नई दिल्ली: जुलाई महीने में रिटेल महंगाई दर (CPI) में उल्लेखनीय गिरावट आई है और यह 1.55% पर आ गई है, जो पिछले 8 साल और 1 महीने में सबसे कम स्तर है. इससे पहले जून 2017 में यह महंगाई दर 1.54% दर्ज की गई थी. तुलना करें तो जून 2025 में महंगाई दर 2.10% थी, जो मई में बढ़कर 2.82% और अप्रैल में 3.16% पर पहुंच गई थी. इस गिरावट का मुख्य कारण खाने-पीने के सामानों की कीमतों में आई नरमी है.
रिटेल महंगाई दर की इस कमी को लेकर केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भी राहत की सांस ली है, क्योंकि जुलाई की यह दर RBI के महंगाई लक्ष्य 4% ± 2% की सीमा के अंदर है. यानी फिलहाल महंगाई नियंत्रित स्थिति में है और यह RBI की निर्धारित सीमा के नीचे बनी हुई है.
खाने-पीने के सामानों की कीमतों में आई गिरावट
महंगाई के कुल आंकड़ों में करीब आधे हिस्से का योगदान खाने-पीने के सामानों का होता है. इस श्रेणी में महंगाई दर महीने-दर-महीने घटकर माइनस 1.76% पर आ गई है, जबकि जून में यह माइनस 1.06% थी. यह संकेत करता है कि इस महीने खाद्य वस्तुओं की कीमतें घट गई हैं, जिससे महंगाई पर व्यापक असर पड़ा है.
जुलाई में ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई दर 1.72% से घटकर 1.18% रह गई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह दर 2.56% से गिरकर 2.05% पर आ गई है. यह स्पष्ट करता है कि महंगाई में कमी दोनों क्षेत्रों में महसूस की गई है, हालांकि शहरी क्षेत्र में महंगाई अभी भी ग्रामीण की तुलना में थोड़ी अधिक बनी हुई है.
RBI ने घटाए महंगाई के अनुमान
भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में 4 से 6 अगस्त के बीच हुई मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक में वित्त वर्ष 2025-26 के लिए महंगाई का अनुमान 3.7% से घटाकर 3.1% कर दिया है. इसके अलावा, अप्रैल-जून तिमाही के लिए भी मुद्रास्फीति अनुमान को 3.4% से घटाकर 2.1% किया गया है. यह संकेत देता है कि आने वाले समय में महंगाई दर स्थिर या नियंत्रित रहने की संभावना है.
महंगाई क्यों बढ़ती और घटती है?
महंगाई यानी वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में लगातार वृद्धि या कमी, बाजार की मांग और आपूर्ति के संतुलन पर निर्भर करती है. जब लोगों के पास खर्च करने के लिए अधिक धन होता है और वे ज्यादा सामान खरीदते हैं, तो मांग बढ़ जाती है. यदि मांग के मुताबिक सप्लाई उपलब्ध नहीं होती, तो कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे महंगाई बढ़ती है.
इसके विपरीत, जब मांग कम हो जाती है या सप्लाई की उपलब्धता बढ़ जाती है, तो कीमतें स्थिर रहती हैं या गिरती हैं, जिससे महंगाई कम होती है. बाजार में पैसों का अत्यधिक प्रवाह या वस्तुओं की कमी महंगाई के दो मुख्य कारण माने जाते हैं.
महंगाई मापने का पैमाना, कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स
ग्राहक के रूप में हम सभी रोजाना रिटेल बाजार से सामान खरीदते हैं. कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) इस बात को मापता है कि हमारे द्वारा खरीदे गए सामान और सेवाओं की कीमतों में कितना बदलाव आया है. यह औसत मूल्य परिवर्तन दर्शाता है, जिससे महंगाई की दर तय होती है.
सरकार और RBI इसी CPI के आंकड़ों को आधार मानकर नीतिगत फैसले लेते हैं, जैसे ब्याज दरों में बदलाव या अन्य आर्थिक उपाय, ताकि अर्थव्यवस्था को स्थिर रखा जा सके.
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