नई दिल्लीः भारत ने तुर्की से दोस्ती निभाने में कभी कसर नहीं छोड़ी—चाहे भूकंप के समय मानवीय सहायता भेजनी हो या महामारी में वैक्सीन की मदद करनी हो. लेकिन, जब बात वैश्विक मंच पर समर्थन की आती है, तुर्की अक्सर पाकिस्तान के पाले में खड़ा नजर आता है.
हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद जिस तरह तुर्की ने पाकिस्तान को ड्रोन जैसे सैन्य उपकरण उपलब्ध कराए और फिर कश्मीर पर बयानबाजी की, उससे भारत का सब्र जवाब दे गया. भारत ने साफ कर दिया कि तुर्की की इन हरकतों को अब केवल देखा नहीं जाएगा, बल्कि उसका उचित जवाब भी मिलेगा.
पाकिस्तान के साथ तुर्की का रिश्ता कोई नया नहीं है. 1965 और 1971 की लड़ाइयों में भी तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था. अब जबकि भारत अपने संबंध इज़राइल, अमेरिका और खाड़ी देशों जैसे सऊदी अरब व यूएई से मज़बूत कर रहा है, तुर्की उसकी कूटनीति के खिलाफ खड़ा दिख रहा है.
एर्दोगन की महत्त्वाकांक्षा और तुर्की की वैश्विक छवि
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन इस्लामिक देशों का रहनुमा बनने की होड़ में हैं. यही वजह है कि वे पाकिस्तान जैसे देशों के करीब जाकर खुद को इस्लामी दुनिया के नेता के तौर पर पेश करना चाहते हैं. रूस और चीन के साथ मिलकर तुर्की एक नया ध्रुव खड़ा करने की कोशिश में है.
वहीं अमेरिका, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों के साथ उसकी रिश्तों में तल्खी है, जो बताता है कि तुर्की की विदेश नीति में स्थिरता से ज्यादा लचीलापन और अवसरवादिता हावी है.
इतिहास में देखें तो रिश्तों में गर्मी और ठंडक साथ-साथ
भारत और तुर्की के बीच राजनयिक रिश्ते 1948 में शुरू हुए थे. जवाहरलाल नेहरू के जमाने में रिश्ते बेहतर थे, क्योंकि तुर्की तब गुटनिरपेक्षता की राह पर था. लेकिन, बाद में जब वह अमेरिका के साथ चला गया और फिर साइप्रस पर हमला किया. भारत ने विरोध जताया और तभी से रिश्तों में खटास आने लगी.
कश्मीर के मसले पर तुर्की की भूमिका हमेशा पाकिस्तान के पक्ष में रही है. यही कारण है कि आज भी तुर्की की नीति भारत के लिए भरोसेमंद नहीं कही जा सकती.
जब भारत ने निभाया धर्म, लेकिन तुर्की ने नहीं
6 फरवरी 2023 को आए भीषण भूकंप में तुर्की के हजारों लोग मारे गए. भारत ने तुरंत ऑपरेशन दोस्त शुरू किया और राहत सामग्री, मेडिकल सप्लाई और रेस्क्यू टीम भेजकर यह जताया कि इंसानियत सबसे ऊपर है.
इसी तरह कोविड काल में भी भारत ने वैक्सीन और आवश्यक दवाओं की मदद की. लेकिन जब भी भारत को वैश्विक मंचों पर समर्थन की ज़रूरत पड़ी, तुर्की ने या तो चुप्पी साध ली या पाकिस्तान का पक्ष लेकर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की.
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