मेक‑इन‑इंडिया जंगी ड्रोन देख पाकिस्तान का हाल बेहाल, सेना की पश्चिमी कमान ने आसमान में दिखाई अपनी ताकत

    Indian Army Drones: ऑपरेशन सिंदूर के अनुभव ने भारतीय सेना को एक स्पष्ट सबक दिया. आधुनिक युद्ध में आसमान‑स्तर पर प्रभुत्व बनाए रखना उतना ही जरूरी है जितना जमीन पर. इस सीख के बाद पश्चिमी कमान ने हरियाणा के अंबाला में एक विशाल ड्रोन अभ्यास करके अपनी नई क्षमता का असरदार प्रदर्शन किया.

    Pakistan state of panic after seeing the Make-in-India combat drone Army Western Command
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    Indian Army Drones: ऑपरेशन सिंदूर के अनुभव ने भारतीय सेना को एक स्पष्ट सबक दिया. आधुनिक युद्ध में आसमान‑स्तर पर प्रभुत्व बनाए रखना उतना ही जरूरी है जितना जमीन पर. इस सीख के बाद पश्चिमी कमान ने हरियाणा के अंबाला में एक विशाल ड्रोन अभ्यास करके अपनी नई क्षमता का असरदार प्रदर्शन किया. सौ‑दो सौ नहीं, सैकड़ों ड्रोन एक साथ वेग से उठे और टैक्टिकल मारक क्षमता का सबक दे गए, यह अब साफ दिख रहा है कि भविष्य की लडाईयों में ड्रोन निर्णायक भूमिका निभाएंगे.

    लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार के नेतृत्व में किए गए अभ्यास में 5 किलोमीटर रेंज वाले टैक्टिकल ड्रोन का सफल डेमो प्रस्तुत किया गया. इन ड्रोन‑फ्लोट्स ने निगरानी, निशानेबाजी और मारक संचालन के परिदृश्यों में सामूहिक समन्वय दिखाया. जनरल कटियार ने स्पष्ट किया कि ड्रोन अब ऑपरेशनल प्लैनिंग का अभिन्न अंग बन चुके हैं, और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी काउंटर‑ड्रोन तंत्र ने दुश्मन के कई ड्रोन निष्क्रिय किए थे.

    मेक‑इन‑इंडिया का जनसमर्थन, हजारों ड्रोन चाहिए

    भविष्य के रणभूमि की जरूरत को देखते हुए सेना ने कहा कि अगली लड़ाई में हजारों ड्रोन तैनात करने होंगे, इसलिए लोकल इंडस्ट्री के साथ साझेदारी जरूरी है. देश के भीतर ड्रोन‑मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने से न केवल सामरिक आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि रोजगार, विनिर्माण और तकनीकी कौशल के नए रामबाण अवसर भी खुलेंगे. कटियार ने यह भी जोड़ा कि सेना लोकल इकाईयों के साथ मिलकर इन्हें फेब्रिकेट करवाना चाहती है, डिजाइन से लेकर परीक्षण तक का चक्र भारत में ही पूरा होगा.

    काउंटर‑ड्रोन से मिली सीख, ऑपरेशन सिंदूर का अनुभव

    ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी दिशा से आने वाले ड्रोन को एयरी‑डिफेन्स सिस्टम द्वारा तुंरंत लक्षित किया गया था. इस अनुभव ने यह साबित कर दिया कि सिर्फ हमले ही नहीं, पर काउंटर‑ड्रोन तकनीक भी उतनी ही अहम है. अभ्यास में यही क्षमताएं और कठोरता से परखी गईं, भविष्य में ऐसे ड्रोन प्रयासों को रोकने के लिए संपूर्ण चेन तैयार करने पर जोर दिया जा रहा है.

    सिविलियन उपयोग, खेती से आपदा‑प्रबंधन तक

    सेना ने बार‑बार दोहराया कि ड्रोन केवल युद्ध के औजार नहीं हैं. कृषि सर्वे, फसलों का निगरानी, आपदा राहत, सर्वेक्षण और रैपिड मेडिकल सप्लाई जैसी सेवाओं में भी इनका इस्तेमाल बढ़ेगा. स्थानीय स्तर पर ड्रोन‑प्रशिक्षण देने से युवाओं, महिलाओं और ग्रामीण समुदायों को नया कौशल मिलेगा, और यह तकनीक सामूहिक विकास का भी एक माध्यम बन सकती है.

    महिलाओं के लिए विशेष ट्रेनिंग और कौशल विकास

    एक प्रेरक पहल के रूप में सेना ने महिलाओं के लिए विशेष ड्रोन ट्रेनिंग का जिक्र किया. इससे न सिर्फ लैंगिक समावेशन को बल मिलेगा, बल्कि खराब‑से‑बदतर क्षेत्रों में भी आर्थिक और तकनीकी सशक्तिकरण के रास्ते खुलेंगे. ये प्रशिक्षण स्थानीय रोजगार और निजी‑उद्यम (startups) के लिए इको‑सिस्टम भी तैयार करेंगे.

    संख्या, क्षमता और तत्परता

    लेफ्टिनेंट जनरल कटियार का संदेश स्पष्ट था, केवल उपकरण खरीदना काफी नहीं, उनकी बड़ी संख्या, निरंतर प्रशिक्षण और घरेलू आपूर्ति शृंखला की मजबूती बेहद आवश्यक है. अगली प्रतिस्पर्धी लड़ाई में दुश्मन को “ज्यादा बड़ा पनिशमेंट” देने के इरादे को उन्होंने रणनीतिक संकल्प के रूप में पेश किया. इसका भाव यह है कि अब भारतीय सेना ऑपरेशनल‑रेंज और टेक्नोलॉजी दोनों में निर्णायक बढ़ोतरी कर रही है.