बाकू: दक्षिण कॉकस क्षेत्र में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच अजरबैजान ने अपने वायुसेना बेड़े को मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है. उसने चीन-पाकिस्तान द्वारा संयुक्त रूप से विकसित 24 JF-17 थंडर ब्लॉक-III फाइटर जेट खरीदने का सौदा किया है. यह सौदा 4.2 अरब डॉलर की लागत से कुल 40 फाइटर जेट के लिए तय हुआ है, जिसमें 16 विमानों की पहली खेप फरवरी 2024 में डील हो चुकी थी.
यह नया डिफेंस मूव भारत के लिए भी रणनीतिक नजरिए से अहम है, क्योंकि भारत अजरबैजान के विरोधी आर्मेनिया का रक्षा साझेदार है. भारत ने आर्मेनिया को अत्याधुनिक ‘आकाश एयर डिफेंस सिस्टम’ सहित कई आधुनिक हथियार सिस्टम दिए हैं. अब अजरबैजान के पास JF-17 जैसे तेज और बहुउद्देश्यीय फाइटर जेट आने के बाद क्षेत्रीय ताकतों का संतुलन नए सिरे से बन सकता है.
JF-17 थंडर ब्लॉक III
JF-17 थंडर ब्लॉक-III को मल्टीरोल कैपेबिलिटीज वाला अगली पीढ़ी का लड़ाकू विमान माना जाता है. इसे पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स और चीन की चेंगदू इंडस्ट्री ग्रुप ने मिलकर तैयार किया है.
इंजन: इसमें लगा रूसी RD-93MA टर्बोफैन इंजन इसे 1.6 मैक की रफ्तार और 50,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने की क्षमता देता है.
रडार: KLJ-7A AESA रडार इसकी लंबी दूरी तक लक्ष्य ट्रैकिंग क्षमता को बेहतर बनाता है.
हथियार क्षमता: PL-15E एयर-टू-एयर मिसाइल, गाइडेड बम, एंटी-शिप मिसाइल जैसे हथियार इसके साथ इंटीग्रेट किए जा सकते हैं.
हार्डपॉइंट्स: 8 हार्डपॉइंट्स के जरिए यह विमान करीब 4,000 किलोग्राम तक का भार लेकर उड़ सकता है.
यह जेट पश्चिमी दुनिया के महंगे फाइटर जेट्स की तुलना में सस्ता और मेंटेनेंस फ्रेंडली है. इसी वजह से अजरबैजान ने इसे चुना.
भारत-आर्मेनिया रक्षा साझेदारी
अजरबैजान की इस खरीदारी से भारत के रणनीतिक मित्र आर्मेनिया पर दबाव बढ़ सकता है. लेकिन भारत पिछले कुछ वर्षों से आर्मेनिया के साथ गहरे रक्षा संबंध बना रहा है.
भारत से आर्मेनिया को मिले हथियार:
यह सहयोग सिर्फ हथियारों तक सीमित नहीं है. आर्मेनिया ने जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर भारत की स्थिति का हमेशा समर्थन किया है, जिससे यह साझेदारी सिर्फ रक्षा नहीं बल्कि राजनयिक रूप से भी मजबूत है.
क्या होगा अगला कदम?
अब जबकि अजरबैजान को तुर्की, पाकिस्तान और चीन जैसे सहयोगियों से लगातार हथियार मिल रहे हैं, आर्मेनिया को भारत जैसे भरोसेमंद रक्षा साझेदार की ओर और मजबूती से देखना पड़ेगा.
भारत के लिए यह समय सिर्फ हथियार देने का नहीं, बल्कि संयुक्त रक्षा अभ्यास, रणनीतिक समन्वय और इंटेलिजेंस साझेदारी को और गहराने का है.
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