इस बार मोरक्को में बकरीद का त्योहार पहले जैसा नहीं होगा. जहां दुनिया भर के मुसलमान ईद-उल-अजहा पर परंपरागत रूप से कुर्बानी की रस्म निभाने की तैयारी में जुटे हैं, वहीं अफ्रीकी देश मोरक्को ने इस धार्मिक अनुष्ठान पर रोक लगाकर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है. देश में पड़ा भीषण सूखा और पशुओं की घटी हुई संख्या इसकी बड़ी वजह है.
राजा मोहम्मद VI ने इस बार कुर्बानी को स्थगित करने का फरमान जारी किया है, जो कि मोरक्को के इतिहास में एक असामान्य और संवेदनशील कदम माना जा रहा है. सरकार की तरफ से सख्त निर्देश दिए गए हैं कि कोई भी नागरिक इस बार कुर्बानी न करे और ईद को इबादत और जरूरतमंदों की मदद करके मनाए.
हालांकि यह निर्णय पर्यावरणीय संकट के चलते लिया गया है, लेकिन इसके धार्मिक और सामाजिक प्रभाव भी गहराई से महसूस किए जा रहे हैं. मोरक्को की 99 फीसदी आबादी इस्लाम धर्म मानने वाली है, ऐसे में बकरीद जैसे अहम त्योहार पर कुर्बानी न कर पाना, लोगों के लिए गहरी असहजता का कारण बन गया है.
शहरों में छापेमारी, सोशल मीडिया पर आक्रोश
सरकारी आदेश के बाद पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने कई इलाकों में भेड़ों की बिक्री और संभावित कुर्बानी की रोकथाम के लिए छापेमारी की. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में पुलिसकर्मी घरों में घुसकर भेड़ों को जब्त करते दिखाई दे रहे हैं. इस कदम ने जनता में आक्रोश और असंतोष की लहर फैला दी है. कई लोग इसे अपने धार्मिक अधिकारों का हनन मान रहे हैं. धार्मिक विद्वानों और सोशल मीडिया यूज़र्स के बीच यह बहस छिड़ गई है कि क्या किसी सरकार या शासक को धार्मिक रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है?
विरोध और समर्थन दोनों
एक वर्ग ऐसा भी है जो इस फैसले का समर्थन कर रहा है. उनका कहना है कि यह कदम देश की भलाई के लिए उठाया गया है, और धार्मिक नियमों की लचीलापन भी ऐसी परिस्थितियों में दया और समझ का रास्ता अपनाने की इजाजत देता है. कुल मिलाकर, मोरक्को में इस बार बकरीद सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक बहस का केंद्र बन गई है.
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