जिस रूस और चीन के दम पर उछल रहा था ईरान, उन्होंने दिया धोखा! युद्ध में पीछे खींच लिया हाथ

    Iran and Israel War: मध्य पूर्व में छिड़ा ईरान और इजरायल का संघर्ष अब केवल क्षेत्रीय विवाद नहीं रह गया है, बल्कि यह वैश्विक राजनीति की धुरी को भी हिला रहा है. इस बार युद्ध में एक खास बात सामने आई है. ईरान अपने पुराने सहयोगियों से उम्मीद के मुताबिक समर्थन नहीं पा रहा.

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    जिस रूस और चीन के दम पर उछल रहा था ईरान

    Iran and Israel War: मध्य पूर्व में छिड़ा ईरान और इजरायल का संघर्ष अब केवल क्षेत्रीय विवाद नहीं रह गया है, बल्कि यह वैश्विक राजनीति की धुरी को भी हिला रहा है. इस बार युद्ध में एक खास बात सामने आई है. ईरान अपने पुराने सहयोगियों से उम्मीद के मुताबिक समर्थन नहीं पा रहा. कभी जिस रूस और चीन को वह अपनी पीठ समझता था, वे अब मौन या सीमित समर्थन की मुद्रा में हैं. इसी भू-राजनीतिक खालीपन का फायदा उठाते हुए इजरायल ने रणनीतिक समय पर बड़ा हमला बोल दिया है.

    रूस की चुप्पी: यूक्रेन युद्ध में उलझा सबसे बड़ा सहयोगी

    ईरान और रूस के रिश्ते बीते कुछ वर्षों में बेहद मजबूत हुए थे. यूक्रेन युद्ध के दौरान ईरान ने रूस को हथियार और ड्रोन मुहैया कराए थे, वहीं रूस ने ईरान को तेल और ऊर्जा क्षेत्र में तकनीकी मदद दी. परंतु अब स्थितियां बदल चुकी हैं. रूस खुद यूक्रेन के साथ लंबी लड़ाई में फंसा है, और उसकी आर्थिक व सैन्य स्थिति डावांडोल हो चुकी है.

    रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ईरान के समर्थन में औपचारिक बयान दिए जरूर हैं, लेकिन कोई ठोस सैन्य या कूटनीतिक समर्थन नहीं दिया. CNN की रिपोर्टों के अनुसार, रूस फिलहाल पश्चिमी प्रतिबंधों से और अधिक टकराव नहीं चाहता, इसीलिए ईरान को खुले तौर पर समर्थन देने से बच रहा है.

    चीन की रणनीतिक चुप्पी: कारोबारी हितों को प्राथमिकता

    चीन और ईरान के बीच 2021 में हुआ 25 वर्षों का रणनीतिक समझौता दोनों देशों को नजदीक ले आया था. चीन ईरान से तेल खरीदता है और बदले में इंफ्रास्ट्रक्चर और तकनीक मुहैया कराता है. लेकिन मौजूदा हालात में चीन भी बेहद सतर्क है. चीन जानता है कि अगर वह खुलकर ईरान के साथ खड़ा होता है, तो अमेरिका और यूरोप के साथ उसके व्यापारिक संबंध खतरे में पड़ सकते हैं. यही कारण है कि चीन ने केवल शांति की अपील की है, लेकिन न कोई सैनिक मदद और न ही कोई राजनीतिक दबाव ईजरायल पर डाला है.

    अन्य सहयोगी भी दूर

    ईरान के परंपरागत सहयोगी जैसे तुर्की, सीरिया और लेबनान भी इस बार चुप्पी साधे हुए हैं. तुर्की को नाटो और पश्चिमी सहयोगियों के साथ संबंधों की चिंता है. सीरिया और लेबनान की आंतरिक समस्याएं इतनी गहरी हैं कि वे किसी युद्ध में सक्रिय भागीदारी नहीं निभा सकते. हिजबुल्लाह जैसे प्रॉक्सी संगठनों की गतिविधियां सीमित कर दी गई हैं, जिन पर इजरायल के हवाई हमलों का सीधा असर पड़ा है.

    इजरायल की रणनीति: सटीक समय पर हमला

    इजरायल ने मौजूदा वैश्विक हालात को भांपते हुए 13 जून 2025 को ईरान की सैन्य और परमाणु सुविधाओं पर बड़ा हमला किया. इस हमले में कई शीर्ष कमांडर और वैज्ञानिक मारे गए. इजरायल की रणनीति स्पष्ट थी. जब ईरान अपने सबसे कमजोर दौर में हो, तब उसे निर्णायक झटका दिया जाए. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने भी इजरायल को इस ऑपरेशन के लिए अघोषित सहमति दी थी. अमेरिकी प्रशासन को डर है कि ईरान जल्दी ही परमाणु हथियार विकसित कर सकता है, और इसी आशंका के चलते इजरायल को "खुली छूट" मिली.

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