रूस और चीन के रिश्तों में बीते कुछ समय में जिस तरह से गर्माहट आई है, उसने वॉशिंगटन की चिंता बढ़ा दी है. रूस पर अमेरिका और यूरोप के सख्त प्रतिबंध भले ही लागू हों, लेकिन मॉस्को ने अब एक नई रणनीति अपनाई है वो भी आर्कटिक की बर्फीली राहों से होकर.
रूस अब अपनी Arctic LNG 2 परियोजना से निकली प्राकृतिक गैस को सीधे चीन तक पहुंचा रहा है, और अमेरिका इस घटनाक्रम को महज़ देखता रह गया है.
प्रतिबंधों की अनदेखी, टैंकर चीन की ओर
हाल ही में "Voskhod" नाम का एक रूसी टैंकर चीन के Beihai टर्मिनल पर लिक्विफाइड नैचुरल गैस (LNG) लेकर पहुंचा. इससे पहले अगस्त में "Arctic Mulan" नाम का टैंकर भी यही माल लेकर चीन पहुंचा था. मौजूदा रिपोर्टों के अनुसार, कम से कम तीन और रूसी टैंकर LNG के साथ चीन की ओर रवाना हो चुके हैं. रूस की यह चाल अमेरिकी पाबंदियों को सीधे चुनौती देने वाली मानी जा रही है.
रूस-चीन के रिश्तों में दिख रही मजबूती
ये घटनाएं ऐसे समय सामने आई हैं जब व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग की मुलाकातें लगातार चर्चा में रही हैं. पुतिन हाल ही में बीजिंग में आयोजित SCO समिट और चीन की विजय परेड में शामिल हुए. इस राजनीतिक मेल-जोल के बीच इन ऊर्जा सौदों को रणनीतिक गठबंधन की दिशा में एक ठोस कदम माना जा रहा है.
चीन को क्या है फायदा?
सीधा और साफ फायदा है. सस्ती ऊर्जा आपूर्ति. जब अमेरिका और यूरोप रूस से व्यापारिक रिश्ते खत्म कर रहे हैं, चीन ने मौके को भुनाते हुए रियायती दरों पर गैस खरीदना शुरू कर दिया है. इससे चीन को अपने औद्योगिक और घरेलू जरूरतों के लिए सस्ते ईंधन का स्रोत मिल रहा है. बीजिंग को अमेरिकी नाराज़गी की कोई परवाह नहीं है, और यही बात अमेरिका को अंदर ही अंदर परेशान कर रही है.
अमेरिका की बढ़ती चिंता
अमेरिका की रणनीति साफ थी. रूस पर आर्थिक दबाव बनाकर यूक्रेन युद्ध पर लगाम लगाना. लेकिन अगर रूस को चीन जैसा बड़ा खरीदार मिल गया, तो यह दबाव बेअसर हो सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिका ने जल्द कोई सख्त कदम नहीं उठाया, तो भविष्य में भारत भी रूस से सस्ती गैस का नया ग्राहक बन सकता है. ऐसे में न केवल रूस का आर्थिक आधार मजबूत होगा, बल्कि अमेरिका की भूराजनीतिक पकड़ भी कमजोर हो सकती है.
क्या भारत अगला कदम हो सकता है?
भारत के लिए भी सस्ती ऊर्जा एक आकर्षक विकल्प है. बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिक विकास और ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए, रूस से सीधे LNG आयात का विकल्प भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद हो सकता है. हालांकि भारत अभी अमेरिका और रूस दोनों के साथ संतुलन बनाए हुए है, लेकिन बाजार की जरूरतें और कूटनीतिक लचीलापन कभी भी समीकरण बदल सकते हैं.
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