कहां कैद है निमिषा प्रिया, कैसे बच सकती है जान? जानिए ब्लड मनी कैसे बनी उसकी जिंदगी की आखिरी उम्मीद

    यमन की एक जेल में बंद केरल की नर्स निमिषा प्रिया की ज़िंदगी अब उल्टी गिनती पर है. एक महिला जिसने कभी लोगों की जान बचाने की कसम खाई थी, अब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है.

    Nimisha Priya imprisoned full story of Blood Money
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    यमन की एक जेल में बंद केरल की नर्स निमिषा प्रिया की ज़िंदगी अब उल्टी गिनती पर है. एक महिला जिसने कभी लोगों की जान बचाने की कसम खाई थी, अब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. 16 जुलाई को उसे फांसी देने की तारीख तय हो चुकी है. उसके गुनाह की कहानी जितनी चौंकाने वाली है, उतनी ही तकलीफदेह भी, लेकिन इस मामले में सच्चाई और संवेदना के बीच की लकीर बहुत धुंधली हो गई है.

    हत्या का आरोप और फांसी की सजा

    साल 2017 में यमन की राजधानी सना में एक पानी की टंकी से एक शव बरामद हुआ, जो टुकड़ों में कटा हुआ था. पहचान हुई तलाल अब्दो महदी नाम के शख्स की, जो एक यमनी नागरिक था और निमिषा प्रिया का व्यावसायिक साझेदार भी रहा था. यहीं से शुरू हुई एक कानूनी लड़ाई, जिसने अब मौत की सजा तक पहुंचा दिया है.

    34 साल की निमिषा पर आरोप है कि उन्होंने महदी को बेहोश करने की दवा की ज़्यादा खुराक देकर जानबूझकर उसकी हत्या की, फिर उसके शरीर को काटकर ठिकाने लगाया. हालांकि, निमिषा ने इन आरोपों से साफ इनकार किया है. उनका दावा है कि उन्होंने सिर्फ उसे बेहोश करने की कोशिश की थी ताकि वह उससे अपना जब्त पासपोर्ट वापस ले सके, लेकिन दवा की मात्रा गलती से ज़्यादा हो गई.

    ज़ुल्म की कहानी भी सामने आई

    अदालत में पेश हुए बचाव पक्ष ने बताया कि महदी ने न केवल निमिषा को शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया, बल्कि उनका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया था. इतना ही नहीं, उसने उन्हें बंदूक दिखाकर धमकाया, पैसों की ठगी की और लगातार शोषण करता रहा. इस डर और यातना से बचने के लिए ही निमिषा ने वह कदम उठाया, जो अब उन्हें फांसी की ओर ले जा रहा है.

    ब्लड मनी: ज़िंदगी बचाने की आखिरी उम्मीद

    शरिया कानून के तहत यमन में एक विकल्प मौजूद है जिसे ‘ब्लड मनी’ कहा जाता है. इसमें आरोपी मृतक के परिवार को आर्थिक मुआवज़ा देता है, और अगर परिवार माफ़ी दे दे तो फांसी टाली जा सकती है. यही एकमात्र रास्ता बचा है निमिषा की जान बचाने का.

    निमिषा के परिवार और भारत में चल रहे ‘सेव निमिषा प्रिया काउंसिल’ ने महदी के परिजनों को 10 लाख डॉलर यानी करीब 8.57 करोड़ रुपये की ब्लड मनी देने की पेशकश की है. लेकिन अब तक महदी के परिवार की तरफ से कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है.

    सामाजिक कार्यकर्ता मैदान में

    सामाजिक कार्यकर्ता सैमुअल जेरोम बसकरन और बाबू जॉन जैसे लोग इस संघर्ष में अहम भूमिका निभा रहे हैं. उनका कहना है कि यमन के सरकारी अभियोजक ने जेल अधिकारियों को 16 जुलाई की तारीख़ के लिए फांसी का आदेश दे दिया है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि "विकल्प अभी खुले हैं". इसका मतलब है कि अगर महदी का परिवार ब्लड मनी स्वीकार कर ले और माफ़ कर दे, तो निमिषा की जान बच सकती है.

    भारत सरकार की भूमिका

    भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मामले की पुष्टि करते हुए कहा है कि वे पूरी जानकारी जुटा रहे हैं. लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि भारत सरकार इस मामले में कितनी सक्रिय भूमिका निभा रही है. फिलहाल, दबाव सामाजिक समूहों और निमिषा के रिश्तेदारों पर है जो ब्लड मनी जुटाने और बातचीत की कोशिशों में लगे हुए हैं.

    फांसी की घड़ी करीब, लेकिन उम्मीद बाकी

    जनवरी 2024 में यमन में हूती विद्रोहियों की सर्वोच्च राजनीतिक परिषद के अध्यक्ष महदी अल-मशात ने फांसी को मंजूरी दे दी थी. तब से लेकर अब तक समय बीतता गया, लेकिन हालात ज्यादा नहीं बदले. 2023 में यमन के सुप्रीम कोर्ट ने अपील भी खारिज कर दी थी. अब बस कुछ ही दिन बचे हैं. 16 जुलाई को सब कुछ बदल सकता है.

    सवाल सिर्फ एक महिला की ज़िंदगी का नहीं

    यह सिर्फ निमिषा प्रिया की ज़िंदगी का सवाल नहीं है, यह उस व्यवस्था का भी सवाल है जहां पीड़िता और अपराधी की पहचान धुंधली हो जाती है. अगर निमिषा ने वास्तव में सिर्फ अपनी आज़ादी और सुरक्षा के लिए कुछ किया था, तो क्या उसे मौत की सज़ा मिलनी चाहिए? और अगर नहीं, तो क्या मानवीय आधार पर उसे एक और मौका नहीं मिलना चाहिए?

    ब्लड मनी: शरिया में माफी का रास्ता

    ब्लड मनी, जिसे ‘दियाह’ कहा जाता है, इस्लामी न्यायिक व्यवस्था में एक ऐसा रास्ता है जहां क्षमादान की गुंजाइश रहती है. खासकर तब जब हत्या जानबूझकर नहीं, बल्कि गलती से हुई हो. इसमें मक़सद पीड़ित परिवार की आर्थिक और भावनात्मक स्थिति को समझते हुए न्याय करना होता है, न कि सिर्फ अपराधी को खत्म करना.

    अब नज़रें महदी के परिवार और भारत सरकार पर

    निमिषा के पास अब सिर्फ कुछ दिन हैं. उम्मीद की एक आखिरी किरण महदी के परिवार की माफ़ी पर टिकी है. भारत सरकार अगर सक्रिय दखल दे तो नतीजे बदल सकते हैं. सवाल सिर्फ न्याय का नहीं है, इंसानियत का भी है.

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