Iran and Israel War: ईरान, अमेरिका और इजरायल के बीच लगातार बढ़ते तनाव ने अब वैश्विक ऊर्जा बाजार को संकट के मुहाने पर खड़ा कर दिया है. अमेरिका द्वारा ईरानी परमाणु ठिकानों पर किए गए हमलों के बाद ईरान ने अब होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की तैयारी शुरू कर दी है.
ईरानी संसद से इसे मंजूरी मिल चुकी है और अब फैसला देश की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को लेना है. यह वही जलमार्ग है जिससे होकर दुनिया के करीब 25% समुद्री तेल की आपूर्ति होती है. भारत, चीन, जापान जैसे ऊर्जा-आयात पर निर्भर देशों के लिए यह एक गंभीर चेतावनी है. हालांकि भारत ने अपनी ऊर्जा रणनीति को इस तरह तैयार किया है कि ऐसे भू-राजनीतिक संकटों का प्रभाव न्यूनतम हो.
होर्मुज जलडमरूमध्य क्यों है इतना महत्वपूर्ण?
होर्मुज जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ता है, जो आगे अरब सागर तक खुलता है. यह दुनिया का सबसे व्यस्ततम तेल परिवहन मार्ग है, जिसकी चौड़ाई मात्र 33 किलोमीटर है. लेकिन इसी पतली जलधारा से प्रतिदिन लाखों बैरल तेल सऊदी अरब, ईरान, यूएई और कतर से वैश्विक बाजारों तक पहुंचता है. यही कारण है कि इसका बंद होना पूरी दुनिया की ऊर्जा आपूर्ति पर भारी असर डाल सकता है.
कौन-कौन देश होंगे सबसे ज्यादा प्रभावित
2024 के आंकड़ों के अनुसार, चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया—होर्मुज से होकर गुजरने वाले कुल कच्चे तेल का करीब 69% उपभोग करते हैं. इसके अलावा एलएनजी यानी तरलीकृत प्राकृतिक गैस का 20% व्यापार भी इसी रूट से होता है. अगर यहां कोई रुकावट आती है, तो न केवल इन देशों की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित होगी, बल्कि वैश्विक बीमा, शिपिंग और सुरक्षा लागत में भी उछाल आएगा.
क्या वाकई ईरान जलडमरूमध्य बंद करेगा
इतिहास बताता है कि ईरान ने कभी भी इस जलमार्ग को पूरी तरह से बंद नहीं किया है—even during war. लेकिन इस बार हालात अलग हैं. अगर ईरान यह कदम उठाता है, तो वह सीमित सैन्य विकल्पों जैसे बारूदी सुरंगें, ड्रोन हमले या साइबर अटैक का सहारा ले सकता है. हालांकि, ईरान खुद भी इस मार्ग से अपने तेल का बड़ा हिस्सा निर्यात करता है, इसलिए वह चीन और अन्य सहयोगी देशों के हितों को नजरअंदाज नहीं करेगा.
भारत की ऊर्जा आपूर्ति पर क्या असर पड़ेगा
भारत अब बहु-स्रोत ऊर्जा रणनीति पर काम कर रहा है. भले ही लगभग 1.5 से 2 मिलियन बैरल प्रतिदिन का कच्चा तेल भारत होर्मुज से आयात करता है, लेकिन देश ने रूस, अमेरिका, ब्राजील और अफ्रीका जैसे विकल्पों को अपना लिया है. साथ ही, भारत के पास 74 दिनों का रणनीतिक तेल भंडार और घरेलू एलपीजी का 50% खुद के स्रोतों से आता है. ऐसे में तत्काल खतरा कम है, परंतु दीर्घकालिक असर कीमतों के रूप में दिख सकता है.
भारत ने क्या कदम उठाए हैं
पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी के मुताबिक, भारत अब 40 देशों से कच्चा तेल आयात करता है, जबकि कुछ साल पहले यह संख्या केवल 27 थी. इसके अलावा भारत के पास 42 बिलियन बैरल तेल भंडार और 500 से अधिक सक्रिय तेल कुएं हैं. एलएनजी की आपूर्ति के लिए भी भारत कतर, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे विकल्पों पर निर्भर है.
क्या बढ़ेंगी पेट्रोल-डीजल की कीमतें
अंतरराष्ट्रीय बाजार में अस्थिरता का असर जरूर दिखेगा, लेकिन भारत में खुदरा स्तर पर कीमतों को स्थिर बनाए रखने की नीति अपनाई जा रही है. बीते तीन वर्षों में भारत ने तीन बार पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती की है. यदि संकट और बढ़ा, तो सरकार निर्यात पर नियंत्रण लगाकर घरेलू आपूर्ति को प्राथमिकता दे सकती है.
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