यूक्रेन युद्ध के बीच रूस ने अपनी सैन्य मौजूदगी को विस्तार देने की नई योजना से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की रणनीतिक नींदें उड़ा दी हैं. रक्षा मामलों की अंतरराष्ट्रीय मैगज़ीन Jane's Defence Weekly की एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने इंडोनेशिया से आधिकारिक रूप से अनुरोध किया है कि वह पापुआ प्रांत के बियाक द्वीप स्थित मनुहुआ एयरबेस पर अपने लंबी दूरी के लड़ाकू विमान तैनात कर सके.
यह एयरबेस ऑस्ट्रेलिया के डार्विन शहर से महज़ 1200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक रणनीतिक मोर्चे की तरह देखा जा रहा है. इस खबर के सामने आते ही ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी एल्बनीज़ ने इंडोनेशियाई प्रशासन से तत्काल स्पष्टीकरण मांगा, जबकि रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्लेस ने अपने इंडोनेशियाई समकक्ष सजफ्री सजमसोएद्दीन से बातचीत कर रिपोर्ट को गलत बताया.
क्या है मनुहुआ एयरबेस की रणनीतिक अहमियत?
मनुहुआ एयरबेस फिलहाल इंडोनेशियाई वायुसेना के एविएशन स्क्वाड्रन 27 का बेस है, जहां CN235 निगरानी विमानों का छोटा बेड़ा तैनात है. बेस एक साधारण रनवे साझा करता है, लेकिन हाल ही में यहां 9वीं एयर विंग की स्थापना की गई है, जिससे इसके विस्तार की संभावनाएं बढ़ गई हैं.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अभी तक रूस को रनवे का अधिकार नहीं मिला है, लेकिन अगर यह कदम उठाया जाता है, तो यह अमेरिका-चीन टकराव वाले दक्षिण चीन सागर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में रूस की प्रभावी मौजूदगी दर्ज कराएगा.
रूस की मंशा और अमेरिका की चिंता
अगर रूस अपने लड़ाकू विमानों को मनुहुआ एयरबेस पर तैनात करता है, तो इनमें टुपोलेव TU-95 और TU-160 जैसे परमाणु-सक्षम बमवर्षक शामिल हो सकते हैं. इन विमानों को रूस अपनी स्ट्रैटेजिक एयर पावर का प्रतीक मानता है और इन्हें विशेष रूप से परमाणु और भारी बम गिराने के लिए डिजाइन किया गया है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इन भारी विमानों की तैनाती के लिए एयरबेस के रनवे को विस्तारित करना अनिवार्य होगा, जिससे भारी निवेश की आवश्यकता पड़ेगी. रूस के लिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
इतिहास दोहराने की आशंका?
2017 में रूस ने इसी एयरबेस से अपने दो TU-95 बमवर्षकों की उड़ान भरवाकर पश्चिमी देशों को एक अप्रत्याशित संदेश दिया था. हालांकि वह मिशन अस्थायी था, लेकिन इससे क्षेत्रीय तनाव जरूर बढ़ा था. अब, यदि रूस की तैनाती स्थायी होती है, तो यह अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के लिए एक गंभीर रणनीतिक चुनौती बन सकती है.
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