मध्य पूर्व में चल रहे 12 दिन के भीषण संघर्ष के बाद, ईरान की वायुसेना लगभग पंगु हो चुकी है. इजरायल ने न केवल ईरान के पुराने लड़ाकू विमानों को एक-एक कर तबाह किया, बल्कि उसकी एयर डिफेंस और रडार यूनिट्स को भी पूरी तरह से निष्क्रिय कर दिया है. इस रणनीतिक हार के बाद अब ईरान अपनी वायुसेना को फिर से खड़ा करने के लिए चीन से आधुनिक लड़ाकू विमानों की खरीद की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
ईरानी एयरफोर्स की स्थिति बेहद दयनीय
ईरान की वायुसेना, जिसे आधिकारिक रूप से इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान एयर फोर्स (IRIAF) कहा जाता है, अभी भी 1970 के दशक के अमेरिकी विमानों जैसे F-4 फैंटम, F-5 टाइगर और F-14 टॉमकैट्स पर निर्भर है. इनमें से अधिकांश विमान तकनीकी रूप से पुराने हैं और उड़ने लायक भी नहीं बचे हैं. मिलिट्री बैलेंस 2025 रिपोर्ट के अनुसार, संघर्ष से पहले ईरान के पास लगभग 150 फाइटर जेट्स थे, जिनमें से आधे से ज्यादा अब या तो नष्ट हो चुके हैं या अनुपयोगी. इसके अलावा, ईरान के स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम Bavar-373 भी इजरायली इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर के सामने असफल साबित हुए.
J-10C: चीन की ओर एक नया दांव
रूस से Su-35 की डील विफल हो जाने के बाद, ईरान के पास विकल्प बेहद सीमित हैं. अब वह चीन के J-10C "Vigorous Dragon" फाइटर जेट्स खरीदने की योजना बना रहा है. यह एक 4.5-जनरेशन मल्टी-रोल फाइटर है, जो AESA रडार, PL-15 मिसाइल और उच्च गतिशीलता से लैस है. ईरान लगभग 36 J-10C विमानों की खरीद की योजना बना रहा है, जो उसकी वायुसेना के पुनर्निर्माण की एक शुरुआत हो सकती है.
क्या J-10C ईरान के लिए उपयोगी साबित होंगे?
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान के लिए J-10C को अपनी वायुसेना में समायोजित करना आसान नहीं होगा. ईरान ने आज तक कोई चीनी फाइटर नहीं उड़ाया है. नए पायलट्स को प्रशिक्षण, ग्राउंड सपोर्ट सिस्टम और लॉजिस्टिक्स चेन तैयार करना होगा. चीनी विमान अक्सर सॉफ्टवेयर-लॉक रहते हैं, जिससे लोकल मॉडिफिकेशन कठिन हो जाता है. इसके अलावा, अगर यह सौदा होता है, तो इसका असर केवल ईरान-चीन के रिश्तों पर ही नहीं, बल्कि पूरे फारस की खाड़ी में चीन की सैन्य मौजूदगी को संकेत देगा.
जवाबी तैयारी में इजरायल
इस डील की आहट से पहले ही इजरायल अमेरिका से अतिरिक्त F-35 यूनिट्स की मांग कर रहा है. F-35 स्टेल्थ टेक्नोलॉजी वाला 5वीं पीढ़ी का फाइटर है, जिसे J-10C जैसे 4.5-जनरेशन फाइटर के मुकाबले बहुत अधिक उन्नत माना जाता है. CNN की रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायल पहले ही अमेरिका के साथ नई डिलीवरी को लेकर बातचीत शुरू कर चुका है.
क्या ईरान उठा पाएगा इतने बड़े खर्च का भार?
युद्ध से थके और आर्थिक प्रतिबंधों से जूझ रहे ईरान के पास एक साथ इतने विमानों को खरीदने और उनका मेंटेनेंस करने की आर्थिक क्षमता नहीं है. जानकार मानते हैं कि अगर यह सौदा होता भी है, तो इसका अधिकतर लाभ चीन को ही मिलेगा — नए बाजार, सैन्य प्रभाव और कूटनीतिक बढ़त के रूप में.
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