ROS-ISRO Partnership: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) अगले कुछ वर्षों में अपनी सेवा समाप्त करने वाला है. जैसे-जैसे 2030–31 का समय नजदीक आ रहा है, दुनिया की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियां अपने-अपने स्वतंत्र स्टेशन विकसित कर रही हैं.
इसी क्रम में भारत और रूस ने एक ऐतिहासिक और रणनीतिक निर्णय लेते हुए भविष्य के अपने स्पेस स्टेशनों को एक ही कक्षीय मार्ग में स्थापित करने का फैसला किया है. यह घोषणा रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस के प्रमुख दमित्री बकानोव ने नई दिल्ली में अपने दौरे के दौरान की, जहाँ वे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ भारत आए थे.
एक ही कक्षा, क्यों लिया गया यह निर्णय
रूस और भारत दोनों ने अपने स्पेस स्टेशन को 51.6 डिग्री झुकाव वाली कक्षा में स्थापित करने पर सहमति जताई है. यही कक्षा वर्तमान में ISS भी इस्तेमाल करता है. इस झुकाव वाली कक्षा का लाभ यह है कि यह पृथ्वी के बड़े हिस्से को कवर करती है और अंतरिक्ष यान के लिए डॉकिंग करना आसान बनाती है.
रूस के सोयूज मिशन और भारत के गगनयान मिशन इसी पथ पर एक-दूसरे से जुड़ सकेंगे. यात्रा के दौरान ईंधन की कम खपत, संचालन में सरलता और अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अधिक सुरक्षा इस कक्षा के सबसे बड़े फायदे हैं. पहले रूस अपने स्टेशन को 96 डिग्री कक्षा में भेजने पर विचार कर रहा था, लेकिन भारत के साथ व्यापक सहयोग सुनिश्चित करने के बाद उसने यह योजना बदल दी.
रूस का ROS और भारत का BAS
रूस का आगामी ऑर्बिटल स्टेशन, जिसे ROS यानी रशियन ऑर्बिटल स्टेशन कहा जा रहा है, रूस के प्रमुख वैज्ञानिक केंद्र एनर्जिया द्वारा विकसित किया जाएगा. यह स्टेशन केवल शोध और प्रयोग का केंद्र ही नहीं होगा, बल्कि इसे भविष्य के गहरे अंतरिक्ष अभियानों के लिए निर्माण और परीक्षण आधार के रूप में भी तैयार किया जा रहा है. मॉड्यूलर डिज़ाइन इसे आने वाले कई दशकों तक विस्तारित करने की क्षमता देगा.
भारत का भावी स्पेस स्टेशन BAS (भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन) ISRO द्वारा विकसित किया जाएगा और इसे 2035 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. यह स्टेशन भारत के लिए एक स्वतंत्र मानवयुक्त मिशन आधार बनेगा. माइक्रोग्रैविटी अनुसंधान, अंतरिक्ष चिकित्सा, जैविक प्रयोग, पृथ्वी अवलोकन और भविष्य के चंद्र तथा मंगल अभियानों की तैयारी इसी स्टेशन के माध्यम से होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे भारत के स्वतंत्रता शताब्दी वर्ष से पहले संचालन में लाना चाहते हैं.
स्टेशन कब तक बनकर तैयार होंगे
रूस की योजना के अनुसार ROS का पहला वैज्ञानिक और पावर मॉड्यूल 2028 में लॉन्च किया जाएगा. 2030 तक इसके चार प्रमुख मॉड्यूल अंतरिक्ष में पहुँच जाएंगे और 2031 से 2033 के बीच अतिरिक्त मॉड्यूल जोड़कर इसे पूर्ण आकार दिया जाएगा. इसके लिए रूस ने अंगारा-A5M रॉकेटों का ऑर्डर भी जारी कर दिया है.
भारत का BAS स्टेशन 2035 तक तैयार होने की ओर बढ़ रहा है. स्पेडेक्स डॉकिंग तकनीक में हालिया सफलता ने भारत को उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल कर दिया है जो स्वचालित डॉकिंग तकनीक में सक्षम हैं. यह तकनीक भविष्य के स्पेस स्टेशन संचालन की रीढ़ मानी जाती है.
ISS के बाद की दुनिया, भारत और रूस की भूमिका
ISS के 2030-31 में सेवामुक्त होने के बाद अंतरिक्ष में नए गठबंधन बन रहे हैं. रूस पहले ही अमेरिका के साथ ISS संचालन के बाद सहयोग जारी न रखने की घोषणा कर चुका है. ऐसे माहौल में भारत-रूस की भागीदारी दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है.
दोनों देशों के अंतरिक्ष यात्री भविष्य में एक-दूसरे के स्टेशन पर आसानी से जा सकेंगे, वैज्ञानिक प्रयोग साझा होंगे और संकट की स्थिति में एक स्टेशन दूसरे की सहायता कर सकेगा.
रणनीतिक और वैज्ञानिक महत्व
इस साझेदारी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यात्रा और डॉकिंग सरल होने से संयुक्त मानव मिशन लगातार संभव रहेंगे. वैज्ञानिक दृष्टि से दोनों देशों को साझा प्रयोगों का व्यापक लाभ मिलेगा, जिसमें दीर्घकालिक अंतरिक्ष निवास, विकिरण प्रभाव, जैविक शोध, नई सामग्री विज्ञान और गहरे अंतरिक्ष मिशन शामिल हैं.
रूस भारत को उन्नत इंजन तकनीक प्रदान करेगा, और भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को रूस के विशेष अंतरिक्ष प्रशिक्षण केंद्रों में व्यापक प्रशिक्षण मिलेगा. इसके साथ ही भारत को इंजन निर्माण और स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्रों में स्वनिर्भरता हासिल करने में सहायता मिलेगी.
भारत-रूस के गहरे अंतरिक्ष संबंधों की निरंतरता
भारत और रूस का अंतरिक्ष सहयोग कई दशकों पुराना है. भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट रूसी सहायता से अंतरिक्ष में गया था. रूस ने चंद्रयान-2 मिशन में भी महत्वपूर्ण तकनीकी सहयोग दिया था, और गगनयान मिशन के लिए भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को रूस में ही प्रशिक्षण मिला. यह नया समझौता इस साझेदारी को और गहरा करता है और भविष्य में इसे नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा.
अंतरिक्ष में भारत-रूस कॉरिडोर
विशेषज्ञों का मानना है कि 2030 के दशक तक अंतरिक्ष में एक ऐसा क्षेत्र विकसित होगा जिसे भारत-रूस कॉरिडोर के रूप में जाना जाएगा. यह कॉरिडोर दो स्वतंत्र लेकिन सहयोगी स्टेशनों का समूह होगा, जहाँ प्रयोग, यात्रा और संचालन एक-दूसरे के पूरक होंगे. इसके माध्यम से न केवल वैज्ञानिक प्रगति तेज होगी बल्कि भारत वैश्विक अंतरिक्ष प्रतियोगिता में और अधिक मजबूत होकर उभरेगा, वहीं रूस को ISS के बाद एक विश्वसनीय रणनीतिक साझेदार मिल जाएगा.
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