क्या ईरान अगला इराक बनने जा रहा है? ट्रंप दोहरा रहे वही पुराना इतिहास, भारी पड़ सकती है जॉर्ज बुश वाली गलती

    संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षकों—हैंस ब्लिक्स और मोहम्मद अल बरादेई—ने स्पष्ट कहा था कि इराक में ऐसे हथियारों का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला.

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    डोनाल्ड ट्रंप | Photo: ANI

    वाशिंगटनः इतिहास एक बार फिर खुद को दोहराता दिख रहा है. 2003 में जिस तरह अमेरिका ने इराक पर जनसंहार के हथियारों का बहाना बनाकर हमला बोला था, उसी राह पर अब वह ईरान के खिलाफ बढ़ रहा है. उस वक्त संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षकों—हैंस ब्लिक्स और मोहम्मद अल बरादेई—ने स्पष्ट कहा था कि इराक में ऐसे हथियारों का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला. फिर भी अमेरिका ने इराक में घुसपैठ की, सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाया, लेकिन युद्ध की कोई निर्णायक जीत उसे नसीब नहीं हुई. अब लगभग दो दशक बाद, ईरान को लेकर भी कुछ वैसी ही तस्वीर उभर रही है.

    IAEA की अस्पष्ट रिपोर्ट और अमेरिका-इजरायल का हमला

    इजरायल द्वारा दिए गए खुफिया इनपुट्स और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की हालिया रिपोर्ट ने दुनिया का ध्यान एक बार फिर ईरान की ओर खींचा है. रिपोर्ट में दावा किया गया कि ईरान का यूरेनियम संवर्धन हथियार-स्तर तक पहुंच चुका है. इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह तक कह दिया कि ईरान 9 परमाणु बम बना सकता है, और उन्होंने यह दोहराया कि इजरायल उसे परमाणु शक्ति नहीं बनने देगा.

    इस माहौल में अमेरिका का हस्तक्षेप तय माना गया. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश पर 21 जून की रात से 22 जून की सुबह के बीच B-2 स्टील्थ बॉम्बर्स ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु केंद्रों — नतांज, इस्फहान और फोर्डो — पर बंकर बस्टर बम गिराए. अमेरिकी सैन्य अधिकारियों का दावा है कि ये ठिकाने अब पूरी तरह निष्क्रिय हो चुके हैं.

    घरेलू विरोध और वैश्विक चिंता

    हालांकि अमेरिका में खुद ट्रंप को तीखा विरोध झेलना पड़ रहा है. डेमोक्रैटिक पार्टी ने यह सवाल उठाया है कि क्या राष्ट्रपति को कांग्रेस की अनुमति के बिना इतना बड़ा सैन्य फैसला लेने का अधिकार है?

    अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी प्रतिक्रियाएं तेज हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने गहरी चिंता जताते हुए कहा कि यह संघर्ष अगर आगे बढ़ा, तो इसके “नागरिकों, क्षेत्र और दुनिया पर विनाशकारी प्रभाव” पड़ सकते हैं. उन्होंने ज़ोर दिया कि इसका कोई सैन्य समाधान नहीं है और सिर्फ कूटनीति ही इसका हल है.

    ईरान का पलटवार तय?

    ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने इस हमले के तुरंत बाद स्पष्ट शब्दों में कहा, "असली जंग अब शुरू हुई है." उन्होंने चेताया कि खाड़ी में स्थित अमेरिका के सभी सैन्य अड्डे, चाहे वो सऊदी अरब, यूएई, बहरीन या जॉर्डन में हों, अब ईरान की मीडियम रेंज मिसाइलों के निशाने पर हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ईरान ने पलटवार किया तो यह संघर्ष लंबा, जटिल और विनाशकारी हो सकता है.

    क्या अमेरिका फिर एक बार बिना योजना के युद्ध में उतर गया है?

    चीन की सरकारी मीडिया और विश्लेषकों ने भी अमेरिकी कार्रवाई की तुलना 2003 के इराक युद्ध से की है. CGTN के एक लेख में कहा गया कि पश्चिम एशिया में अमेरिकी हस्तक्षेप का इतिहास “अनपेक्षित और दीर्घकालिक अस्थिरता” से भरा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है — क्या अमेरिका ईरान में वही गलती दोहरा रहा है जो उसने इराक में की थी? और अगर हां, तो इसके परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं, क्योंकि इस बार केवल एक देश नहीं, पूरा क्षेत्र सुलग रहा है.

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