बीजिंग से भारत को इस समय अप्रत्याशित कूटनीतिक सहारा मिला है. अमेरिका द्वारा भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने के फैसले पर चीन ने खुलकर आपत्ति जताई है. दरअसल, भारत में चीनी राजदूत शू फेइहोंग ने हाल ही में अमेरिका को ‘बुली’ करार दिया था और अब चीन के विदेश मंत्रालय ने भी इसी स्वर में वाशिंगटन पर हमला बोला है. मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जैकून ने कहा कि रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर टैरिफ लगाना अमेरिका का शक्ति का दुरुपयोग है. उनका कहना था कि चीन हमेशा से इस तरह के आर्थिक हथकंडों का विरोध करता रहा है, क्योंकि यह व्यापार और तकनीक को हथियार बनाकर दूसरे देशों को दबाने का तरीका है.
चीनी सरकारी मीडिया में भी भारत के समर्थन में लेख प्रकाशित हो रहे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि बीजिंग मौजूदा हालात को भारत के साथ अपने रिश्ते सुधारने के अवसर के रूप में देख रहा है. दिलचस्प बात यह है कि भारत की तरह ब्राजील पर भी अमेरिका ने 50 फीसदी का भारी टैरिफ लगाया है, जो किसी भी व्यापारिक साझेदार पर लगाए गए सबसे ऊंचे शुल्कों में से एक है.
अमेरिका की रणनीति और चीन पर नरमी
हालांकि अमेरिका ने भारत पर यह आर्थिक प्रहार किया, लेकिन चीन के खिलाफ फिलहाल ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हुई है. वाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो ने एक साक्षात्कार में कहा कि वाशिंगटन, रूस से ऊर्जा खरीद को लेकर चीन पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की जल्दबाजी नहीं करेगा, क्योंकि इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि चीन पहले ही कई वस्तुओं पर 50 फीसदी टैरिफ झेल रहा है, और इसलिए फिलहाल कोई नया कदम उठाने की योजना नहीं है.
पुतिन से वार्ता के बाद भारत पर कार्रवाई
टैरिफ लगाने का फैसला ऐसे समय में आया है जब अमेरिका के विशेष व्यापारिक दूत स्टीव विटकॉफ और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच मुलाकात हुई थी. इस बैठक को वाशिंगटन ने सकारात्मक बताया, लेकिन इसी के बाद भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लागू कर दिया गया. माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पुतिन के बीच सीधी वार्ता भी हो सकती है, जिसका उद्देश्य यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के रास्ते तलाशना होगा. ट्रंप पहले ही संकेत दे चुके थे कि विटकॉफ-पुतिन मुलाकात के बाद ही भारत पर टैरिफ को लेकर अंतिम फैसला लेंगे.
भारत को राहत की उम्मीद
हालांकि टैरिफ लागू हो चुका है, लेकिन कूटनीतिक हलकों में चर्चा है कि भारत को आगे चलकर कुछ राहत मिल सकती है. चीन का खुला समर्थन और क्षेत्रीय राजनीति में बदलते समीकरण, भारत के लिए अमेरिका के साथ टकराव को कम करने का रास्ता भी खोल सकते हैं.
यह भी पढ़ें: यूं ही नहीं अमेरिका चले मुल्ला-मुनीर, दूसके दौरे के पीछे ये है खास वजह; घबरा रहे शहबाज!