नई दिल्ली: भारतीय रेलवे ने एक अहम उपलब्धि हासिल की है—देश की पहली हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन कोच का सफल परीक्षण पूरा कर लिया गया है. यह ट्रायल हरियाणा के जींद में रेलवे की वर्कशॉप में किया गया और इसे नॉर्दर्न रेलवे के इंजीनियरों ने अंजाम दिया.
इस खास बात यह है कि इस ट्रेन के लिए कोई नया डिब्बा नहीं बनाया गया, बल्कि पहले से मौजूद DEMU (डीजल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट) कोच को हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी में बदला गया है.
हाइड्रोजन ट्रेन- कैसे अलग है यह?
हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनें न तो डीज़ल की मोहताज हैं और न ही बिजली की सप्लाई लाइन पर निर्भर रहती हैं. इसका मतलब यह है कि ये ट्रेनों को एक नया विकल्प देती हैं, खासतौर पर उन इलाकों में जहां इलेक्ट्रिक ट्रैक नहीं हैं और डीज़ल इंजन प्रदूषण फैला रहे हैं.
फायदे- न धुआं, न शोर
इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा है:
लेकिन ट्रेन चलेगी कैसे? समझिए पूरी प्रक्रिया
यह पूरी तकनीक हाइड्रोजन फ्यूल सेल सिस्टम पर आधारित है. इसमें दो मुख्य इनपुट होते हैं:
जब ये दोनों आपस में मिलती हैं, तो एक रासायनिक क्रिया होती है जिससे:
इसके साथ ही ट्रेन में बैटरी सिस्टम भी होता है. जब ट्रेन को ज्यादा ताकत की ज़रूरत होती है (जैसे तेज़ स्पीड या चढ़ाई पर), तो बैटरी मदद करती है. कम ज़रूरत होने पर, फ्यूल सेल बैटरी को खुद ही चार्ज करता रहता है.
कौन-कौन से देश कर चुके हैं ऐसा प्रयोग?
भारत अब उन गिने-चुने देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है, जो हाइड्रोजन ट्रेन टेक्नोलॉजी को धरातल पर ला चुके हैं. इससे पहले- जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों ने यह प्रणाली अपनाई है और इनके पास पहले से ही हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनें हैं.
भारत के लिए यह कदम क्यों मायने रखता है?
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह संकल्प लिया है कि वह 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करेगा. हाइड्रोजन ट्रेनें इस लक्ष्य की दिशा में एक मजबूत और व्यावहारिक शुरुआत हैं.
इस पहल से:
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