सागर: संत समर्थ दादा गुरु महाराज का जीवन साधना और तप का अद्वितीय उदाहरण पेश करता है. पिछले 4 साल 9 महीने से उन्होंने अन्न का एक भी दाना नहीं खाया है और केवल नर्मदा जल पर जीवित हैं. यह साधना न सिर्फ उनके शरीर की शक्ति का प्रमाण है, बल्कि उनके जीवन का उद्देश्य भी गहरे तात्त्विक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है.
4 लाख किलोमीटर की पैदल यात्रा
संत समर्थ दादा गुरु का जीवन निरंतर यात्रा और साधना में बीता है. उन्होंने इस अवधि में चार लाख किलोमीटर की पैदल यात्रा पूरी की है. चाहे सर्दी हो, गर्मी हो या बारिश, उनका चलना कभी भी रुका नहीं. उनके जीवन में यही समर्पण और तप की मिसाल दी जाती है. संत की यह यात्रा न केवल भौतिक दूरी की यात्रा है, बल्कि यह आध्यात्मिक उन्नति और आत्म-साक्षात्कार की यात्रा भी है.
बिना पानी के प्रवचन
समर्थ दादा गुरु का एक और चमत्कारी पहलू है उनका प्रवचन देने का तरीका. वे घंटों तक बिना पानी पीए प्रवचन देते हैं और उनकी वाणी में एक अद्भुत ऊर्जा दिखाई देती है. उनका कहना है कि नर्मदा नदी के तट पर ध्यान और साधना के साथ बिताया गया समय उन्हें मानसिक और शारीरिक शक्ति प्रदान करता है, जिससे वे इतने लंबे समय तक प्रवचन दे पाते हैं.
नर्मदा नदी का संरक्षण
संत समर्थ दादा गुरु का तप नर्मदा नदी के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित है. उनका मानना है कि नर्मदा मां केवल एक नदी नहीं, बल्कि जीवनदायिनी भगवती हैं, जिनका संरक्षण हमारे लिए एक धार्मिक और सांस्कृतिक कर्तव्य है. उन्होंने इस उद्देश्य के लिए विशेष व्रत लिया है, और नर्मदा के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण को बढ़ावा देने के लिए अपनी साधना जारी रखी है.
वृक्षारोपण का अभियान
हाल ही में, संत समर्थ दादा गुरु ने सागर जिले के खुरई विधानसभा क्षेत्र में 61,700 पौधों का वृक्षारोपण किया. इस आयोजन को पूर्व गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह के नेतृत्व में ऐतिहासिक रूप से सफल बनाया गया. संत ने इसे सहस्रकोटि यज्ञ की संज्ञा दी और बताया कि वृक्षारोपण शिव उपासना का एक जीवित रूप है.
समर्थ दादा गुरु का जीवन न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि विज्ञान के लिए भी एक रहस्य है. उनका शरीर, उनकी ऊर्जा, और बिना अन्न-जल के जीवन जीने की क्षमता विज्ञान के लिए शोध का विषय बन चुकी है. उनके जीवन में शारीरिक और मानसिक शक्ति का अद्भुत संगम देखा जा सकता है, जो उन्हें एक अनोखा संत बनाता है.
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