हाल ही में कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय की शादी सोशल मीडिया से लेकर आध्यात्मिक हलकों तक चर्चा में छा गई. वजह सिर्फ उनका विवाह नहीं था, बल्कि वह अनूठा तरीका जिससे यह संपन्न हुआ. उनके शादी के निमंत्रण पत्र पर बड़े अक्षरों में लिखा था “वैदिक विवाह.” आज जब ज्यादातर शादियां रोशनी, सजावट और आधुनिक थीम्स की चमक से भरी होती हैं, ऐसे समय में इंद्रेश का पूरी तरह वैदिक पद्धति से हुआ विवाह लोगों के बीच जिज्ञासा का विषय बन गया कि आखिर यह वैदिक विवाह क्या है और इसे इतना खास क्या बनाता है?
वैदिक विवाह हिंदू धर्म की उन प्राचीन परंपराओं का जीवंत स्वरूप है, जिनका उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद में मिलता है. यह सिर्फ आयोजन नहीं, बल्कि वह संस्कार है जिसमें दूल्हा-दुल्हन अपने जीवन को धर्म, सत्य और कर्तव्य की राह पर जोड़ने का वचन लेते हैं. इसमें दिखावे की भव्यता से ज़्यादा महत्व उन मंत्रों, अग्नि और रीतियों का होता है, जिनकी जड़ें हजारों साल पुरानी सभ्यता में समाई हुई हैं. इस विवाह का केंद्र बिंदु तथाकथित उत्सव नहीं, बल्कि वह आध्यात्मिक वचन हैं जो जीवनभर के लिए रिश्ते को संकल्पों से बांध देते हैं. अग्नि की साक्षी में मंत्रों के उच्चारण का उद्देश्य सिर्फ रस्म पूरी करना नहीं, बल्कि दो आत्माओं के एकत्र होने की घोषणा माना जाता है.
वैदिक विवाह में फेरे चार—अर्थ गहरे
आमतौर पर लोग मानते हैं कि हिंदू विवाह में सात फेरे होते हैं, लेकिन वैदिक पद्धति में फेरे सिर्फ चार होते हैं. हर फेरा जीवन के चार मूल स्तंभों से जुड़ा होता है. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष. पहले फेरे में दंपत्ति जीवन भर एक-दूसरे के कर्तव्यों को निभाने का वचन लेते हैं. दूसरे फेरे में वे मेहनत, समृद्धि और परिवार के कल्याण के लिए साथ बढ़ने का संकल्प करते हैं. तीसरे फेरे में भावनाओं, प्रेम और सम्मान को प्राथमिकता देने की प्रतिज्ञा शामिल होती है. चौथे फेरे में दंपत्ति आध्यात्मिक विकास और मानसिक शांति की दिशा में संयुक्त प्रयास का प्रण लेते हैं. यही चार फेरे वैदिक विवाह को आधुनिक शादियों से अलग और अधिक अर्थपूर्ण बनाते हैं.
सप्तपदी, सात कदम, सात गहरे संकल्प
फेरों के बाद आता है सप्तपदी, जिसका वास्तविक अर्थ है जीवन की जिम्मेदारियों को सात चरणों में स्वीकार करना. दूल्हा-दुल्हन चावल के ढेर पर पैर रखकर सात कदम बढ़ाते हैं और हर कदम एक नया वचन, नई जिम्मेदारी का संकेत देता है. इन सात चरणों में साथ चलने, हर परिस्थिति में एक-दूसरे का सहारा बनने, परिवार को मिलकर संभालने, प्रेम और सम्मान बनाए रखने और जीवन में आध्यात्मिक तथा सांसारिक संतुलन स्थापित करने का भाव छिपा होता है. वैदिक विवाह में इन सात चरणों और चार फेरों का महत्व सिर्फ धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं—यह दो व्यक्तियों को एक साझा यात्रा की शुरुआत का गहन अनुभव कराता है. शायद यही वजह है कि इंद्रेश उपाध्याय की शादी ने लोगों का ध्यान खींचा और वैदिक परंपराओं पर फिर से चर्चा शुरू हो गई.
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