नवरात्रि चल रहे हैं और अगर महिला शक्ति को किसी ने पहचाना है तो वो प्रधानमंत्री जी ने पहचाना है और वो महिला शक्ति को जितना सम्मान दे रहे हैं मुझे नहीं लगता कि मेरी याद में कभी इतना सम्मान किसी नारी को या महिला को मिला हो. वह बस वहीं तक सीमित थी कि अपने घर के काम करें या कन्वेंसिंग में लग जाए या वोट डलवा दें या कुछ और लेकिन प्रधानमंत्री जी ने नारी अभिनंदन बिल ला के यह साबित कर दिया कि अब 33% महिलाएं चुनाव लड़ेंगी. ये सबसे बड़ा डिसीजन उनका और जिस तरह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं और मैं अपने विभाग में देखती भी हूं कि हम लोग उस कार्य को कैसे वो मतलब जमीन पर उतरी उन महिलाओं की जो योजनाएं उन तक पहुंचे.
आत्मनिर्भर भारत बनाने में महिलाओं की इससे बड़ी भूमिका हो नहीं सकती. वो डिसीजन मेकर हो गई है. आज वो निर्णय लेने की क्षमता उसके अंदर आ गई है कि उसे जो सही लगेगा वह वही करेगी. तो इतना बड़ा एक आधी आबादी के लिए हमको मैं तो पुनः आभार व्यक्त करूंगी प्रधानमंत्री जी का कि उन्होंने कहां तक महिलाओं को पहुंचाया? मुझे उत्तराखंड की गवर्नर बना दिया उन्होंने. जबकि मैं अमेरिका में बैठी थी. तो यह महिला का सम्मान नहीं है तो और क्या है भाई? तो ऐसे प्रधानमंत्री जी का जितना आभार व्यक्त करूं कम है.
"87,000 स्वयं सहायता समूह चल रहे"
लगभग आज हमारे 87,000 स्वयं सहायता समूह चल रहे हैं और 95 लाख महिलाएं उन समूहों से जुड़ी हैं जो अनेक कार्य कर रही हैं जो आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं. जब हमारी बात होती है स्वयं सहायता समूह की बहनों से तो वह कहती हैं कि पहले हम घर में बैठे रहते थे कोई काम नहीं होता था. आज हमारी आमदनी 10,000 से लेकर 15,000 तक हो गई है. महिला के पास अगर पैसा आ जाए तो सबसे पहले वो अपने बच्चों का भला सोचती है. मेरे बच्चों की पढ़ाई अच्छी हो. उन्हें भोजन अच्छा मिले. उसके बाद अगर कुछ बचता है तो उसे लगता है कि अब मैं अपने ऊपर भी थोड़ा सा कुछ खर्च करूं. और जब उसमें यह भावना आ जाती है कि मुझे अपने ऊपर भी खर्च करना है तो एक उसमें स्वाभिमान जागता है और उसे लगता है कि मैं अपनी कमाई से मुझे पति से भी अब नहीं पूछना है कि मैं खर्च करूं कि नहीं करूं तो यह एक बड़ा बदलाव आया है और स्वयं सहायता समूह के माध्यम से आया है और जब महिलाओं में बदलाव आता है कोई भी महिला हो चाहे पढ़ी लिखी हो चाहे नहीं पढ़ी हो चाहे कम पढ़ी हो लेकिन जब वो दृढ़ निश्चय कर लेती है कि मुझे इस इस काम को करना है तो वो करके ही पीछे हटती है.
"हमारी गांव की बहन भी आगे बढ़ रही"
अब गांव की महिलाएं भी स्वयं सहायता समूह से बहुत जुड़ी हुई हैं. हम सखी दीदी बना रहे हैं. उन्हें बैंकिंग से जोड़ रहे हैं. ड्रोन दीदी बना रहे हैं हम. वह शहरी नहीं है. वह गांव की पढ़ी लिखी हमारी बच्चियां हैं. इसके अलावा जो भी नए-नए कार्य जो हो रहे हैं, नवाचार जो प्रधानमंत्री जी ने किया है, उन सब में महिलाओं बहनों को जोड़ा है उन्होंने और अब खाई पाटने वाली बात मुझे तो लगती नहीं के शहरी महिला से जा से अधिक नहीं तो बराबर तो ग्रामीण महिलाएं भी हमारी कुछ ना कुछ कमा रही हैं और आगे बढ़ रही हैं. मैं एक बात और कहूंगी मेरी विधानसभा ग्रामीण है. जब मैं निकलती हूं तो वहां मुझे इतनी खुशी होती है कि बेटियां हाथ में मोबाइल लेके और अपना आधुनिक लिबास पहन के चाहे वो खेतों पर चल रही हो, चाहे वो रोड पर चल रही हो, चाहे वो स्कूल जा रही हो, चाहे स्कूटी से जा रही हो, चाहे साइकिल से जा रही हो तो मन में एक गर्व की अनुभूति होती है कि अब हमारी गांव की बहन भी आगे बढ़ रही है.
