पूर्वी भूमध्यसागर में भारत और ग्रीस के बीच हुए संयुक्त नौसैनिक अभ्यास ने सिर्फ समुद्री रणनीतिक साझेदारी को नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समीकरणों को भी नई दिशा दे दी है. 22 अगस्त को भारतीय नौसेना के पोत आईएनएस तमाल और ग्रीक युद्धपोत एचएस रिट्सोस के बीच क्रेते द्वीप के उत्तरी समुद्री क्षेत्र में यह ‘पासिंग एक्सरसाइज’ आयोजित की गई.
इस दौरान दोनों नौसेनाओं ने न केवल समुद्री संचार प्रणाली की साझा जांच की, बल्कि युद्ध कौशल और जटिल युद्धाभ्यासों का भी अभ्यास किया. इसे तकनीकी अभ्यास कहा जा सकता है, लेकिन इसके राजनीतिक और रणनीतिक मायने कहीं गहरे हैं.
पूर्वी भूमध्यसागर में भारत की उपस्थिति क्यों मायने रखती है?
यह वही क्षेत्र है जहां तुर्की और ग्रीस के बीच वर्षों से समुद्री अधिकार, गैस भंडार और सैन्य दबदबे को लेकर तनाव बना हुआ है. ऐसे में भारत जैसे उभरते समुद्री ताकत के वहां पहुंचने और ग्रीस के साथ अभ्यास करने को केवल सैन्य आदान-प्रदान नहीं माना जा सकता. तुर्की पूर्वी भूमध्यसागर को अपनी “ब्लू होमलैंड” रणनीति का हिस्सा मानता है, जिसके तहत वह इस पूरे समुद्री क्षेत्र में प्रभुत्व जमाना चाहता है. ऐसे में भारत की साझेदारी तुर्की की इस नीति को खुली चुनौती के रूप में देखी जा रही है.
भारत का यह कदम तुर्की के लिए चेतावनी क्यों है?
भारत और ग्रीस का यह अभ्यास प्रतीकात्मक से कहीं बढ़कर है. यह उस समय आया है जब तुर्की, पाकिस्तान का खुलकर समर्थन कर रहा है. मई 2024 में भारत-पाक संघर्ष के दौरान तुर्की ने पाकिस्तान को सैन्य और कूटनीतिक समर्थन दिया था. उसके बाद से भारत ने अपनी रणनीतिक दिशा साफ कर दी है— जो पाकिस्तान का साथ देगा, भारत उसके विरोधियों के साथ खड़ा होगा. इस नीति के तहत भारत ने साइप्रस, ग्रीस और मिस्र जैसे देशों के साथ संबंध गहराए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा, वायुसेना प्रमुख एपी सिंह की ग्रीस यात्रा और अब भारतीय नौसेना की यह उपस्थिति ये सब भारत की उस रणनीति के हिस्से हैं जो तुर्की की आक्रामकता को संतुलित करने के लिए बनाई गई है.
ग्रीस का रुख भी बदला हुआ
यह सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि ग्रीस भी अब अपनी कूटनीति को यूरोप केंद्रित दायरे से निकालकर वैश्विक कर रहा है. ग्रीस ने संकेत दिया है कि वह भारत से मिसाइल प्रणाली खरीदने में रुचि रखता है. 2024 में भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी की ग्रीस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने समुद्री सहयोग को बढ़ाने पर सहमति जताई थी.
भविष्य के संकेत क्या हैं?
भारत अब "Act East" के साथ-साथ "Think West" नीति पर काम कर रहा है. सिर्फ इंडो-पैसिफिक ही नहीं, बल्कि मध्य-पूर्व और यूरोप के बीच के संवेदनशील क्षेत्रों में भी भारत की नौसैनिक उपस्थिति मजबूत हो रही है. पूर्वी भूमध्यसागर में यह एक छोटा लेकिन अहम संदेश है. भारत अब केवल दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय ताकत नहीं रहा, बल्कि वह वैश्विक सुरक्षा और सामरिक संतुलन में भी प्रभावी भूमिका निभाने को तैयार है.
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