परमाणु बम भूल जाइए... ईरान में रची जा रही ऐसी साजिश, जिससे इजरायल पर आएगी बड़ी आफत! ट्रंप भी कुछ नहीं कर पाएंगे

    दो साल पहले तक जो ईरान खुद को क्षेत्रीय संतुलन का स्थायी खिलाड़ी समझता था, वही आज अपने पुराने ठिकानों पर एक-एक कर वार झेल रहा है.

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    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    तेहरानः कुछ मुल्कों के लिए ताकत दिखाना एक शौक होता है, लेकिन ईरान के लिए ये ज़रूरत बन गई है. दो साल पहले तक जो ईरान खुद को क्षेत्रीय संतुलन का स्थायी खिलाड़ी समझता था, वही आज अपने पुराने ठिकानों पर एक-एक कर वार झेल रहा है. अमेरिका और इजरायल की हमलावर रणनीतियों ने उसे सैन्य, राजनीतिक और कूटनीतिक मोर्चे पर पीछे धकेला है. मगर ईरान एक ऐसा खिलाड़ी है जो मैदान छोड़ने वालों में से नहीं है.

    अब वो खुलकर नहीं, बल्कि परदे के पीछे से वार कर रहा है — प्रॉक्सी वॉर के जरिए. उसके सहयोगी गुट एक बार फिर एक्टिव हो चुके हैं. हूती यमन में बेकाबू हो चुके हैं, हिजबुल्लाह इजरायल के खिलाफ मोर्चा कस रहा है, और इराक में ईरान समर्थित गुट ड्रोन हमलों से संदेश भेज रहे हैं. यह सब उस वक्त हो रहा है जब अमेरिका के साथ उसकी बातचीत की संभावनाएं लगभग खत्म हो चुकी हैं.

    हूती लड़ाके और लाल सागर की धमक

    14 जुलाई को यमन की निर्वासित सरकार की नौसेना ने एक जहाज पकड़ा जिसमें 750 टन ईरानी हथियार, ड्रोन इंजन और रडार सिस्टम लदा हुआ था. आरोप है कि इसे हूतियों तक पहुंचाया जा रहा था. हालांकि ईरान ने इसे खारिज कर दिया, मगर हूतियों की हाल की कार्रवाइयों ने कुछ और ही कहानी बयां की है.

    हूती लड़ाके अब सीधे अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक जहाजों पर निशाना साध रहे हैं. इनमें से एक हमले में चार नाविक मारे गए और छह को बंदी बना लिया गया. ये घटनाएं ये साफ कर देती हैं कि हूतियों की सैन्य क्षमता अचानक नहीं बढ़ी, किसी का मजबूत समर्थन पीछे से जरूर है — और सारी उंगलियां ईरान की ओर उठती हैं.

    इराक में ऊर्जा ठिकानों पर हमला और संदेश

    इराक में ईरान समर्थित शिया गुटों की भूमिका पहले भी रही है, लेकिन अब उन्होंने ड्रोन हमलों के ज़रिए अपनी ताकत का इशारा फिर से देना शुरू किया है. कुर्दों के इलाके में तेल अवसंरचना पर हमले इस बात का संकेत हैं कि ईरान अपने दुश्मनों की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाकर दबाव बनाना चाहता है.

    इराक के एरबिल में हुए ताज़ा हमले अमेरिका समर्थित सरकार के लिए भी सीधा संदेश थे — "ईरान को कमजोर मत समझो". केआरजी प्रवक्ताओं ने इन हमलों को रणनीतिक रूप से ऊर्जा सेक्टर को अस्थिर करने की कोशिश बताया है.

    लेबनान और सीरिया में ईरान की ढलती छाया

    हिजबुल्लाह, जो कभी लेबनान में ईरान की सबसे बड़ी ताकत माना जाता था, अब खुद संकट में है. पिछले साल इजरायल की ओर से किए गए हमलों ने इसकी रीढ़ हिला दी है. हसन नसरल्लाह की मौत ने संगठन को नेतृत्वहीन बना दिया, और लेबनान की राजनीतिक उथल-पुथल ने हालात और बिगाड़ दिए.

    सीरिया में भी ईरान के हालात बेहतर नहीं हैं. बशर अल-असद की सत्ता कमजोर हुई है और ईरान की सीधी पहुंच लेबनान तक अब पहले जैसी आसान नहीं रही. ऐसे में हिजबुल्लाह अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश में फिर से संगठित हो रहा है, लेकिन वो पहले वाली ताकत नहीं रही.

    डिप्लोमेसी ठप, तो ‘मिसाइल भाषा’ में जवाब

    ट्रंप सरकार की ओर से ईरान से बातचीत की संभावनाओं पर लगाई गई ब्रेक ने ईरान को मजबूर किया है कि वो फिर से अपनी "मिसाइल डिप्लोमेसी" और प्रॉक्सी नेटवर्क पर ध्यान दे. ईरानी नेता अली खामेनेई के सलाहकार साफ कह चुके हैं कि अभी वार्ता का समय नहीं है. ये बयान यूं ही नहीं दिया गया. ईरान दुनिया को दिखाना चाहता है कि वो कमजोर नहीं पड़ा है, बल्कि अपने विकल्पों को फिर से मजबूत कर रहा है.

    प्रॉक्सी गुटों के ज़रिए दबाव बनाने की रणनीति

    वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट के माइकल नाइट्स की बात यहां गौर करने लायक है. उन्होंने कहा कि ईरान की अपने गुटों को सप्लाई घट सकती है, लेकिन सप्लाई रुकने वाली नहीं है. इसका मतलब साफ है — चाहे वह हथियार हों, इंटेलिजेंस हो या रणनीतिक सलाह, ईरान अपने नेटवर्क को ज़िंदा रखेगा. अब ये सिर्फ जियोपॉलिटिक्स का गेम नहीं रहा, बल्कि ईरान की सत्ता की साख का सवाल है, और जब साख दांव पर हो, तो प्रॉक्सी वॉर ही उसका सबसे भरोसेमंद हथियार होता है.

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