सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के सिर उतारने वाले पुराने विवाद का एक न्यायपूर्ण अंत किया है. अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में भी जानवरों के साथ इंसानियत बनाए रखना न्याय व्यवस्था की मूल भावना है. खास तौर पर उन कुत्तों को लेकर जो पागलपन या हिंसक प्रवृत्ति सामने लाते हैं, अब प्रशासन के पास तलवार और संवेदना दोनों की शक्ति होगी.
सबसे पहले, आवारा कुत्तों को पकड़ा जाएगा, नसबंदी, कीड़े-मकौड़े नाशक उपचार और टीकाकरण कराया जाएगा. इसके बाद, यदि कुत्ता संयमित और शांत पाया जाता है, तो उसे उसी इलाके में वापस छोड़ा जा सकेगा. लेकिन, यदि किसी कुत्ते में पागलपन, बार-बार हमला करने जैसे लक्षण दिखते हैं.. जैसे झूठा भौंकरी व्यवहार, झाग आना, उलझन या भ्रम की स्थिति तो वैश्विक सुरक्षात्मक दृष्टिकोण को अपनाया जाएगा और उसे वापस जारी नहीं किया जाएगा. इस निर्देश का लक्ष्य है. जानवरों के प्रति जिम्मेदारी और आम जनता की सुरक्षा का संतुलन बनाए रखना.
रेबीज संदेह होने पर क्या होगा? जांच की प्रक्रिया
जब किसी कुत्ते में रेबीज के लक्षण दिखाई देते हैं. जैसे अत्यधिक लार आना, डरावनी हरकतें, या आवाज और चलने में बदलाव तब एक विशेष पैनल गठित किया जाएगा स्थानीय प्रशासन द्वारा नियुक्त पशु चिकित्सक. ये पैनल 10 दिनों तक ऐसे कुत्ते की निगरानी करेगा. यदि वायरस का संकेत मिलता है, तो उचित कदम उठाना अनिवार्य होगा. कई बार प्राकृतिक तरीके से कुत्ते की मौत हो सकती है, जो मानवीय दृष्टिकोण के अनुकूल है.
‘हिंसक कुत्तों’ को नई श्रेणी में रखा
अब अदालत ने स्पष्ट शब्दों में यह जोड़ दिया है कि ऐसे आवारा कुत्ते—जो बार-बार हमलों में शामिल हों या उनका व्यवहार असामान्य रूप से आक्रामक हो उन्हें अब ‘हिंसक कुत्ते’ की श्रेणी में रखा जा सकता है. इससे प्रशासन को प्रतिक्रिया देने के लिए स्पष्ट और मजबूत आधार मिलता है.
प्रशासनिक कार्य में किसी का हस्तक्षेप नहीं चलेगा
अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है. कोई भी व्यक्ति या संस्था प्रशासन की कार्रवाई में दखल नहीं दे सकती. ऐसा करना कानूनी रूप से अपराध माना जाएगा. यह आदेश यह सुनिश्चित करता है कि जिम्मेदार अधिकारी बिना किसी दबाव के काम कर सकें चाहे वह कानूनी हो या भावनात्मक.
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