यह भी देखेंः
महिला उद्यमिता और स्टार्टअप के लिए क्या है योजना?
सरकार ने इतनी योजनाएं बनाई है. चाहे केंद्र सरकार हो चाहे उत्तर प्रदेश सरकार हो. अगर वही ईमानदारी से धरती पर उतर जाए, वही हम जमीन पर उतार दें तो और योजनाओं की आवश्यकता नहीं है. आज हम वन डिस्ट्रिक्ट वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के माध्यम से बहनों को आगे बढ़ा सकते हैं. आज हम एमएसआई के माध्यम से आगे बढ़ा सकते हैं कि कैसे छोटे-छोटे उद्योग लगा के बहनें आगे बढ़ सकती हैं. और फिर यह तो उसकी कार्य क्षमता और उसकी स्मरण शक्ति के ऊपर निर्भर करता है कि वह कितना आगे बढ़ना चाहती है और उसे आगे बढ़ने से आज कोई नहीं रोक पा रहा है.
बच्चों के पोषण के लिए क्या कर रही मंत्रालय?
प्रधानमंत्री जी ने एक नया नारा दिया है सशक्त महिला सशक्त परिवार सशक्त परिवार सशक्त भारत अगर हमारी महिला सशक्त हो गई, हमारी महिला जागरूक हो गई, हमारी बहन जागरूक हो गई तो बच्चों को सही पोषण देगी और जब बच्चों को सही पोषण मिलेगा तो उनका मानसिक विकास उनका का शारीरिक विकास बहुत ज्यादा होगा और जो पोषण की बात है, मेरे विभाग से आज हमारी एक 1 लाख 80 हजार लगभग आंगनबाड़ी केंद्रों से हम दो करोड़ बच्चों को भोजन दे रहे हैं और भोजन भी हेल्दी उसमें फोटोफाइट दलिया होता है, दाल होती है, तेल होता है, चावल होता है, जो उसको मानसिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए शारीरिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है. सरकार तो कर ही रही है अपना काम. इसके साथ-साथ हमारे बहुत सारे एनजीओस ऐसे बच्चों का जो कुपोषित हैं, पोषण करने के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं और आज मैं बड़े गर्व से कह सकती हूं कि जो कुपोषित बच्चे थे वह बाहर निकल आए हैं और पोषण उन्हें इतना अच्छा मिला है कि वो अब स्वस्थ हैं. स्कूल जाने की तैयारी में हैं और हमारे आंगनबाड़ी केंद्र पे आके अपनी प्री एजुकेशन है उसे भी कर रहे हैं.
महिलाओं के कौशल विकास के लिए क्या कर रही मंत्रालय?
शिक्षा तो बहनें ले रही हैं. बेटियां जाती हैं स्कूल. अब बहुत कम बेटी कोई ऐसी होगी जो नहीं जा रही होगी. वो किसी कारण से नहीं जा रही होगी. हो सकता है मतलब उसे हेल्प की प्रॉब्लम हो या कोई और लेकिन सरकार ने इतनी सुविधा दे रखी है कन्या सुमंगला योजना में हम ₹25000 उसके जन्म से ले और वो जब तक शिक्षा लेगी उसके बैंक खाते में डाल रहे हैं हम उनके सामूहिक विवाह कर रहे हैं तो और ऐसी अनेक योजनाएं जो चल रही हैं हमारी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना चल रही है हमारी जब बेटियों के लिए इतना फोकस प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री ने कर रखा है. तो मैं यह कहूंगी शिक्षित हो रही हैं बेटियां जो आपने कौशल विकास की बात की है केवल वो अपनी रुचि के अनुसार जैसे नई शिक्षा नीति में कि हमें क्या शिक्षा लेनी है. ऐसे ही हमारी रुचियां अनेक होती हैं. मैं उत्तराखंड की बात करूं मैं गवर्नर रही हूं. कितनी सशक्त महिला है वहां की और अपनी रुचि के अनुसार कार्य करती है. किसी को अचार डालने का शौक है. कोई कढ़ाई बनाई में बहुत आगे है. कोई जड़ी बूटियों से दवा बनाने में बहुत आगे है. तो यह बेटी की सोच है. उसके अब हम अपनी इच्छाएं नहीं थोप सकती. अब वो जो चाहेगी वो करेगी. तो मैं तो यही कहूंगी कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत उसे वो शिक्षा लेके कौशल विकास में वो जिस क्षेत्र में जाना चाहती हैं उसे जाना चाहिए और आत्मनिर्भर बनना चाहिए.
