इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में छिड़ेगी जंग! अमेरिका ने रूस की ओर भेजा परमाणु पनडुब्बी, जवाब में चीन ने उतार दी खतरनाक वॉरशिप

    America Russia Conflict: इंडो-पैसिफिक एक बार फिर भू-राजनीतिक तनाव का केंद्र बनता दिख रहा है. जहां एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के तटीय इलाकों के पास परमाणु पनडुब्बियां तैनात करने का साहसिक फैसला लिया, वहीं दूसरी ओर रूस और चीन ने संयुक्त रूप से सी ऑफ जापान में एक बड़ी नौसैनिक युद्धाभ्यास की शुरुआत कर दी.

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    Image Source: Freepik/ प्रतिकात्मक

    America Russia Conflict: इंडो-पैसिफिक एक बार फिर भू-राजनीतिक तनाव का केंद्र बनता दिख रहा है. जहां एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के तटीय इलाकों के पास परमाणु पनडुब्बियां तैनात करने का साहसिक फैसला लिया, वहीं दूसरी ओर रूस और चीन ने संयुक्त रूप से सी ऑफ जापान में एक बड़ी नौसैनिक युद्धाभ्यास की शुरुआत कर दी. 

    इसे नाम दिया गया है – "Maritime Interaction 2025", जो रणनीतिक रूप से ट्रंप के बयान से ठीक पहले शुरू हुआ, लेकिन इसकी टाइमिंग और उद्देश्य अब पूरी दुनिया के लिए चर्चा का विषय बन चुके हैं.

    क्या है इस संयुक्त युद्धाभ्यास की ताकत?

    इस ड्रिल का मुख्य उद्देश्य एंटी-सबमरीन ऑपरेशन, ज्वाइंट गनफायर, एयर डिफेंस और कॉम्बैट सर्च एंड रेस्क्यू जैसे अभियानों की तैयारी है.

    रूस की भागीदारी:

    एक बड़ा एंटी-सबमरीन वॉरशिप, जो दुश्मन की पनडुब्बियों की खोज और उन्हें नष्ट करने में सक्षम है.

    चीन की भागीदारी:

    दो घातक डिस्ट्रॉयर,

    डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां,

    और एक सबमरीन रेस्क्यू जहाज, जो समुद्री मिशनों को अंजाम देने में रणनीतिक बढ़त देता है.

     रणनीति या चेतावनी?

    1 अगस्त को ट्रंप ने अचानक घोषणा की कि उन्होंने अमेरिका की दो न्यूक्लियर-सक्षम पनडुब्बियां 'सही जगहों' पर तैनात कर दी हैं. यह बयान उस वक्त आया जब रूस के पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव ने खुले तौर पर कहा था कि अमेरिका-रूस के बीच युद्ध अब केवल एक संभावना नहीं, बल्कि एक नजदीकी खतरा है. ट्रंप के इस कदम को महज सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश माना जा रहा है कि अमेरिका किसी भी हाल में पीछे नहीं हटेगा.

    संदेश क्या है रूस और चीन का?

    रूस और चीन का यह संयुक्त अभ्यास सीधे तौर पर अमेरिका को यह बताने की कोशिश है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अब सिर्फ एक ही सुपरपावर का दबदबा नहीं चलेगा. यह युद्धाभ्यास सिर्फ सैन्य अभ्यास नहीं है, यह भू-राजनीतिक संकेतों से भरा एक आयोजन है, जो अमेरिका के नेतृत्व वाले एशिया-पैसिफिक गठबंधन को खुली चुनौती देता है.

    क्या यह युद्ध की तैयारी है?

    इस पूरे घटनाक्रम को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही है – क्या यह ‘प्री-वॉर फेज़’ की शुरुआत है? या फिर यह सिर्फ ताकत की भाषा में संवाद की एक नई शैली है? विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटनाएं नई शीत युद्ध जैसी स्थिति की ओर इशारा कर रही हैं. सब कुछ इस ओर इशारा करता है कि नया वर्ल्ड ऑर्डर आकार ले रहा है. ट्रंप की आक्रामक नीति, रूस-चीन की सामरिक एकता, और इंडो-पैसिफिक में मचती हलचल अब केवल चेतावनी नहीं, संकेत हैं एक नई वैश्विक प्रतिस्पर्धा के.

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