अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा चांद पर एक शक्तिशाली परमाणु रिएक्टर स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है. इस परियोजना का मकसद 2030 तक चंद्रमा पर स्थायी मानव बस्तियों का निर्माण संभव बनाना है. नासा के कार्यवाहक प्रमुख सीन डफी ने इस योजना का खुलासा किया है, जिसे अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान में नए युग की शुरुआत माना जा रहा है. इस कदम को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अंतरिक्ष दौड़ को तेज करने की नीति का भी हिस्सा माना जा रहा है.
परमाणु रिएक्टर से मिलेगा असीमित ऊर्जा स्रोत
इस योजना के तहत नासा 100 किलोवाट क्षमता वाला एक छोटा लेकिन प्रभावशाली परमाणु रिएक्टर विकसित करेगा. यह रिएक्टर चंद्रमा पर ऊर्जा की निरंतर आपूर्ति करेगा, जिससे वहां के वैज्ञानिक और आवासीय कार्य सुचारू रूप से चल सकेंगे. नासा की मंशा है कि इससे चंद्रमा पर स्थायी उपस्थिति बनाए रखी जा सके और भविष्य में अमेरिकी अंतरिक्ष सुरक्षा को भी मजबूत किया जा सके. न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, नासा जल्द ही निजी कंपनियों से इस परियोजना के लिए प्रस्ताव मंगाएगा.
दुनिया की स्पेस दौड़ में बढ़ता दबाव
इस परियोजना को इसलिए भी प्राथमिकता दी जा रही है क्योंकि रूस और चीन जैसी अन्य महाशक्तियां भी चांद पर अपने दावे मजबूत करने की कोशिश में हैं. यदि ये देश पहले वहां परमाणु रिएक्टर स्थापित कर लेते हैं, तो अमेरिका के लिए चुनौती बढ़ सकती है. इसलिए नासा इस मिशन को समयबद्ध और प्रभावी तरीके से पूरा करना चाहता है.
खर्च और आगे का रास्ता
इस परियोजना पर अरबों डॉलर खर्च होने का अनुमान है. नासा ने 2022 में तीन निजी कंपनियों को डिजाइनिंग के लिए वित्तीय सहायता दी थी. विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के रिएक्टर का निर्माण, संचालन और रखरखाव महंगा होता है. यह परियोजना आर्टेमिस मिशन के तहत भी आती है, जिसकी कुल लागत लगभग 8,200 अरब रुपये बताई गई है.
नासा अगले 60 दिनों में निजी कंपनियों से सुझाव लेगा और एक प्रमुख अधिकारी नियुक्त करेगा, जो इस परियोजना को आगे बढ़ाएगा. इस तकनीक की सफलता से भविष्य में मंगल ग्रह और अन्य ग्रहों पर भी ऊर्जा उपलब्ध कराना संभव होगा, जिससे अंतरिक्ष अन्वेषण के नए द्वार खुलेंगे.
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