Maharashtra: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर नगरों के नाम बदलने का मुद्दा सुर्खियों में है. राज्य सरकार ने सांगली जिले के इस्लामपुर कस्बे का नाम बदलकर 'ईश्वरपुर' रखने का निर्णय लिया है. विधानसभा के मानसून सत्र के आखिरी दिन यह घोषणा की गई, जिससे एक लंबे समय से उठती मांग को औपचारिक रूप दिया गया.
कैबिनेट बैठक में मुहर, केंद्र की मंजूरी बाकी
खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल ने विधानसभा में बताया कि यह फैसला गुरुवार को हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में लिया गया है. अब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाएगा, जहाँ से अंतिम मंजूरी मिलनी बाकी है. केंद्र से स्वीकृति मिलने के बाद इस्लामपुर आधिकारिक रूप से ‘ईश्वरपुर’ कहलाएगा.
संगठन की मांग, सालों पुराना आंदोलन
इस नाम परिवर्तन की मांग हिंदुत्ववादी संगठन शिव प्रतिष्ठान की ओर से उठाई गई थी. संगठन ने सांगली जिले के कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर इस्लामपुर का नाम बदलने की माँग की थी. शिव प्रतिष्ठान के प्रमुख संबाजी भिडे के समर्थकों ने इस मुद्दे पर लंबे समय से आंदोलन चलाया था. उनका दावा रहा है कि इस्लामपुर का नाम बदलकर ईश्वरपुर करना “संस्कृति और इतिहास की पुनर्स्थापना” है. संगठन ने चेतावनी दी थी कि जब तक यह माँग पूरी नहीं होती, वे शांत नहीं बैठेंगे.
1986 से लंबित थी यह मांग
इस नाम परिवर्तन की जड़ें वर्ष 1986 से जुड़ी हैं. स्थानीय स्तर पर यह मांग दशकों से की जाती रही है, लेकिन अब जाकर इसे सरकार ने गंभीरता से लिया और औपचारिक प्रक्रिया शुरू की है. स्थानीय शिवसेना नेताओं ने भी इस मुद्दे को समय-समय पर उठाया था.
नाम बदलने की परंपरा और विवाद
यह कोई पहला मौका नहीं है जब महाराष्ट्र में किसी शहर या कस्बे का नाम बदला गया हो. औरंगाबाद को 'छत्रपति संभाजीनगर' और उस्मानाबाद को 'धराशिव' नाम दिए जा चुके हैं. ऐसे मामलों में अक्सर राजनीति, इतिहास, स्थानीय भावनाओं और सांस्कृतिक पहचान के सवाल जुड़ते हैं.
क्या है आगे की प्रक्रिया?
अब राज्य सरकार का प्रस्ताव गृह मंत्रालय (केंद्र सरकार) के पास जाएगा. केंद्र की मंजूरी के बाद ही इसे आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया जाएगा, जिसके बाद सभी सरकारी दस्तावेज़ों, नक्शों और पहचान पत्रों में नया नाम शामिल होगा.
सिर्फ नाम नहीं, भावनाएं जुड़ी हैं
इस्लामपुर से ईश्वरपुर तक का यह बदलाव केवल अक्षरों का फेर नहीं, बल्कि एक लंबे सामाजिक आंदोलन और पहचान के भावनात्मक पक्ष से जुड़ा हुआ है. जहां एक ओर समर्थक इसे “संस्कृतिकरण” और “सुधार” मानते हैं, वहीं दूसरी ओर इससे जुड़े विरोध भी सामने आ सकते हैं, जैसा कि कई अन्य स्थानों पर देखा गया है. अब सबकी निगाहें केंद्र सरकार के फैसले पर टिकी हैं, क्या ‘ईश्वरपुर’ नाम को राष्ट्रीय मान्यता मिलेगी, यह आने वाला समय बताएगा.
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