दहेज के दानव! हर साल 6 हजार से ज्यादा बेटियों की हत्या, NCRB के आंकड़े जानकर हो जाएंगे हैरान

    उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से हाल ही में आई एक खबर ने पूरे देश को दहला दिया है. निक्की नाम की एक विवाहित महिला को आग के हवाले कर दिया गया. सीसीटीवी फुटेज में साफ देखा गया कि निक्की खुद को बचाने के लिए जलती हालत में सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी.

    NCRB report reveals alarming stats on dowry deaths and related legal issues in India
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    Dowry death: उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से हाल ही में आई एक खबर ने पूरे देश को दहला दिया है. निक्की नाम की एक विवाहित महिला को आग के हवाले कर दिया गया. सीसीटीवी फुटेज में साफ देखा गया कि निक्की खुद को बचाने के लिए जलती हालत में सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी. यह दृश्य किसी फिल्म का नहीं, बल्कि उस कड़वे समाज का सच है, जहां बेटियों को आज भी दहेज के लिए जिंदा जलाया जाता है.

    NCRB की रिपोर्ट

    नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक, साल 2022 में 6450 दहेज हत्या के मामले दर्ज हुए. इनमें से अकेले बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और हरियाणा ने मिलकर 80% से अधिक मामलों में योगदान दिया. ये आंकड़े साफ दिखाते हैं कि भारत में हर तीन घंटे में दो से अधिक महिलाएं दहेज की बलि चढ़ जाती हैं. यह कोई सामान्य अपराध नहीं, बल्कि एक संगठित सामाजिक हिंसा है, जो साल दर साल मजबूत होती जा रही है.

    कानून हैं, लेकिन इंसाफ नहीं

    भारत में दहेज के खिलाफ कई सख्त कानून हैं.

    • दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961
    • IPC की धारा 304B (दहेज हत्या)
    • IPC की धारा 498A (पति और ससुरालवालों द्वारा की गई क्रूरता)

    घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005

    इसके अलावा, साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B में यह स्पष्ट है कि शादी के 7 साल के भीतर महिला की संदिग्ध मृत्यु और दहेज प्रताड़ना के सबूत मिलने पर पति और उसके परिजनों को दोषी माना जाएगा. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये कानून जमीनी हकीकत में असरदार हैं? अधिकतर मामलों में जांच की धीमी प्रक्रिया, समाजिक दबाव और सबूतों की कमी के कारण आरोपी साफ बच निकलते हैं.

    दहेज: एक परंपरा जो बन गई है अपराध

    भारत में दहेज प्रथा की शुरुआत शादी के समय बेटियों को मदद देने की एक परंपरा के रूप में हुई थी. लेकिन समय के साथ यह परंपरा लोभ, लालच और जबरन मांग में बदल गई. अब ये एक ऐसा सामाजिक अभिशाप बन चुका है, जिसकी वजह से न सिर्फ बेटियां मर रही हैं, बल्कि उनके पूरे परिवारों का जीवन तबाह हो रहा है.

    कानून की तीन बड़ी कमजोरियां

    देर से जांच और सुनवाई: पुलिस की कार्रवाई में देर और कोर्ट की सुनवाई में वर्षों की देरी से न्याय मिलना मुश्किल हो जाता है.

    कानूनी सलाह की कमी: ग्रामीण इलाकों में महिलाएं कानूनी सहायता और अपने अधिकारों से अनजान होती हैं.

    सामाजिक चुप्पी: जब तक पड़ोसी, रिश्तेदार या समाज आवाज नहीं उठाएंगे, तब तक दहेज के खिलाफ जंग अधूरी है.

    क्या निक्की की मौत कुछ बदलेगी?

    निक्की का जलता हुआ शरीर और उसकी मौत की दर्दनाक कहानी एक बार फिर सवाल खड़ा करती है — कब तक बेटियां जलती रहेंगी? कब जागेगा समाज? क्या हम सिर्फ वीडियो देखकर अफसोस जताएंगे या इस दहेज की लानत को मिटाने के लिए कुछ ठोस कदम भी उठाएंगे? 

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