Nepal Gen Z Protest: नेपाल एक बार फिर राजनीतिक हलचलों के केंद्र में आ गया है. 8 और 9 सितंबर को जो घटनाएं घटित हुईं, वे केवल तात्कालिक राजनीतिक संकट नहीं, बल्कि एक लंबे असंतोष और सुनियोजित जनांदोलन का नतीजा थीं. ओली सरकार की विदाई और राजशाही समर्थक आंदोलन की सफलता अब यह संकेत दे रही है कि नेपाल की राजनीतिक धारा एक बार फिर पुराने रास्तों की ओर लौट सकती है.
इस परिवर्तन की बुनियाद मार्च 2025 में रखी गई थी, जब काठमांडू की सड़कों पर हजारों लोग राजशाही शासन और हिंदू राष्ट्र की मांग को लेकर उतरे थे. इस आंदोलन को "नेपाल का हैक्टिविज़्म" कहा गया, एक ऐसा जन आंदोलन जिसने न केवल जनता के भावनात्मक और राजनीतिक दबाव को दर्शाया, बल्कि सत्ता की दीवारों को भी हिलाकर रख दिया.
बालेंद्र शाह और सुदन गुरुंग, विरोध की नई आवाज़ें
इस आंदोलन की अगुवाई काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह और सामाजिक कार्यकर्ता सुदन गुरुंग ने की. बालेंद्र शाह मद्धेशी समुदाय से आते हैं और अपने साफ़-सुथरे प्रशासन और बेबाक राजनीतिक रुख के लिए जाने जाते हैं. वहीं, सुदन गुरुंग ने छात्रों और युवाओं को आंदोलन में शामिल कर एक नई राजनीतिक चेतना को जन्म दिया.
8 सितंबर को जहां ओली सरकार ने CPN-UML की संविधान सभा की बैठक बुलाई और संविधान में बदलाव की कोशिश की, वहीं उसी दिन गुरुंग और शाह ने काठमांडू में विशाल जनसभा का आह्वान कर दिया. खास बात यह रही कि आंदोलनकारियों से अपील की गई थी कि वे स्कूल यूनिफॉर्म और किताबों के साथ आएं, यह एक प्रतीकात्मक संदेश था कि यह आंदोलन हथियार नहीं, चेतना और शिक्षा के बल पर लड़ा जाएगा.
सत्ता की दीवारें ढहीं, भावना की लहरें उभरीं
9 सितंबर को ओली सरकार की तीन दिवसीय बैठक का दूसरा दिन ही उसका आखिरी दिन बन गया. आंदोलनकारियों का दबाव इतना तीव्र था कि सत्ता को झुकना पड़ा. अब देश की सत्ता व्यवस्था पर स्पष्ट रूप से राजशाही समर्थकों का प्रभाव दिखाई दे रहा है.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में नेपाल के संविधान में बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं, और यह भी मुमकिन है कि पूर्व राजा ज्ञानेंद्र एक बार फिर किसी भूमिका में सामने आएं.
एक नजर: क्यों फूटा जनाक्रोश?
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