"कोई ना कोई महिला किसी की रोल मॉडल होती है"
उस समय तो बड़ा प्राउड फील होता ही है और कोई ना कोई महिला किसी की रोल मॉडल होती है वो जरूर किसी ना किसी से कुछ सीखती है मैंने भी किसी से सीखा है तब मैं यहां तक पहुंची हूं आज मैं अपनी वजह से नहीं कह रही, महिलाएं बहने हमें फॉलो करती हैं वो चाहती हैं कि जैसी बेबी रानी है हम भी वैसी बने और हम जो उन्हें कह दें उसे करती हैं और फिर आकर बताती भी है कि दीदी आपने ऐसे कहा था तो हमने किया और मैं उनसे कहती भी हूं कि तुम्हारे पास दो घंटे भी खाली है दिन के तो जो तुम्हारे अंदर टैलेंट है जो तुम काम जानती हो उस अपने टैलेंट को उस अपनी प्रतिभा को बाहर तो लाओ लोगों को तो पता तो चले कि आप क्या कर सकती हो तो उनकी शक्ति जगानी पड़ती है और जब शक्ति उनकी जगती है तो फिर वह दुर्गा माता का रूप रख के आगे बढ़ने का पूरा प्रयास करती हैं.
महिलाओं को अपने अंदर क्या बदलाव करनी चाहिए?
अब और कौन से बदलाव की जरूरत है? आज महिला हमारी फोकस है, प्रधानमंत्री जी की नजरों में भी और मुख्यमंत्री जी के नजरों में भी. इतने रिफॉर्म किए इतने बदलाव किए हैं अगर उसको महिला सही तरीके से मैं यह भी कहना चाहूंगी ईमानदारी से और सही तरीके से उन्हें अपनाए तो वो आगे बढ़ती जाएगी उसे कोई रोक नहीं सकता. बस मैं इतना ही कहूंगी.
रूढ़िवादी सोच वालों के लिए क्या है संदेश?
रूढ़िवाता तो नहीं जो हमारी पुरानी संस्कृति है, पुराना जो कल्चर है, हमारे बड़े बुजुर्ग आज तक उसी से जुड़े हुए हैं. अब बेटियों में वह बदलाव देख के उन्हें यह लगता था कि हमारे जमाने में तो यह नहीं होता था. अब हो रहा है. लेकिन उन्हें जो बदलाव है एक्सेप्ट करना चाहिए और उस बदलाव को जब तक एक्सेप्ट नहीं करेंगे हम अपनी बेटियों को आगे नहीं बढ़ा सकते. मैं भी रूढ़वादी परिवार से थी. लेकिन मेरे पिता ने मुझे पढ़ाया कि नहीं तुम्हें पढ़ना है. तुम्हें आगे बढ़ना है. यह शिक्षा दी उन्होंने और हर माता-पिता का सम्मान करना हर बेटी का हर बेटे का कर्तव्य है. और उनके ही दिशा निर्देश में अगर वह आगे बढ़ेगा तो उसकी उन्नति और प्रगति तो बिल्कुल निश्चित है. कोई रोक नहीं सकता. माता-पिता का आशीर्वाद भी बहुत जरूरी है. हम उसे रूढ़िवाद बाधिता नहीं कहें. हमें भी कहीं झुकना पड़ेगा. कुछ हमारे बड़े हैं जो परिवार के थोड़ा सा वो भी झुकेंगे तो रास्ता नया निकल और मुझे लगता है वो एक जनरेशन गैप भी होता है. गैप क्योंकि मुझे लगता है कि अगले आगे की जो 10 साल बाद जो पीढ़ी होगी उसके भी शायद ऐसा हो सकता है कि हमसे या मुझसे जो थॉट प्रोसेस वो मैच ना करता हो. तो हमें भी उस चीज को एक्सेप्ट करना पड़ेगा. सही बात तो ये है मेरे और आपके अंदर भी एक जनरेशन कैसी है, जो मैं सोचती थी उस जमाने में इसको आप उससे बहुत आगे सोच रही हैं . आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता जनरेशन गैप है. हमें बड़ों की बात का सम्मान रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए वो कहीं नहीं रोकेंगे आपको सपोर्ट ही करेंगे ठीक है, तुमने सही कदम उठाया ठीक है, आगे जाओ क्योंकि ये बात तो सच है कि हर जो पेरेंट्स है वो चाहते हैं उनके बच्चे आगे बढ़े. उनके बच्चे तरक्की करें और वो गौरवान्वित महसूस करें. ये हर कोई चाहता है.
