नई दिल्ली: जहां एक ओर दुनिया की प्रमुख सेनाएं अगली पीढ़ी के फाइटर जेट्स जैसे F-35 और राफेल की संख्या बढ़ाने में लगी हैं, वहीं भारत की सुरक्षा रणनीति अब महज आक्रमण नहीं, बल्कि एक अभेद्य रक्षात्मक कवच खड़ा करने पर केंद्रित हो चुकी है. इसका सबसे ताजा प्रमाण रक्षा मंत्रालय द्वारा स्वदेशी क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल सिस्टम (QRSAM) की खरीद को लेकर लिया गया बड़ा फैसला है.
हाल ही में 36,000 करोड़ रुपये की लागत से QRSAM की 6 रेजिमेंट्स को मंजूरी दी गई है. यह फैसला भारतीय सेना और वायुसेना की उस प्रमुख मांग का एक हिस्सा है, जिसके तहत दोनों सेनाओं ने कुल 22 रेजिमेंट्स (11-11) की आवश्यकता जताई थी. हालांकि अभी केवल 6 रेजिमेंट्स की मंजूरी दी गई है, जबकि कुल लागत अनुमान 1.12 लाख करोड़ रुपये के करीब था.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदली सोच
'ऑपरेशन सिंदूर', जिसने पाकिस्तान को रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर झकझोर कर रख दिया, उसने भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान को भी यह सोचने पर मजबूर किया कि अगले युद्ध केवल मिसाइल और टैंक से नहीं, बल्कि ड्रोन, सायबर अटैक और हाई-स्पीड एयरक्राफ्ट से लड़े जाएंगे.
इस ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तान ने ड्रोन के जरिए भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिशें की थीं. सूत्रों के अनुसार, सैकड़ों की संख्या में ड्रोन भारतीय सीमा में भेजे गए, जो या तो चीन निर्मित थे या तुर्की से तकनीकी मदद लेकर तैयार किए गए थे. लेकिन भारत के 'आकाश' एयर डिफेंस सिस्टम ने लगभग सभी प्रयासों को विफल कर दिया. इसी दौरान, एक तेज रिएक्शन क्षमता वाले मल्टी लेयर एयर डिफेंस सिस्टम की कमी महसूस की गई—जिसका समाधान QRSAM के रूप में सामने आया.
QRSAM: भारत का बेबी S-400
QRSAM को अक्सर ‘बेबी S-400’ कहा जाता है, और यह उपमा यूं ही नहीं दी जाती. जहां रूस निर्मित S-400 सिस्टम की रेंज 400 किलोमीटर तक की है और वह बड़ी बैलिस्टिक मिसाइलों व लंबी दूरी के फाइटर जेट्स को मार गिराने में सक्षम है, वहीं QRSAM कम दूरी की लेकिन बेहद तेज और खतरनाक चुनौतियों से निपटने के लिए बनाया गया है.
इसे DRDO ने भारत की जलवायु, दुश्मनों की सैन्य रणनीति और भूगोल को ध्यान में रखकर पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से विकसित किया है. इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं:
6 रेजिमेंट की मंजूरी, लेकिन यह नाकाफी
सरकार ने पहली किस्त में 36,000 करोड़ रुपये की मंजूरी देकर 6 रेजिमेंट्स की तैयारी का रास्ता साफ कर दिया है. इनमें से 3 रेजिमेंट्स वायुसेना को और 3 थल सेना को सौंपी जाएंगी.
लेकिन विशेषज्ञों की राय में भारत जैसे विशाल देश और बहु-फ्रंट युद्ध की आशंका वाले राष्ट्र के लिए यह संख्या अपर्याप्त है.
भारतीय सेना और वायुसेना ने 11-11 रेजिमेंट्स की मांग की थी, जिसका कुल अनुमानित खर्च 1.12 लाख करोड़ रुपये बैठता है. हर एक रेजिमेंट की लागत लगभग 6,000 करोड़ रुपये है.
इन 22 रेजिमेंट्स की तैनाती से भारत एक ऐसा मल्टी लेयर, ऑल-वेदर, 360 डिग्री डिफेंस कवच खड़ा कर सकता है, जिसमें न केवल पारंपरिक एयर स्ट्राइक बल्कि आधुनिक हाइब्रिड थ्रेट्स (ड्रोन, साइलेंट मिसाइल, कम ऊंचाई पर आने वाले सटीक हथियार) से भी बचाव संभव हो सकेगा.
सिर्फ हथियार नहीं, रणनीति भी बदल रही है
यह निर्णय सिर्फ एक हथियार खरीद की प्रक्रिया नहीं है, यह भारत की नए युग की रक्षा रणनीति को दर्शाता है. अब देश ‘फ्लाइंग ऑब्जेक्ट्स’ के खिलाफ एक ‘स्मार्ट शील्ड’ खड़ी करने की दिशा में बढ़ रहा है.
चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश लगातार अपने एयरफोर्स और ड्रोन टेक्नोलॉजी को अपग्रेड कर रहे हैं. चीन की सेना PLAAF, हाइपरसोनिक मिसाइल और लेजर हथियारों पर काम कर रही है, वहीं पाकिस्तान ने हाल ही में तुर्की से मिलकर नए ड्रोन स्क्वाड्रन तैयार किए हैं. इस तेजी से बदलते परिदृश्य में QRSAM जैसे सिस्टम भारत को एक रक्षात्मक बढ़त (defensive edge) देता है.
क्यों जरूरी है QRSAM जैसे सिस्टम्स?
ड्रोन युद्ध का युग शुरू हो चुका है: अब पारंपरिक जेट्स से ज्यादा खतरा ‘कम ऊंचाई पर उड़ने वाले, तेज़ गति से आने वाले साइलेंट ड्रोन्स’ से है.
शहरी क्षेत्रों की सुरक्षा: बड़े शहरों, उद्योगिक क्षेत्रों, सैन्य अड्डों और एयरबेस को ऐसे मोबाइल एयर डिफेंस सिस्टम से तुरंत कवरेज दी जा सकती है.
मल्टी लेयर सुरक्षा: S-400, आकाश और QRSAM—तीनों की संयुक्त तैनाती भारत को एक लेयर-बाय-लेयर डिफेंस स्क्रीम देती है.
100% स्वदेशी: आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत यह मिसाइल सिस्टम भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता को मजबूती देता है.
ये भी पढ़ें- गाजा में ₹750 में मिल रहा बिस्किट का पैकेट, नमक खाकर जिंदा हैं लोग, भूख से 81 बच्चों समेत 124 मौतें