मध्य-पूर्व में एक बार फिर अशांति की लपटें तेज़ होने लगी हैं. इजरायल और गाजा के बीच लंबे समय से चला आ रहा तनाव अब निर्णायक मोड़ पर पहुँचता दिखाई दे रहा है. अंतरराष्ट्रीय मंच पर अब तक यह संदेश दिया जा रहा था कि इजरायल गाजा पर स्थायी कब्ज़ा नहीं करेगा, बल्कि क्षेत्र का प्रबंधन किसी अंतरिम प्रशासन को सौंप देगा. लेकिन ताज़ा घटनाक्रम इस दावे को उलटते नज़र आ रहे हैं.
रॉयटर्स की एक विशेष रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इजरायल की सुरक्षा कैबिनेट ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की उस योजना को मंजूरी दे दी है, जिसमें गाजा पट्टी पर नियंत्रण हासिल करने की बात कही गई है. यह मंजूरी ऐसे समय में आई है, जब दोनों पक्षों के बीच बीते 22 महीनों से युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है और हालात और अधिक भड़कने की आशंका जताई जा रही है.
हमास को 'पूरी तरह खत्म' करने की रणनीति
गुरुवार, 7 अगस्त को फॉक्स न्यूज़ को दिए एक साक्षात्कार में नेतन्याहू ने खुलकर कहा कि अगर हमास को पूरी तरह तबाह करना है, तो गाजा पट्टी पर पूर्ण नियंत्रण ज़रूरी है. हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इजरायल इस क्षेत्र को स्थायी रूप से अपने पास नहीं रखना चाहता. उनके शब्दों में, "हमारा उद्देश्य शासन करना नहीं, बल्कि एक सुरक्षा घेरा बनाना है."
अरब फोर्सेज को सौंपने की योजना
सुरक्षा कैबिनेट के भीतर बनी सहमति के अनुसार, कब्ज़े के बाद गाजा का प्रशासन अरब फोर्सेज को सौंपा जा सकता है. किन देशों की सेनाएं इस ज़िम्मेदारी को संभालेंगी, इस बारे में नेतन्याहू ने कोई ठोस जानकारी नहीं दी. यह कदम इजरायल के लिए एक तरह से दोहरी रणनीति है—पहले सुरक्षा नियंत्रण, फिर प्रशासनिक हस्तांतरण.
अंतिम मंजूरी का इंतज़ार
हालांकि, सुरक्षा परिषद की मंजूरी के बाद भी यह योजना तभी आगे बढ़ पाएगी, जब इसे पूर्ण मंत्रिमंडल से हरी झंडी मिलेगी. माना जा रहा है कि यह प्रक्रिया कम से कम रविवार, 10 अगस्त तक पूरी नहीं होगी. सूत्रों का कहना है कि चर्चा के दौरान एक विकल्प यह भी रखा गया कि गाजा के उन इलाकों पर पहले कब्ज़ा किया जाए, जहां वर्तमान में कोई सशस्त्र बल तैनात नहीं हैं.
फिलिस्तीनियों को चेतावनी का संकेत
रिपोर्ट यह भी बताती है कि इजरायल सैन्य अभियान से पहले फिलिस्तीनी नागरिकों को क्षेत्र खाली करने के लिए चेतावनी दे सकता है. उन्हें तय समय दिया जाएगा, ताकि वे संभावित कार्रवाई से पहले सुरक्षित स्थानों पर पहुँच सकें. यह रणनीति न सिर्फ सैन्य बल्कि मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का हिस्सा भी मानी जा रही है.
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