पिछले आठ सालों में महिलाओं की तस्वीर कितनी बदली है?
हर क्षेत्र में महिला आज परचम लहरा रही है. जमीन से लेके आसमान तक वो. फाइटर प्लेन भी चला रही है तो वह खेती किसानी भी कर रही है. वह कहीं पायलट वो कहीं डॉक्टर भी है तो कहीं इंजीनियर भी है. कहीं वो जहाज भी उड़ा रही है. कहीं वो आर्मी में जाके देश की सुरक्षा भी कर रही है. पुलिस में जाके हमारी जो बच्चियां हैं, बेटियां हैं उनकी सुरक्षा कर रही है. हर क्षेत्र में आज बेटी आगे बढ़ रही है. उसे अब कोई रोकने वाला नहीं है. अब वह आगे बढ़ेगी. ऑपरेशन सिंदूर में महिलाएं ऑफिसर्स आकर बताती है कि कैसे हमने ऑपरेशन को अंजाम दिया. यह तस्वीर बदलती हुई है. ऑपरेशन सिंदूर जरूरी भी था और उसके लिए जो प्रधानमंत्री जी ने कदम उठाया हम सबको उनको धन्यवाद करना चाहिए, आभार करना चाहिए कि कोई भी घुसपैठिया कोई भी दुश्मन अगर भारत की तरफ आंख उठा के देखेगा तो उसका हर्ष यही होगा जो उनके ही पाकिस्तान में घुस के जाके मारा. यह आज का बदलाव है और यह आज सिंदूर मिशन भी वही है.
अगले पांच साल का क्या है विजन?
आपने सवाल में जवाब भी दे ही दिया कि लोकल फॉर वोकल होना पड़ेगा. हमें जब तक हम स्वदेशी को नहीं अपनाएंगे आगे नहीं बढ़ सकते. आज हमें स्वदेशी को लेकर ही आगे बढ़ना पड़ेगा. जितने भी देश आगे बढ़े हैं चाहे वह जापान हो, चाहे कोई और देश हो वो अपने स्वदेशी को ही ले आगे बढ़े. वो भाषा भी अपनी बोलते हैं. तो प्रधानमंत्री जी का जो विज़न है आगे 5 साल का नहीं 47 तक का कह रही हूं मैं. तो 47 जब तक हम स्वदेशी को लेके आगे नहीं बढ़ेंगे. अपनी संस्कृति को लेके आगे नहीं बढ़ेंगे. अपना जो माता-पिता का सम्मान है उसे ले आगे नहीं बढ़ेंगे. हम बड़े सपने नहीं देख सकते. हमको बड़े सपने देखने पड़ेंगे. स्वदेशी के साथ देखने पड़ेंगे और जब स्वदेशी के साथ बड़े सपने देखेंगे तो 5 साल में वो बदलाव और भी ज्यादा दिखाई देगा.
संगठन से मंत्री तक का कैसा रहा सफर?
मेरा सफर बड़ा लंबा है. मैं 95 में आगरा की महापौर बनी थी. मैंने पढ़ा था आपके बारे में. और 2002 में राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य बनी थी. 2002 से पांच तक उसके बाद मैंने संगठन में काम किया और संगठन में काम करते-करते मेरी सेवाओं को या महिलाओं के प्रति जो मेरे कार्य हैं, मैं गरीब बेटियों की शादियां भी करती हूं. मैं छोटे बच्चों को स्कूल भेजने का भी काम करती हूं. मैं अनेक कार्य करती हूं. तो वह सारे काम मैंने किए तो संगठन को कहीं लगा कि यह महिलाओं के लिए आगे कार्य कर सकती है. तो उसके लिए उन्होंने मुझे आगे बढ़ने का मौका दिया. मुझे उत्तराखंड की गवर्नर बनाया. आज कैबिनेट मंत्री हूं. महिला कल्याण महिला पुरुषार बाल विकास देख रही हूं. तो यह सब हमारे संगठन की देन है कि जहां महिलाएं अच्छा कार्य करती हैं उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिलता है.
यह भी पढ़ें- क्या UNSC का स्थायी सदस्य बनेगा भारत? संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने भी किया समर्थन, चीन होगा परेशान!