नई दिल्ली: हाल ही में सामने आए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने भारत की रक्षा तैयारियों और तकनीकी कौशल की एक नई मिसाल कायम कर दी है. इस अभियान के दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वारा भेजे गए 600 से अधिक ड्रोन को मार गिराकर यह साबित कर दिया कि भारत की वायु रक्षा प्रणाली आधुनिक तकनीकों से लैस है और किसी भी चुनौती का सामना करने में पूरी तरह सक्षम है.
ड्रोन युद्ध:
‘ऑपरेशन सिंदूर’ की खासियत यह रही कि इसमें ड्रोन हमलों की अभूतपूर्व संख्या और रणनीति देखने को मिली. पाकिस्तान की ओर से बार-बार मिलिट्री और सिविल ठिकानों को निशाना बनाने के लिए ड्रोन भेजे गए, जिससे हालात तेजी से तनावपूर्ण हो गए.
लेकिन भारत की तत्परता ने तस्वीर बदल दी. वेस्टर्न बॉर्डर पर एक ही रात में-1000 एयर डिफेंस गन सिस्टम और 750 शॉर्ट और मीडियम रेंज मिसाइल सिस्टम को युद्ध जैसी स्थिति में तैनात कर दिया गया.
यह कदम शांति काल से ऑपरेशनल मोड में आने की भारत की गति और लचीलापन दर्शाता है.
ड्रोन रोधी युद्ध प्रणाली:
ड्रोन हमलों से निपटने के लिए भारतीय सेना दो रणनीतियों पर काम करती है:
हार्ड किल – ड्रोन को सीधे नष्ट कर देना (जैसे गन या मिसाइल से).
सॉफ्ट किल – ड्रोन के नेविगेशन या संचार सिस्टम को जाम करना या गड़बड़ा देना.
हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि सॉफ्ट किल की सीमाएं होती हैं, खासकर जब:
इस वजह से, ऑपरेशन सिंदूर में हार्ड किल तकनीक को प्रमुखता दी गई.
भारत की पारंपरिक तोपें
भारत के पास मौजूद कुछ प्रमुख एयर डिफेंस गन:
इनने कम ऊंचाई पर उड़ने वाले छोटे और झुंड में आने वाले ड्रोन को बेहतरीन तरीके से निष्क्रिय किया. पुराने लेकिन भरोसेमंद हथियारों ने दिखा दिया कि अनुभव और तकनीक का मेल आज भी सबसे प्रभावशाली साबित हो सकता है.
बदली एंटी-ड्रोन युद्ध की परिभाषा
सेना के अधिकारियों का मानना है कि ऑपरेशन सिंदूर ने एंटी-ड्रोन डिफेंस की मौजूदा किताब को फिर से लिख दिया है. रणनीति, प्रतिक्रिया और समन्वय के नए मानक तय हुए हैं.
अब युद्ध केवल टैंकों या विमानों से नहीं लड़े जाते. छोटे, तेज़ और सस्ते ड्रोन नई चुनौती हैं, और ऑपरेशन सिंदूर में हमने दिखा दिया कि भारत इस चुनौती के लिए तैयार है.
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