भारत में बने कावेरी इंजन की रूस में फ्लाइंग टेस्टिंग, छोटे फाइटर प्लेन और स्टेल्थ ड्रोन में लगेगा

    भारत के स्वदेशी जेट इंजन कार्यक्रम ने एक अहम मुकाम छू लिया है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया गया ‘कावेरी इंजन’ अब रूस में फ्लाइंग टेस्टिंग के दौर में है.

    India-made Kaveri engine flying tested in Russia
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- Internet

    नई दिल्ली: भारत के स्वदेशी जेट इंजन कार्यक्रम ने एक अहम मुकाम छू लिया है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया गया ‘कावेरी इंजन’ अब रूस में फ्लाइंग टेस्टिंग के दौर में है. यह परीक्षण किसी एयरक्राफ्ट में इंजन की वास्तविक प्रदर्शन क्षमता जांचने के लिए किया जा रहा है — और भारत की एयरोस्पेस आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.

    25 घंटे की टेस्टिंग शेष, जल्द होगी उड़ान में परीक्षा

    DRDO के अधिकारियों के अनुसार, कावेरी इंजन की अभी 25 घंटे की फ्लाइंग टेस्टिंग बाकी है. जैसे ही स्लॉट उपलब्ध होगा, रूस में इसका परीक्षण शुरू किया जाएगा. इसके तहत इंजन को एक लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) में लगाकर देखा जाएगा कि वह वास्तविक हवाई परिस्थितियों में कैसे प्रदर्शन करता है.

    तेजस से UAV तक: कावेरी इंजन के बदलते प्रयोग

    कभी इस इंजन को भारत के स्वदेशी फाइटर जेट तेजस में इस्तेमाल करने की योजना थी. हालांकि विकास में देरी के कारण तेजस में अमेरिकी GE-404 इंजन लगाया गया. अब कावेरी को भारत में विकसित हो रहे स्टेल्थ यूएवी (Unmanned Aerial Vehicle) में पावर देने के लिए फिर से डिजाइन किया जा रहा है. इसका लक्ष्य है- भारतीय रक्षा तकनीक को और अधिक स्वदेशी, कुशल और आधुनिक बनाना.

    विशेषताएं: फ्लैट-रेटेड डिजाइन और FADEC तकनीक

    • कावेरी इंजन एक 80 kN थ्रस्ट वाला लो बायपास ट्विन स्पूल टर्बोफैन इंजन है.
    • बेहतर नियंत्रण के लिए इसमें ट्विन-लेन फुल अथॉरिटी डिजिटल इंजन कंट्रोल (FADEC) प्रणाली है.
    • फ्लैट-रेटेड डिजाइन की मदद से इंजन अत्यधिक तापमान और गति में भी स्थिर प्रदर्शन देता है.
    • यह तकनीक थ्रस्ट को एक स्थायी अधिकतम स्तर पर सीमित करती है जिससे इंजन की लाइफ और भरोसेमंद प्रदर्शन सुनिश्चित हो सके.

    कावेरी 2.0: AMCA और LCA Mark 2 का अगला पड़ाव

    भारत का अगला उद्देश्य है कावेरी इंजन का एक उन्नत संस्करण — ‘कावेरी 2.0’, जिसकी क्षमता 90 kN तक होगी. इसे 2035 के बाद तेजस Mark1A जैसे लड़ाकू विमानों में अमेरिकी इंजन की जगह लगाने का लक्ष्य है.

    इसके लिए इंजन निर्माता यूनिट GTRE (Gas Turbine Research Establishment) ने आवश्यक वित्तीय संसाधनों की मांग की है. साथ ही, भविष्य के AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) Mark 2 जैसे प्रोजेक्ट के लिए भी विदेशी तकनीकी भागीदारों के साथ सहयोग पर काम चल रहा है.

    4 देशों के पास फाइटर जेट इंजन बनाने की तकनीक

    आज भी लड़ाकू विमान के इंजन विकसित करना दुनिया के सबसे जटिल तकनीकी कार्यों में से एक माना जाता है. अब तक केवल अमेरिका, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन ही इस क्षमता में पूर्ण रूप से सक्षम हैं.

    हालांकि चीन ने भी कुछ इंजन बनाए हैं, वे मुख्य रूप से रिवर्स इंजीनियरिंग पर आधारित हैं और प्रदर्शन में अब भी रूस पर निर्भर हैं.

    लड़ाकू विमान का इंजन 1400 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर कार्य करता है — जबकि इस तापमान के करीब धातुएं पिघलने लगती हैं. ऐसे में 40,000 से अधिक पुर्जों का उच्च तापमान में सटीक तालमेल बनाए रखना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है.

    'मेक इन इंडिया' की उड़ान: 

    कावेरी इंजन का उन्नत विकास न केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की रणनीतिक सुरक्षा को भी दीर्घकालिक आधार पर सशक्त करेगा. इससे भविष्य में विदेशी इंजन पर निर्भरता घटेगी और स्वदेशी रक्षा उत्पादन में क्रांति आएगी.

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