा बन गए हैं. रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध, सिर्फ दो देशों के बीच की टकराहट नहीं, बल्कि वैश्विक शक्तियों के बीच के बड़े खेल का एक हिस्सा है. यह वही 21वीं सदी है, जहां पुराने शीतयुद्ध की यादें नए रंग रूप लेकर सामने आ रही हैं.
नया शीतयुद्ध, नए खिलाड़ी
आज दुनिया को दो खेमों में बांटना सही नहीं होगा. हालांकि, अमेरिका, रूस और चीन जैसे प्रमुख ताकतवर देश अपनी-अपनी जगह बना रहे हैं और लगातार एक-दूसरे के खिलाफ रणनीतियां रच रहे हैं. ये देश न सिर्फ सीधे टकराव में हैं, बल्कि कई प्रॉक्सी युद्धों और राजनीतिक दबावों के जरिए अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.
वैश्विक राजनीति का जटिल खेल
अमेरिका और चीन के बीच चल रहा तनाव अब खुले युद्ध में बदलने की कगार पर है. यूक्रेन, मध्य पूर्व और एशिया-प्रशांत क्षेत्र ऐसे मैदान हैं, जहां यह लड़ाई तेजी से गहराती जा रही है. खासकर ताइवान को लेकर चीन की नजर और अमेरिकी उसकी सुरक्षा का दायित्व, इस क्षेत्र को दुनिया के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक बना देते हैं.
कब होगा अगला बड़ा युद्ध?
ऐसा लगता है कि विश्व में शांति केवल अस्थायी विराम है, असली मुकाबला अभी बाकी है. नैटो की मौजूदगी और उसके सदस्यों को रक्षा बजट बढ़ाने के लिए मजबूर किया जाना, इस बात का संकेत है कि बड़े युद्ध की तैयारी लगातार चल रही है. रूस-यूक्रेन संघर्ष या इजराइल-ईरान टकराव, सभी के पीछे अमेरिका की बड़ी भूमिका है.
नए गठबंधनों की ओर
जहां अमेरिका अपने पुराने सहयोगियों के साथ गठबंधन मजबूत कर रहा है, वहीं रूस, चीन और ईरान के बीच भी सैन्य और आर्थिक गठजोड़ पुख्ता होता जा रहा है. शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स जैसे समूह पश्चिमी ताकतों को चुनौती दे रहे हैं, जो एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर संकेत करता है.
वैश्विक संस्थाओं की कमजोरी
दुनिया के पुराने अंतरराष्ट्रीय संगठन अब समय की मांग को पूरा नहीं कर पा रहे. नए विश्व नेतृत्व की कमी और कट्टर राष्ट्रवाद के बढ़ते स्वर, वैश्विक स्थिरता को खतरे में डाल रहे हैं. इस माहौल में छोटे-छोटे युद्धों और संघर्षों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है.
अमेरिका और चीन की रणनीतियां
अमेरिका अपनी सैन्य ताकत को बनाए रखने के लिए लगातार छोटे युद्धों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, जबकि चीन अपनी ‘डेट ट्रैप डिप्लोमेसी’ के जरिए आर्थिक और राजनीतिक दबाव बनाकर नई उपनिवेशवादी नीति लागू कर रहा है. ताइवान से लेकर दक्षिण चीन सागर तक, चीन की महत्वाकांक्षा साफ नजर आ रही है.
बड़े संघर्षों के पीछे की सच्चाई
सीरिया जैसे देश की हालात बताती हैं कि बड़े संघर्ष केवल स्थानीय मुद्दों का नतीजा नहीं होते. वहां विदेशी शक्तियों की रणनीतियां और हस्तक्षेप ने देश को विनाश की कगार पर पहुंचा दिया है. इसी तरह, इजराइल और ईरान के बीच टकराव भी केवल क्षेत्रीय विवाद नहीं, बल्कि बड़ी ताकतों की आपसी जंग का हिस्सा है.
विश्व राजनीति में डबल स्टैंडर्ड
इजराइल का ईरान पर परमाणु हथियार न बनने का डर और अमेरिका का पाकिस्तान को समर्थन देना इस डबल स्टैंडर्ड का उदाहरण है. यह दिखाता है कि वैश्विक शक्ति संघर्ष में नैतिकता और नियम अक्सर दूसरी प्राथमिकता होते हैं.
इतिहास की पुनरावृत्ति
ट्रूमैन और ट्रंप जैसे अमेरिकी नेताओं की नीतियां दिखाती हैं कि अमेरिका विश्व शक्ति के रूप में कहीं भी और कभी भी अपनी सुरक्षा के लिए आक्रामक कदम उठाने से पीछे नहीं हटता. यही आज की दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती है.
शांति की तलाश में
इस भयंकर स्थिति के बीच दुनिया को शांति की जरूरत है, लेकिन वह शांति तभी संभव है जब वैश्विक नेताओं में समझदारी और संयम होगा. युद्ध के इस दौर में साधनों की पवित्रता की याद रखना और संघर्ष को खत्म करने की कोशिश करना ही असली समाधान हो सकता है.
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