ईरान ने हाल ही में ओमान की खाड़ी और हिंद महासागर में एक बड़े पैमाने पर नौसैनिक युद्धाभ्यास की शुरुआत की है, जिसे ‘सस्टेनेबल पावर 1404’ नाम दिया गया है. यह अभ्यास इसलिए खास है क्योंकि यह उस 12-दिवसीय युद्ध के तुरंत बाद हो रहा है जिसमें इजरायल ने ईरान के कई महत्वपूर्ण सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया था. ऐसे में यह नौसैनिक गतिविधि केवल एक रूटीन अभ्यास नहीं बल्कि एक स्ट्रैटेजिक मैसेजिंग का हिस्सा मानी जा रही है.
ईरान की नौसेना: दो हिस्सों में बंटी सैन्य ताकत
ईरान की नौसैनिक क्षमता पारंपरिक दृष्टिकोण से भले ही कमजोर मानी जाती रही हो, लेकिन उसकी रणनीति उसे अलग बनाती है. दरअसल, ईरान के पास दो अलग-अलग नौसेनाएं हैं:
IRGC की नौसेना विशेष रूप से खाड़ी क्षेत्र की सुरक्षा और 'असामान्य युद्ध रणनीति' (asymmetric warfare) के लिए प्रसिद्ध है. ये नौकाएं छोटी लेकिन बेहद फुर्तीली होती हैं, जिनसे बड़ी नौसेनाओं को भी संकरी जलधाराओं में चुनौती दी जा सकती है.
सस्टेनेबल पावर 1404: सैन्य संदेश या शक्ति प्रदर्शन?
इस अभ्यास के तहत ईरानी नौसेना ने समुद्र में लक्ष्यों को भेदने के लिए छोटी, मध्यम और लंबी दूरी की क्रूज मिसाइलों का परीक्षण किया. रिपोर्ट्स के अनुसार, इसमें पनडुब्बियों, युद्धपोतों और फुली लोडेड ड्रोन्स का भी इस्तेमाल किया गया.
ईरान के सरकारी टीवी ने बताया कि इन मिसाइलों का परीक्षण ओमान की खाड़ी और हिंद महासागर में खुले पानी में किया गया. हालांकि, अभ्यास के किसी वीडियो फुटेज को तुरंत जारी नहीं किया गया, जिससे इसके रणनीतिक महत्व और संवेदनशीलता का अंदाजा लगाया जा सकता है.
क्यों खास है यह समय?
यह युद्धाभ्यास उस समय हो रहा है जब क्षेत्र में तनाव की स्थिति चरम पर है. इजरायल के साथ हाल में हुए संघर्ष में ईरान को भारी सैन्य नुकसान उठाना पड़ा था. इजरायल ने न केवल वायु रक्षा प्रणालियों को नष्ट किया बल्कि परमाणु प्रतिष्ठानों पर भी हमला किया.
ऐसे में यह अभ्यास साफ तौर पर ईरान की तरफ से यह संकेत है कि वह अब भी मुकाबले में तैयार है और दुश्मन को जवाब देने की पूरी क्षमता रखता है.
छोटे जहाज, बड़ी रणनीति
ईरान बड़े युद्धपोतों के बजाय छोटे और तेज़ जहाजों पर जोर देता है. वजह साफ है होर्मुज जलडमरूमध्य जैसे संकीर्ण और सामरिक जलमार्गों में ये छोटे जहाज बड़े काम आते हैं. ईरान जानता है कि पारंपरिक नौसेनिक मुकाबले में वह अमेरिका या इजरायल जैसी शक्तियों के सामने नहीं टिक सकता, इसलिए वह ‘गुरिल्ला शैली’ की समुद्री रणनीति अपनाता है.
IRGC की नौकाएं पश्चिमी जहाजों पर नजर रखने, उन्हें रोकने या चेतावनी देने के लिए जानी जाती हैं. ईरान की कंट्रोल्ड प्रोवोकेशन रणनीति क्षेत्रीय तनाव को बढ़ाती है, लेकिन साथ ही बातचीत की मेज पर अपनी मौजूदगी भी मजबूत करती है.
पनडुब्बियों से लेकर हाइपरसोनिक मिसाइलों तक
ईरान की समुद्री ताकत सिर्फ जहाजों तक सीमित नहीं है. उसने हाल के वर्षों में अपनी पनडुब्बी क्षमता में भी उल्लेखनीय वृद्धि की है. इसमें रूस से खरीदी गई किलो-क्लास पनडुब्बियों के साथ-साथ ईरान द्वारा खुद बनाई गई सबमरीन भी शामिल हैं, जो निगरानी और हमला दोनों में सक्षम हैं.
इसके अलावा, ईरान ने लॉन्ग-रेंज मिसाइल टेक्नोलॉजी में भी जबरदस्त प्रगति की है. 'फतह-1' जैसी हाइपरसोनिक मिसाइलों से लेकर आधुनिक ड्रोन तक, ईरान अब समुद्र में भी दुश्मनों को चौंकाने की क्षमता रखता है.
परमाणु विवाद और आईएईए से टकराव
नौसैनिक अभ्यास के साथ-साथ ईरान का परमाणु मुद्दा भी फिर से गर्म हो गया है. ईरान ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ सहयोग को निलंबित कर दिया है.
यूरोपीय देशों फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने ईरान को चेतावनी दी है कि अगर 31 अगस्त तक एजेंसी के साथ कोई समाधान नहीं निकलता है, तो 2015 के परमाणु समझौते के तहत हटाए गए सभी प्रतिबंधों को फिर से लागू कर दिया जाएगा.
माना जा रहा है कि ईरान ने यूरेनियम को हथियार-ग्रेड स्तर तक समृद्ध किया है और यह एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया है.
ईरान का इजरायल को स्पष्ट संदेश
ईरान के रक्षा मंत्री ब्रिगेडियर जनरल अज़ीज़ नसीरज़ादेह ने अपने हालिया बयान में स्पष्ट कहा कि देश ने अपनी सेना को नई मिसाइल प्रणालियों से लैस कर दिया है और किसी भी संभावित दुश्मन को जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार है.
उनका यह बयान न केवल इजरायल को एक चेतावनी है, बल्कि अमेरिका और उसके सहयोगियों को भी ईरान की सैन्य क्षमता को कम आंकने से रोकने का संकेत है.
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