लोग फ्लाइट में सफर करते हैं कि एक ओर से दूसरी जगह पहुंचने में अधिक समय न लगे. भारत में कई एयरलाइन कंपनियां है. जिसकी टिकट बुक कर लोग प्लेन में सफर करना पसंद करते हैं. ऐसी ही एक एयरलाइन है इंडिगो. टिकटें तो खूब बुक की जा रही हैं. लेकिन कंपनी अपने बिजनेस को सही से चला नहीं पा रही. लिहाजा लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इस बीच एक सवाल ये भी सामने आ रहा है कि आखिर एक एयरलाइन कंपनी की शुरुआत करने में कितना समय लगता है? कैसे इस बिजनेस की शुरुआत होती है. आइए डिटेल में जानते हैं.
9 दिसंबर को ही इंडिगो ने 100 से ज्यादा फ्लाइट्स कैंसिल कर दीं. वहीं पिछले 7 दिनों में 4,500 से अधिक उड़ानें रद्द हो चुकी हैं. हालात इतने बिगड़ गए कि केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा. नागर विमानन मंत्री राम मोहन नायडू ने संसद में साफ कहा कि मामले की जांच शुरू हो गई है, और अगर नियमों का पालन नहीं हुआ तो इंडिगो के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. इतना ही नहीं, सरकार एयरपोर्ट स्लॉट्स को अन्य एयरलाइंस को देने पर भी विचार कर रही है. इस पूरे विवाद ने एक पुराना सवाल फिर सामने ला दिया है. आखिर एक एयरलाइन खोलने के लिए कितनी तैयारी, पैसा और संसाधन चाहिए?
भारत में एयरलाइन शुरू करना क्यों इतना महंगा?
एयरलाइन बिजनेस दुनिया के सबसे रिस्की और सबसे महंगे सेक्टर्स में शुमार है. प्लेन खरीदना, मेंटेनेंस, ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर, पायलट-क्रू की टीम, फ्यूल खर्च, एयरपोर्ट स्लॉट और DGCA के नियम हर स्टेप करोड़ों की लागत मांगता है. भारत का एविएशन इंडस्ट्री पहले से ही विशाल है, जो हर साल अर्थव्यवस्था को 18.32 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का योगदान देता है. ऐसे में यहां एयरलाइन शुरू करने के लिए शुरुआती निवेश भी छोटा नहीं होता. आम तौर पर कम से कम 500 करोड़ रुपये से लेकर 1500 करोड़ रुपये तक का शुरुआती बजट जरूरी माना जाता है. हालांकि यह लागत एयरलाइन के मॉडल, फ्लीट और रूट नेटवर्क पर निर्भर करती है.
कम से कम कितने प्लेन चाहिए? जानिए नियम क्या कहते हैं
हर एयरलाइन को बड़ी फ्लीट की जरूरत नहीं होती. कुछ कंपनियां कुछ ही विमानों के साथ शुरुआत करती हैं. भारत में पॉलिसी के अनुसार. रीजनल या कम्यूटर एयरलाइन दो–तीन विमान से भी ऑपरेशन शुरू कर सकती है. जैसे: FLY91 और JettWings ने छोटी फ्लीट से शुरुआत की है. लेकिन राष्ट्रीय स्तर की फुल-सर्विस या लो-कॉस्ट एयरलाइन के लिए बड़ी फ्लीट और बड़ा निवेश अनिवार्य है.
एयरलाइन प्लेन खरीदती नहीं, लीज पर लेती है, जानें क्यों
एक बड़ा पैसिव मिथ यह है कि एयरलाइन के पास खुद के विमान होते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि दुनिया की अधिकांश एयरलाइंस फ्लीट खरीदने की बजाय लीज पर लेती हैं. एक विमान की कीमत सैकड़ों करोड़ रुपये होती है—इसीलिए शुरुआत में लीज मॉडल अधिक फायदेमंद होता है.लीज पर लेने के बाद भी एयरलाइन हर महीने मोटी रकम चुकाती है, लेकिन कुल निवेश कम हो जाता है और ऑपरेशन तेजी से शुरू किया जा सकता है.
एयरलाइन लाइसेंस पाना आसान नहीं, जानें पूरी प्रक्रिया
भारत में एयरलाइन शुरू करने के लिए DGCA की लंबी और सख्त प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इसमें शामिल हैं एयर ऑपरेटर सर्टिफिकेट, सिक्योरिटी क्लीयरेंस, पायलट व टेक्निकल स्टाफ की योग्यता की जांच, सेफ्टी ऑडिट, मेंटेनेंस और ऑपरेशन सिस्टम की जांच. ये सभी स्टेप्स मिलाकर लाइसेंस प्रक्रिया को 18 महीने से 3 साल का समय लग सकता है. लाइसेंस मिल जाने के बाद भी एयरलाइन को लगातार सेफ्टी, सर्विस और ऑपरेशन स्टैंडर्ड पर खरा उतरना पड़ता है.
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