नई दिल्ली: इज़रायल और ईरान के बीच हालिया संघर्ष ने वैश्विक सैन्य रणनीति को एक नई चुनौती के सामने ला खड़ा किया है- हाइपरसोनिक मिसाइलों का खतरनाक उदय. इस युद्ध में जहां इज़रायल के आयरन डोम, डेविड स्लिंग और ऐरो सिस्टम जैसे विश्वप्रसिद्ध एयर डिफेंस सिस्टम पारंपरिक मिसाइल और रॉकेट हमलों को रोकने में बेहद सफल रहे, वहीं हाइपरसोनिक मिसाइलों के सामने ये सिस्टम भी कमजोर साबित हो रहे हैं.
हाइपरसोनिक मिसाइल क्यों बनी सिरदर्द?
हाइपरसोनिक मिसाइलें पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों की तुलना में कहीं अधिक घातक मानी जाती हैं. इनकी न्यूनतम गति 5 मैक (लगभग 6173 किलोमीटर प्रति घंटा) होती है और ये वातावरण में अत्यधिक गतिशीलता के साथ यात्रा कर सकती हैं. इनके उच्च वेग, कम प्रतिक्रिया समय और अप्रत्याशित मार्ग बदलने की क्षमता इन्हें लगभग अदृश्य और अजेय बना देती है.
डीआरडीओ के पूर्व प्रवक्ता और डिफेंस विशेषज्ञ रवी गुप्ता के अनुसार, वर्तमान में दुनिया के किसी भी देश के पास हाइपरसोनिक मिसाइलों को रोकने के लिए आवश्यक इंटरसेप्टर मिसाइलें उपलब्ध नहीं हैं. इज़रायल जैसे अत्याधुनिक डिफेंस सिस्टम रखने वाले देश भी इन मिसाइलों के हमलों को रोकने में संघर्ष कर रहे हैं.
बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइल में फर्क
बैलिस्टिक मिसाइल आमतौर पर स्पेस में प्रवेश करने के बाद पैराबोलिक ट्रेजेक्टरी में अपने टारगेट की ओर गिरती हैं. इन्हें रडार द्वारा जल्दी डिटेक्ट कर लिया जाता है, जिससे इंटरसेप्ट करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है. इज़रायल जैसे देशों के पास डेविड स्लिंग, ऐरो-2, ऐरो-3 और अमेरिकी THAAD सिस्टम जैसे एंटी-बैलिस्टिक डिफेंस मौजूद हैं, जो स्पेस में भी बैलिस्टिक मिसाइलों को निशाना बना सकते हैं.
लेकिन हाइपरसोनिक मिसाइल इस पैटर्न को तोड़ देती हैं. वे न केवल बेहद तेज गति से चलती हैं, बल्कि वायुमंडल में रहकर तेजी से दिशा बदल सकती हैं. यही कारण है कि इन्हें रडार से ट्रैक करना और इंटरसेप्ट करना लगभग असंभव हो जाता है.
हमलों को रोकने में क्यों फेल हो रहा इज़रायल?
इज़रायल के पास अभी तक हाइपरसोनिक मिसाइलों के खिलाफ कोई समर्पित डिफेंस सिस्टम नहीं है. उसका आयरन डोम मुख्य रूप से शॉर्ट रेंज रॉकेट और ड्रोन के खिलाफ प्रभावी है. डेविड स्लिंग और ऐरो सिस्टम बैलिस्टिक मिसाइलों को तो रोक सकते हैं, लेकिन हाइपरसोनिक मिसाइलों के लिए इनकी प्रतिक्रिया गति पर्याप्त नहीं है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि हाइपरसोनिक मिसाइल का इंटरसेप्शन करना है, तो या तो हाइपरसोनिक इंटरसेप्टर बनाना होगा या उससे भी तेज हाई-हाइपरसोनिक इंटरसेप्टर (10-25 मैक की स्पीड वाला) विकसित करना पड़ेगा. फिलहाल ऐसा कोई सिस्टम दुनिया में मौजूद नहीं है.
ये भी पढ़ें- 'पैसे और आतंकी फंडिंग के बिना...' पहलगाम हमले पर FATF ने जारी किया रिपोर्ट, पाकिस्तान पर होगा एक्शन?