Kaal Bhairav Jayanti 2025: हिंदू पंचांग में मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के उग्र रूप भगवान कालभैरव की जयंती मनाई जाती है. इसे भैरव अष्टमी या कालाष्टमी भी कहा जाता है. यह दिन भक्ति, साधना और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान कालभैरव की आराधना करने से व्यक्ति को हर प्रकार के भय, पाप और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है.
इस वर्ष कालभैरव जयंती की तारीख को लेकर कई जगह भ्रम की स्थिति है. ज्योतिषीय गणना और उदया तिथि के अनुसार...
कालभैरव जयंती पूजा विधि
कालभैरव की आराधना मुख्यतः रात्रि के समय की जाती है, क्योंकि यह काल (समय) और रात्रि के स्वामी हैं.
सुबह की तैयारी:
पूजन विधि:
मंत्र जाप:
“ॐ कालभैरवाय नमः” या “ह्रीं उन्मत्त भैरवाय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें.
इसके बाद कालभैरव की कथा सुनें और आरती करें.
विशेष कर्म:
इस दिन पितरों को श्रद्धा से स्मरण करना और श्राद्ध करना भी शुभ फलदायी माना गया है.
कालभैरव जयंती का महत्व
कालभैरव भगवान शिव का वह रूप हैं जो समय और नियति के स्वामी हैं. उनकी उपासना से जीवन के हर भय, संकट और नकारात्मकता का नाश होता है. कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन सच्चे मन से उपवास रखकर कालभैरव की पूजा करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति और शत्रुओं से सुरक्षा प्राप्त होती है.
ध्यान रखें कि यह पर्व केवल पूजा का नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण और भय से मुक्ति का प्रतीक है. कालभैरव की कृपा से साधक के जीवन में साहस, आत्मविश्वास और स्थिरता का संचार होता है.
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित है. इसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी प्रदान करना है.
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