नई दिल्ली: संसद के मानसून सत्र में सोमवार को उस समय सियासी तापमान चरम पर पहुंच गया, जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए चीन से जुड़े पुराने विवादों को एक-एक कर सामने रखा. उन्होंने अपने संबोधन में राहुल गांधी का नाम लिए बिना उन घटनाओं की याद दिलाई, जब विपक्ष के वरिष्ठ नेता कथित रूप से चीनी राजनयिकों से गुपचुप मुलाकात कर रहे थे. जयशंकर का भाषण जितना तथ्यपरक था, उतना ही सियासी भी और उसमें कूटनीति के साथ तीखे कटाक्षों की भी भरमार थी.
वहीं जैसे ही जयशंकर विपक्ष की आलोचना के बीच-बीच में टोके जाने लगे, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद खड़े हो गए और विपक्ष पर हमला बोलते हुए स्पष्ट कहा, "मुझे आपत्ति है कि इन्हें अपने देश के विदेश मंत्री पर भरोसा नहीं, लेकिन दूसरे देशों के नेताओं की बात पर है."
"हां, मैं चीन गया था... लेकिन किसी बैठक के लिए नहीं"
जयशंकर ने सदन में स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह कई बार चीन गए हैं, लेकिन न तो ओलंपिक देखने और न ही किसी ‘सीक्रेट मीटिंग’ के लिए. उन्होंने यह टिप्पणी उस समय की जब विपक्ष ने ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम आतंकी हमले पर चर्चा के दौरान सरकार की विदेश नीति और रणनीति पर सवाल खड़े किए.
बिना नाम लिए उन्होंने राहुल गांधी के उस कथित मुलाकात की ओर इशारा किया जिसमें डोकलाम विवाद के समय राहुल ने दिल्ली में चीन के राजदूत से मुलाकात की थी. “जब हमारी सेना डोकलाम में चीन की सेना से आमने-सामने खड़ी थी, तब कुछ लोग सरकार या विदेश मंत्रालय से जानकारी लेने की बजाय चीनी राजनयिकों से मिल रहे थे,” जयशंकर ने कहा.
जानकारी विदेश मंत्रालय से नहीं, चीनी राजदूत से?
विदेश मंत्री ने संसद में यह सवाल उठाया कि क्या एक लोकतांत्रिक देश में विपक्ष का यह रवैया स्वीकार्य है कि वह विदेश नीति पर स्पष्टीकरण सरकार से लेने की जगह विदेशियों से ले? "ये तो बहुत आश्चर्य की बात है कि वे देश के निर्वाचित विदेश मंत्री की बात सुनना नहीं चाहते, बल्कि चीन के अधिकारियों की बात को ज़्यादा महत्व देते हैं."
जयशंकर ने दो टूक कहा कि उस समय देश को एकजुटता की ज़रूरत थी."उस समय राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होने चाहिए थे. डोकलाम में सैनिक मोर्चा संभाल रहे थे और दिल्ली में विपक्ष गुप्त कूटनीति चला रहा था."
कुछ लोग चीन में बैठकर ओलंपिक का आनंद ले रहे थे
जयशंकर ने आगे बढ़ते हुए राहुल गांधी के कथित 2008 के बीजिंग ओलंपिक दौरे का परोक्ष रूप से जिक्र किया. उन्होंने कहा, "जब चीन अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर के लोगों को स्टेपल वीजा दे रहा था, तब कुछ नेता चीन में बैठकर ओलंपिक का आनंद ले रहे थे."
उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह समय देश के अंदर विदेश नीति पर एकमत दिखाने का होता है, न कि ‘पर्दे के पीछे विदेशी राजनयिकों के साथ समझौते करने’ का. जयशंकर ने यह संदेश भी दिया कि विदेश मंत्री का काम केवल विदेशों में प्रतिनिधित्व करना नहीं, बल्कि संसद में देश के हर नागरिक के प्रति जवाबदेह रहना भी है.
अमित शाह ने विपक्ष को आड़े हाथों लिया
जैसे ही जयशंकर के बयान पर विपक्ष की ओर से शोरगुल शुरू हुआ, गृह मंत्री अमित शाह खड़े हो गए. उन्होंने विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा, "इनको अपने देश के मंत्री पर भरोसा नहीं है, लेकिन चीन के राजदूत पर है. यह शर्म की बात है."
शाह ने कहा कि देश की सुरक्षा और विदेश नीति कोई राजनीतिक बहस का मुद्दा नहीं होना चाहिए, बल्कि यह एक साझा राष्ट्रीय दृष्टिकोण का मामला है. उन्होंने विपक्षी बेंचों की ओर इशारा करते हुए पूछा, "अगर आज भी आप राष्ट्रहित से ऊपर राजनीति को रखेंगे, तो देश आपसे जरूर सवाल करेगा."
ऑपरेशन सिंदूर का मुद्दा बदलकर राहुल पर अटैक
दरअसल, यह पूरा घटनाक्रम उस वक्त शुरू हुआ जब संसद में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले और इसके जवाब में भारत द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बहस हो रही थी. विपक्ष ने सरकार से सवाल किया कि आखिर इतनी बड़ी चूक कैसे हुई, और जवाबी कार्रवाई में भारत की रणनीति क्या रही.
हालांकि, जयशंकर ने बहस को एक बड़ा फलक दिया और इसे सीमित जवाब की जगह व्यापक कूटनीतिक चर्चा में बदल दिया. उन्होंने विपक्ष को याद दिलाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा केवल गोली और बंदूक की बात नहीं होती, बल्कि इसमें कूटनीति, खुफिया जानकारी, वैश्विक साझेदारी और राजनीतिक एकजुटता भी उतनी ही जरूरी होती है.
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