नई दिल्ली: एक समय था जब भारत ने अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत एक छोटे से रॉकेट के साथ की थी वो भी अमेरिका से मिला हुआ. लेकिन अब, इतिहास ने करवट ली है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब एक ऐसा मुकाम छूने जा रहा है, जो न केवल उसकी तकनीकी परिपक्वता का प्रमाण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत अंतरिक्ष विज्ञान में वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है. आने वाले महीनों में ISRO अमेरिका द्वारा बनाए गए एक भारी-भरकम, 6,500 किलोग्राम वजनी कम्युनिकेशन सैटेलाइट को भारत से लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है.
इस महत्वपूर्ण मिशन को लेकर ISRO के अध्यक्ष वी. नारायणन ने रविवार को बड़ी घोषणा की. उन्होंने बताया कि यह लॉन्च भारत के GSLV F16 रॉकेट से किया जाएगा, जो तकनीकी रूप से एक बेहद उन्नत और मजबूत लॉन्च व्हीकल है. यह मिशन हाल ही में लॉन्च किए गए NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) मिशन के बाद, ISRO के लिए एक और बड़ी छलांग के रूप में देखा जा रहा है.
अतीत से वर्तमान तक का सफर
ISRO प्रमुख वी. नारायणन ने चेन्नई में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि छह दशक पहले भारत ने जब अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव रखी थी, तब अमेरिका ने उसे एक छोटा रॉकेट उपलब्ध कराया था. उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन भारत अपनी धरती से, अपने ही विकसित किए गए रॉकेट के जरिए, अमेरिका का सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजेगा.
यह बात उन्होंने SRM इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के 21वें दीक्षांत समारोह में कही, जहां उन्हें डॉक्टर ऑफ साइंस की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया. इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन भी मौजूद थे.
नारायणन ने ISRO की स्थापना की यादें ताज़ा करते हुए बताया कि संगठन की नींव 1962 में रखी गई थी. उस वक्त भारत तकनीकी रूप से दुनिया के विकसित देशों से कई साल पीछे था. लेकिन आज, भारत न सिर्फ आत्मनिर्भर बन चुका है, बल्कि तकनीकी रूप से वह उन देशों की कतार में खड़ा है, जो विश्व को अंतरिक्ष सेवाएं प्रदान करते हैं.
मास कम्युनिकेशन का पहला प्रयोग
ISRO प्रमुख ने साल 1975 की एक और उपलब्धि का भी जिक्र किया. उन्होंने बताया कि उस वक्त भारत ने अमेरिका के सैटेलाइट डेटा का उपयोग कर 2,400 गांवों में 2,400 टेलीविजन सेट लगाए थे. इस प्रयोग के ज़रिए ISRO ने "मास कम्युनिकेशन" की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया था. यह न केवल भारत की तकनीकी सोच का परिचायक था, बल्कि ग्रामीण भारत तक सूचना और शिक्षा पहुंचाने का पहला बड़ा प्रयास भी था.
NISAR: अब तक का सबसे महंगा सैटेलाइट
नारायणन ने ISRO की हाल की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा कि 30 जुलाई भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में एक सुनहरा दिन बन गया. इसी दिन ISRO ने अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी NASA के साथ मिलकर दुनिया का सबसे महंगा सैटेलाइट NISAR लॉन्च किया. इस मिशन की सटीकता और तकनीकी कुशलता को खुद NASA ने भी सराहा है.
NISAR, पृथ्वी की जलवायु प्रणाली, पर्यावरणीय बदलावों और प्राकृतिक आपदाओं पर डेटा जुटाने वाला एक अत्याधुनिक रडार सैटेलाइट है, जिसे NASA और ISRO ने संयुक्त रूप से तैयार किया है. यह भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग की नई ऊंचाईयों को दर्शाता है.
GSLV और अंतरराष्ट्रीय भरोसा
ISRO के चेयरमैन ने कहा कि भारतीय रॉकेट GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle) अब पूरी दुनिया का भरोसेमंद लॉन्च वाहन बन चुका है. उन्होंने बताया कि GSLV ने हाल में जिस तरह सैटेलाइट को बिल्कुल सटीक कक्षा में स्थापित किया, वह इसरो की तकनीकी कुशलता का प्रमाण है. यह मिशन अमेरिका के लिए बेहद अहम है, और भारत द्वारा उसकी लॉन्चिंग की जिम्मेदारी उठाना, वैश्विक स्तर पर ISRO की मजबूत स्थिति को दर्शाता है.
भारत बना है अंतरिक्ष सेवाओं का वैश्विक केंद्र
आज भारत, विशेषकर ISRO, दुनिया के सबसे भरोसेमंद स्पेस लॉन्च प्लेटफॉर्म्स में से एक बन चुका है. ISRO अब तक 34 देशों के लिए 433 सैटेलाइट लॉन्च कर चुका है. इनमें संचार, पृथ्वी अवलोकन, सैन्य निगरानी और विज्ञान से जुड़े सैटेलाइट शामिल हैं.
नारायणन ने गर्व के साथ कहा कि आज भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है जो भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता रखते हैं. ये क्षमताएं न केवल भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद हैं, बल्कि इसका वैश्विक प्रभाव भी बढ़ा है.
ये भी पढ़ें- जियाउल हक और अयूब खान से क्यों हो रही असीम मुनीर की तुलना? पाकिस्तान में फिर होगा अमेरिका का खेला?