Janmashtami 2025: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में इस बार जन्माष्टमी का पर्व एक ऐतिहासिक वापसी करने जा रहा है. करीब 31 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद जिले के सभी थानों में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा. यह फैसला न सिर्फ धार्मिक परंपरा को पुनर्जीवित करेगा, बल्कि पुलिस बल के मनोबल और भाईचारे को भी एक नई ऊर्जा देगा.
1994 की वो मुठभेड़
कुशीनगर में जन्माष्टमी मनाने की परंपरा साल 1994 में अचानक थम गई थी. 30 अगस्त 1994 को कुबेरस्थान थाना क्षेत्र के पचरुखिया जंगल में हुई एक भीषण मुठभेड़ में छह पुलिसकर्मियों ने अपनी जान गंवा दी थी. यह हादसा उस समय हुआ, जब नवगठित पडरौना जिला (वर्तमान कुशीनगर) पहली बार जन्माष्टमी की तैयारी कर रहा था. इस त्रासदी के बाद पुलिस विभाग ने इस त्योहार को न मनाने का निर्णय लिया और यह दिन उन वीर पुलिसकर्मियों की स्मृति को समर्पित कर दिया.
तीन दशक से बंद थी परंपरा
पिछले तीन दशकों से कुशीनगर जिले के किसी भी थाने में जन्माष्टमी का आयोजन नहीं हुआ. इस अवधि में यह दिन एक गंभीर स्मृति के रूप में ही गुज़रता रहा. पुलिस बल और स्थानीय लोगों के लिए यह एक अनकही कसक थी, जिसने उत्सव की खुशी को वीरगति को प्राप्त हुए साथियों की याद में बदल दिया.
एसपी ने परंपरा बहाल करने का दिया आदेश
इस वर्ष जिले के पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार मिश्रा ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया. उन्होंने सभी थानों को निर्देश जारी किया कि जन्माष्टमी पर्व पर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएं. यह कदम न केवल परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए है, बल्कि इसका उद्देश्य बलिदान देने वाले पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि देना और पुलिसकर्मियों के मनोबल को बढ़ाना भी है.
शहादत और श्रद्धा का संगम
इस बार जन्माष्टमी का पर्व कुशीनगर के लिए सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं होगा, बल्कि यह उन पुलिसकर्मियों की शहादत और श्रद्धा का प्रतीक बनेगा, जिन्होंने अपने कर्तव्य पथ पर जान न्यौछावर कर दी. 31 साल बाद जब थानों में मटकी, माखन और भजन की गूंज सुनाई देगी, तो उसमें वीरता की याद और परंपरा की मिठास दोनों शामिल होंगी.
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