इजराइल-ईरान के बाद खामेनेई को सता रही इन तीन देशों से मिली धमकी का डर! परमाणु बातचीत पर क्या फैसला?

    ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष के बाद, जहां बेंजामिन नेतन्याहू बैकफुट पर दिखाई दिए, अमेरिका ने अपनी सक्रियता से ईरान को बड़ा झटका दिया. हालांकि, इस दबाव के बावजूद ईरान ने इजराइल और अमेरिका को नजरअंदाज करते हुए अपनी धाक जमाई और खुलकर मोर्चा लिया.

    Iran talk on nuclear from britian and france and germany
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    ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष के बाद, जहां बेंजामिन नेतन्याहू बैकफुट पर दिखाई दिए, अमेरिका ने अपनी सक्रियता से ईरान को बड़ा झटका दिया. हालांकि, इस दबाव के बावजूद ईरान ने इजराइल और अमेरिका को नजरअंदाज करते हुए अपनी धाक जमाई और खुलकर मोर्चा लिया. लेकिन जब बात ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की धमकियों की आई, तो ईरान ने अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव दिखाया और परमाणु वार्ता के लिए राजी हो गया. सोमवार को ईरान के विदेश मंत्रालय ने इस बारे में आधिकारिक घोषणा की कि वह आगामी शुक्रवार को इस्तांबुल में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ वार्ता करेगा.

    ईरान और यूरोपीय देशों के बीच परमाणु वार्ता

    ईरान, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के बीच शुक्रवार को होने वाली इस बैठक को लेकर काफी उम्मीदें हैं. इस बैठक में इन देशों के उप-विदेश मंत्री शामिल होंगे, और यह एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है क्योंकि इसमें परमाणु वार्ता को लेकर अगला रोडमैप तय किया जाएगा. ईरान ने आधिकारिक रूप से यह जानकारी दी कि इस बैठक का उद्देश्य 2015 के परमाणु समझौते (JCPOA) के तहत स्थिति को फिर से सामान्य करना है, ताकि तनाव को कम किया जा सके और भविष्य में संभावित प्रतिबंधों से बचा जा सके.

    ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने ईरान को चेतावनी दी है कि अगर परमाणु वार्ता को पुनः शुरू नहीं किया गया या अगर कोई ठोस परिणाम नहीं निकला, तो अगस्त के अंत तक संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को फिर से लागू किया जाएगा. यह कार्रवाई ‘स्नैपबैक मैकेनिज्म’ के तहत की जा सकती है, जो 2015 के परमाणु समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

    2015 का परमाणु समझौता और अमेरिका की भूमिका

    ईरान और पश्चिमी देशों के बीच 2015 में हुआ परमाणु समझौता एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता मानी जाती है. इस समझौते में ईरान पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटा लिया गया था, लेकिन बदले में ईरान को अपने परमाणु कार्यक्रम में कुछ सीमाएं स्वीकार करनी पड़ीं. हालांकि, 2018 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से अमेरिका को बाहर कर लिया, और तब से स्थिति में खासी तनातनी देखने को मिली है. अमेरिका की इस कार्रवाई के बाद, ईरान के परमाणु कार्यक्रम में तेजी आ गई, जिससे क्षेत्रीय तनाव और बढ़ गया.

    ईरान की कड़ी प्रतिक्रिया

    ईरान ने हाल ही में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की धमकियों का जवाब देते हुए कहा कि इन देशों के पास "कानूनी अधिकार नहीं है" कि वे ईरान पर दबाव डालें. ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने इस पर कहा कि अगर यूरोपीय देश कुछ भूमिका निभाना चाहते हैं, तो उन्हें जिम्मेदारी से काम करना चाहिए और धमकी देने की पुरानी नीतियों को छोड़ देना चाहिए. अरागची के अनुसार, "स्नैपबैक" जैसे कदमों के लिए उनके पास कोई नैतिक और कानूनी आधार नहीं है, क्योंकि ईरान ने हमेशा समझौते के तहत अपने वादों को निभाया है, जबकि अमेरिका और यूरोपीय देशों ने अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं किया.

    ईरान की प्रतिक्रिया से स्पष्ट है उसकी दृढ़ता

    ईरान की यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि वह अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव में आने के लिए तैयार नहीं है. उसने इजराइल के साथ संघर्ष के बावजूद अपनी आक्रामकता जारी रखी, और यूरोपीय देशों की धमकियों का भी पूरी तरह से मुकाबला किया. हालांकि, वह यह भी समझता है कि परमाणु समझौते से बाहर निकलने से उसे जो अंतरराष्ट्रीय आर्थिक दबाव झेलना पड़ा है, वह अब काफी बढ़ चुका है.

    इसलिए, परमाणु वार्ता की ओर ईरान का कदम एक समझदारी भरा निर्णय हो सकता है, जिससे उसे वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करने का एक और अवसर मिल सकता है. लेकिन साथ ही, ईरान के लिए यह भी महत्वपूर्ण होगा कि वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितों को सुनिश्चित करते हुए इस वार्ता में भाग लें, ताकि भविष्य में कोई भी समझौता उसकी संप्रभुता और सुरक्षा को खतरे में न डाले.

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