ईरान-इजराइल युद्ध में उलझी दुनिया, उधर शहबाज के हाथों से खिसक गई सत्ता? ख्वाजा आसिफ का बड़ा दावा

    पाकिस्तान में लोकतंत्र की बात करना जितना आसान है, हकीकत उससे कहीं अलग है. वर्षों से अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक यह आरोप लगाते रहे हैं कि पाकिस्तान की सियासत पर असली नियंत्रण सेना का है और अब देश के ही रक्षा मंत्री ने इस सच को स्वीकार कर लिया है.

    Khawaja Asif big claim on power in munir hands
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    पाकिस्तान में लोकतंत्र की बात करना जितना आसान है, हकीकत उससे कहीं अलग है. वर्षों से अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक यह आरोप लगाते रहे हैं कि पाकिस्तान की सियासत पर असली नियंत्रण सेना का है और अब देश के ही रक्षा मंत्री ने इस सच को स्वीकार कर लिया है. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के करीबी और रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने खुले तौर पर स्वीकार किया है कि पाकिस्तान में 'हाइब्रिड शासन प्रणाली' चल रही है, जिसमें सरकार और सेना दोनों मिलकर फैसले लेते हैं. लेकिन असली ताकत सेना के पास ही होती है.

    आख़िर क्या है 'हाइब्रिड मॉडल'?

    'हाइब्रिड मॉडल' का मतलब है कि सरकार और सेना साथ मिलकर देश की नीतियां तय करते हैं, लेकिन नियंत्रण सेना के हाथ में होता है. ख्वाजा आसिफ ने अरब न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में साफ कहा, "यह एक आदर्श लोकतांत्रिक ढांचा नहीं है, लेकिन जब तक पाकिस्तान आर्थिक और राजनीतिक संकटों से बाहर नहीं निकलता, तब तक यही मॉडल जरूरी है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह मॉडल 1990 में लागू होता, तो शायद देश सेना और सियासी टकराव से बच सकता था.

    'वोट को इज्जत दो' सिर्फ एक नारा रह गया

    पीएमएल-एन ने वर्षों तक “वोट को इज्जत दो” का नारा देकर जनसमर्थन हासिल किया, लेकिन मौजूदा हालात में यह नारा महज़ एक प्रतीक बनकर रह गया है. विश्लेषकों का मानना है कि शरीफ़ की पार्टी अब सेना के साथ गठजोड़ कर सत्ता में बनी रहना चाहती है. रक्षा मंत्री का यह बयान इस धारणा को और पुख्ता करता है.

    सेना की ताकत का नया प्रमाण: ट्रंप से मुलाकात

    आसिफ ने यह भी बताया कि हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात पाकिस्तान के लिए एक “ऐतिहासिक मोड़” है. उन्होंने इसे हाइब्रिड मॉडल की “सफलता” बताया.

    इमरान खान और आलोचकों की कड़ी प्रतिक्रिया

    वहीं दूसरी ओर, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनके समर्थक इस व्यवस्था को “जनादेश की चोरी” करार दे रहे हैं. इमरान ने फरवरी 2024 के आम चुनावों को सबसे बड़ी धांधली बताया और कहा कि जनता का हक छीन लिया गया. प्रसिद्ध विश्लेषक डॉ. रसूल बख्श रईस का मानना है कि पाकिस्तान में यह मॉडल तीसरी बार वापस आया है — पहले जनरल ज़ियाउल हक, फिर परवेज़ मुशर्रफ और अब यह नया संस्करण. वहीं वरिष्ठ पत्रकार मतिउल्लाह जान ने तीखा हमला करते हुए कहा कि “संविधान की रक्षा की शपथ लेने वाले मंत्री खुद हाइब्रिड शासन को जायज़ ठहरा रहे हैं, जबकि संविधान में इसका कोई जिक्र नहीं है.”

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