Nikku Madhusudan: जब विज्ञान, कल्पना को हकीकत में बदलता है, तब इतिहास बनता है, और इस बार उस इतिहास को रचा है एक भारतीय मूल के वैज्ञानिक — कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. निक्कू मधुसूदन ने.
नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) की मदद से उन्होंने 120 प्रकाश वर्ष दूर स्थित ग्रह K2-18b पर जीवन के संकेत खोजे हैं. यह खोज न केवल खगोल विज्ञान की दुनिया में हलचल मचा रही है, बल्कि ब्रह्मांड में जीवन की संभावना को लेकर अब तक की सबसे ठोस उम्मीद के रूप में देखी जा रही है.
ग्रह K2-18b पर क्या मिला?
इस दूरस्थ ग्रह के वायुमंडल में मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड जैसे अणुओं के साथ-साथ डाइमिथाइल सल्फाइड (DMS) का संभावित संकेत मिला है — जो पृथ्वी पर केवल समुद्री जीवों द्वारा उत्पादित होता है. अगर यह पुष्टि होती है, तो यह धरती से परे जीवन के लिए पहला ठोस वैज्ञानिक प्रमाण हो सकता है.
हाइसीन वर्ल्ड: जीवन के लिए एक आदर्श दुनिया?
K2-18b को वैज्ञानिकों ने एक हाइसीन ग्रह माना है — यानी एक ऐसा ग्रह जिसका वातावरण हाइड्रोजन से भरपूर हो और जिसकी सतह पर गहरे महासागर हों. डॉ. मधुसूदन ने 2021 में इस शब्द को परिभाषित किया था, और अब वे खुद एक ऐसे ही संभावित ग्रह पर जीवन के संकेत ढूंढ रहे हैं.
कौन हैं डॉ. निक्कू मधुसूदन?
भारत में जन्मे, IIT-BHU वाराणसी से पढ़ाई कर MIT और फिर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी तक का सफर तय करने वाले डॉ. मधुसूदन आज एक्सोप्लैनेट रिसर्च के क्षेत्र में एक वैश्विक नाम हैं. उन्होंने खगोलविज्ञानी डॉ. सारा सीगर के मार्गदर्शन में पीएचडी की और आज दुनिया भर के वैज्ञानिक उनके काम को मान्यता दे रहे हैं.
अब आगे क्या?
डॉ. मधुसूदन का कहना है कि अगले एक से दो साल में इस खोज की पुष्टि हो सकती है. यदि DMS की उपस्थिति सच साबित होती है, तो यह खोज मानव सभ्यता के सबसे बड़े सवाल — 'क्या हम अकेले हैं?' का जवाब देने की दिशा में एक बड़ी छलांग होगी.
एक भारतीय दिमाग, एक वैश्विक खोज, और भविष्य की झलक
दार्शनिकों और वैज्ञानिकों ने सदियों से कल्पना की है कि क्या जीवन केवल पृथ्वी पर ही है. आज, डॉ. निक्कू मधुसूदन की इस खोज ने उस कल्पना को वैज्ञानिक ज़मीन दे दी है — और साथ ही यह दिखा दिया है कि भारतीय प्रतिभा, जब अवसर पाती है, तो अंतरिक्ष की सीमाओं को भी पार कर सकती है.
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