तेल अवीव: इज़राइल की वॉर कैबिनेट ने गाज़ा पट्टी में चल रहे सैन्य अभियान को और अधिक विस्तार देने की योजना को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है. इस योजना के तहत गाज़ा के बड़े हिस्सों पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने की मंशा व्यक्त की गई है. हालांकि इस निर्णय पर फिलहाल तत्काल क्रियान्वयन नहीं किया जाएगा, और इसके अमल में आने की संभावना अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की संभावित यात्रा के बाद जताई गई है.
इस बीच इज़राइली डिफेंस फोर्स (IDF) के चीफ ऑफ स्टाफ, जनरल इयाल ज़मीर ने इस कदम को लेकर गहरी चिंता जताई है. उनका कहना है कि गाज़ा में सैन्य कार्रवाई का विस्तार बंधकों की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है. उन्होंने आगाह किया कि अगर हमास के कब्जे में मौजूद बंधकों तक पहुंचने से पहले हमला तेज किया गया, तो कई निर्दोष जीवन खतरे में पड़ सकते हैं.
रणनीति और चुनौती
वॉर कैबिनेट की बैठक में ज़मीर ने दो स्पष्ट लक्ष्य बताए—पहला, हमास को निर्णायक रूप से कमजोर करना; और दूसरा, बंधकों को सुरक्षित रिहा कराना. लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इन दोनों लक्ष्यों को एक साथ साधना एक जटिल चुनौती बन गया है.
ज्ञात हो कि 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा किए गए हमले में लगभग 250 इज़राइली नागरिकों को बंधक बना लिया गया था. अब तक कई बंधकों को रिहा किया जा चुका है, लेकिन इज़राइल के अनुमान के अनुसार अभी भी 59 लोग हमास की कैद में हैं, जिनमें से 35 के मारे जाने की आशंका है.
सैन्य तैयारी और मानवीय स्थिति
इज़राइली सेना ने गाज़ा में हमास के बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने के लिए रिजर्व सैनिकों को भी बुलाना शुरू कर दिया है. IDF प्रमुख ने संकेत दिया कि यह अभियान हमास की सुरंग नेटवर्क और अन्य रणनीतिक ठिकानों को ध्वस्त करने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि व्यापक नियंत्रण स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ेगा.
हालांकि इस बीच गाज़ा को दी जाने वाली मानवीय सहायता में भी कटौती की गई है, जिससे वहां की नागरिक आबादी पर संकट और गहरा गया है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और संघर्षविराम की दिशा में ठोस प्रयास करने की अपील की है.
इज़राइल का रुख अब भी सख्त
सीजफायर को लेकर बातचीत फिलहाल रुकी हुई है. हमास ने बंधकों की रिहाई के बदले युद्धविराम और इज़राइली सेनाओं की पूर्ण वापसी की मांग की है, जबकि इज़राइल का रुख अब भी सख्त बना हुआ है.
स्थिति लगातार तनावपूर्ण बनी हुई है, और यह साफ है कि आने वाले दिनों में क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने की जिम्मेदारी केवल सैन्य ताकत से नहीं, बल्कि कूटनीतिक सूझबूझ से भी तय होगी.
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