UN में पाकिस्तान का कश्मीर कार्ड फेल, बिलावल भुट्टो ने खुद मानी अपनी हार! खुद को बताए आतंक से पीड़ित

    पाकिस्तान द्वारा वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाए जा रहे कश्मीर मुद्दे को इस बार संयुक्त राष्ट्र में वैसी प्रतिक्रिया नहीं मिली, जैसी इस्लामाबाद को अपेक्षा थी.

    Pakistans Kashmir card fails in UN
    बिलावल भुट्टो/Photo- ANI

    न्यूयॉर्क: पाकिस्तान द्वारा वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाए जा रहे कश्मीर मुद्दे को इस बार संयुक्त राष्ट्र में वैसी प्रतिक्रिया नहीं मिली, जैसी इस्लामाबाद को अपेक्षा थी. विदेश मंत्री और पाकिस्तान डिप्लोमैटिक मिशन के प्रमुख बिलावल भुट्टो जरदारी ने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद इस बात को स्वीकार किया कि कश्मीर के अंतर्राष्ट्रीयकरण की कोशिशों में उनके देश को "बाधाओं का सामना करना पड़ा है."

    इस बयान ने एक बार फिर इस तथ्य को रेखांकित किया कि वैश्विक मंचों पर कश्मीर मुद्दे को लेकर पाकिस्तान की रणनीति लगातार कमजोर पड़ती जा रही है, खासकर तब जब भारत ने इसे आंतरिक मामला करार देते हुए डिप्लोमैटिक समर्थन को सफलतापूर्वक साधा है.

    कूटनीतिक भ्रम और सीमित समर्थन

    बिलावल के नेतृत्व में अमेरिका पहुंचे पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष, और विभिन्न स्थायी व अस्थायी सदस्य देशों से मुलाकात की. मुख्य उद्देश्य था—कश्मीर मुद्दे को फिर से वैश्विक एजेंडे में शामिल कराना. लेकिन मुलाकातों के बाद बिलावल का यह बयान कि “यहां भी समस्याएं मौजूद हैं”, संकेत देता है कि उन्हें अपेक्षित समर्थन नहीं मिला.

    इसके विपरीत, बिलावल ने जल विवाद और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर सकारात्मक संवाद की बात कही, जिससे यह समझा जा सकता है कि पाकिस्तान को इन मुद्दों पर अधिक तवज्जो मिल रही है बजाय कश्मीर पर.

    भारत पर आरोप, लेकिन निष्पक्षता की अपील

    संयुक्त राष्ट्र में संवाद के दौरान बिलावल ने भारत पर पहलगाम आतंकी हमले को लेकर बिना जांच पाकिस्तान को दोषी ठहराने का आरोप लगाया. उन्होंने यह भी दावा किया कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने निष्पक्ष जांच की पेशकश की थी, जिसे दिल्ली ने स्वीकार नहीं किया.

    हालांकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह दलील ज्यादा प्रभाव नहीं डाल सकी, क्योंकि भारत का रुख स्पष्ट रहा है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद उसके सबसे बड़े सुरक्षा संकटों में से एक है. भारत की ओर से इस बार भी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई, जो बताता है कि दिल्ली ने इस्लामाबाद की टिप्पणियों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

    आतंक का शिकार है पाकिस्तान- दोहराया पुराना विमर्श

    बिलावल ने फिर यह तर्क दिया कि पाकिस्तान स्वयं भी आतंकवाद का शिकार रहा है और उसने इस युद्ध में भारी कीमत चुकाई है. उन्होंने अमेरिका का धन्यवाद करते हुए यह भी कहा कि हालिया तनाव के बीच अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध टालने में भूमिका निभाई.

    हालांकि, इस बयान से यह स्पष्ट नहीं हो सका कि बिलावल किस विशेष तनाव की बात कर रहे हैं, और क्या वास्तव में अमेरिका ने कोई औपचारिक मध्यस्थता की थी. भारत परंपरागत रूप से इस तरह के किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को खारिज करता रहा है.

    क्या पाकिस्तान की नीति पुनर्विचार की मांग करती है?

    कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का दशकों पुराना रुख अब वैश्विक मंचों पर न तो नैतिक समर्थन जुटा पा रहा है, न ही राजनीतिक. खासकर जब आतंकवाद और कट्टरपंथ के मसलों पर पाकिस्तान की भूमिका संदेह के घेरे में रही है, तब कश्मीर पर उसकी बातों को गंभीरता से सुना जाना और कठिन हो गया है.

    इसके साथ ही भारत ने कश्मीर को लेकर एक सुसंगत और ठोस कूटनीतिक नीति अपनाई है, जिसमें वह इसे पूरी तरह आंतरिक प्रशासनिक मामला बताता है. विश्व शक्तियों—जैसे अमेरिका, फ्रांस, रूस और यहां तक कि चीन भी—अब सार्वजनिक रूप से कश्मीर पर कोई पक्ष लेने से बचते हैं.

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