दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. भारत और अफगानिस्तान के बीच हालिया कूटनीतिक संपर्कों ने यह साफ संकेत दे दिया है कि पाकिस्तान के लिए आने वाले दिन और भी चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं. पहली बार भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से फोन पर बातचीत की. यह न केवल एक कूटनीतिक घटनाक्रम है, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को पुनर्परिभाषित करने वाली दिशा में एक अहम क़दम भी है.
जयशंकर की इस बातचीत में भारत-अफगान दोस्ती की नींव को मज़बूत करने की प्रतिबद्धता दिखी और पाकिस्तान द्वारा फैलाए जा रहे झूठे प्रचार को अफगान सरकार द्वारा खारिज करने पर आभार व्यक्त किया गया. भारत ने अफगानिस्तान के विकास में हरसंभव सहायता देने का भी वादा किया.
भारत-अफगानिस्तान की पहली सीधी बातचीत
यह पहली बार है जब भारत के विदेश मंत्री ने तालिबान शासन के किसी वरिष्ठ मंत्री से प्रत्यक्ष संपर्क साधा है. अब तक यह बातचीत राजनयिक स्तर या विदेश सचिव स्तर पर सीमित थी. यह संकेत करता है कि भारत तालिबान के साथ संवाद को लेकर अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने लगा है. साथ ही, यह पाकिस्तान के उस आखिरी तर्क को भी कमजोर करता है जो उसे तालिबान के ‘प्राकृतिक सहयोगी’ के रूप में दिखाने की कोशिश करता था.
अफगानिस्तान-पाकिस्तान संबंधों की दरार
तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते लगातार खराब हुए हैं. सीमा पर गोलीबारी, हवाई हमले और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान पर TTP आतंकियों को शरण देने का आरोप लगाता है, जबकि तालिबान इसे अपनी संप्रभुता पर हमला बताता है.
2023 से पाकिस्तान ने लाखों अफगान शरणार्थियों को जबरन वापस भेजना शुरू कर दिया है, जिससे रिश्ते और बिगड़े हैं. भारत के साथ अफगानिस्तान की बढ़ती नजदीकियां अब पाकिस्तान के लिए एक नई कूटनीतिक चिंता बन गई हैं.
पाकिस्तान के लिए उभरती चुनौतियां
रणनीतिक झटका: भारत और अफगानिस्तान के बीच सहयोग पाकिस्तान के लिए रणनीतिक चुनौती है. यह भारत को मध्य एशिया तक पहुंच का नया रास्ता दे सकता है, जो पाकिस्तान को दरकिनार करता है.
जियोग्राफिक दबाव: भारत की अफगानिस्तान में मौजूदगी, चाबहार पोर्ट जैसे प्रोजेक्ट्स के जरिए पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति को कमजोर कर सकती है.
आतंकवाद पर साझा कार्रवाई: अगर भारत और अफगानिस्तान मिलकर आतंकवाद के खिलाफ काम करते हैं, तो पाकिस्तान की जमीन पर पलने वाले आतंकी संगठनों पर वैश्विक दबाव और बढ़ेगा. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलगाव: अगर तालिबान भारत की ओर झुकता है, तो पाकिस्तान की तालिबान शासन को मान्यता दिलाने की कोशिशों को झटका लग सकता है. इससे पाकिस्तान की वैश्विक साख पर भी असर पड़ेगा.
भारत की रणनीति और संतुलन
हालांकि भारत ने अब तक तालिबान शासन को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन दोनों देशों के बीच लगातार हो रहे संवाद यह दर्शाते हैं कि भारत व्यवहारिक दृष्टिकोण से काम कर रहा है. भारत ने काबुल में मौजूद तकनीकी टीम के माध्यम से सीमित कूटनीतिक संपर्क बनाए रखे हैं, जबकि मुंबई में अफगान महावाणिज्यदूत की नियुक्ति को मंज़ूरी भी दी है.
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