Independence day 2025: सुबह की पहली किरण के साथ जैसे ही लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा लहराया, पूरा देश एक बार फिर उस ऐतिहासिक क्षण की ओर लौट गया जब 15 अगस्त 1947 को भारत ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ा था. 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12वीं बार लाल किले से देश को संबोधित किया, और इस बार उनका भाषण न सिर्फ बीते वर्षों का स्मरण था, बल्कि आने वाले भविष्य की दिशा का भी संकेत था.
अपने संबोधन की शुरुआत में प्रधानमंत्री मोदी ने आज़ादी के समय की आशाओं, सपनों और संघर्षों की याद दिलाई. उन्होंने कहा कि 1947 में भारत अनंत संभावनाओं के साथ आज़ाद हुआ, लेकिन चुनौतियाँ भी उसी अनुपात में थीं. फिर भी, हमारे पूर्वजों ने एक मज़बूत लोकतंत्र की नींव रखी, एक ऐसा राष्ट्र जो संविधान के सिद्धांतों पर खड़ा है.
संविधान निर्माताओं को किया नमन
प्रधानमंत्री ने गर्व के साथ उन महापुरुषों और महिलाओं को श्रद्धांजलि दी जिन्होंने भारत के संविधान को आकार दिया. उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. भीमराव अंबेडकर, पंडित नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे राष्ट्र निर्माताओं का नाम लेते हुए कहा कि संविधान पिछले 75 वर्षों से भारत का पथप्रदर्शक रहा है.
उन्होंने यह भी ज़ोर दिया कि भारत के संविधान में नारी शक्ति का योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण रहा है. हंसा मेहता और बेला युधन जैसी महिलाओं ने संविधान निर्माण में जो भूमिका निभाई, वो आज भी प्रेरणास्त्रोत है.
"एक देश, एक संविधान" की भावना
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को विशेष रूप से याद किया. इस साल उनकी 125वीं जयंती के अवसर पर पीएम ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाकर "एक राष्ट्र, एक संविधान" का सपना पूरा किया गया, यह डॉ. मुखर्जी के बलिदान को सच्ची श्रद्धांजलि है. उन्होंने कहा, "आज जो भारत एकता की नई मिसाल पेश कर रहा है, उसमें इन पुरखों की दूरदृष्टि और बलिदान की छाया साफ दिखती है."
इस ऐतिहासिक संबोधन में सिर्फ अतीत की गौरवगाथा नहीं थी, बल्कि एक सशक्त, एकजुट और आत्मनिर्भर भारत की स्पष्ट झलक थी. प्रधानमंत्री का भाषण एक प्रेरणा थी, कि आज़ादी सिर्फ जश्न नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी भी है.
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